अप्राकृतिक कृत्य बनाम रिश्तों की मर्यादा

homosexualityसुरेश हिन्दुस्थानी
भारत जैसे देश में अप्राकृतिक कृत्य का समर्थन करना निश्चित ही भारतीयता को तार तार करने का षडयंत्र है, भारत एक सांस्कृतिक देश है, जहां अनेक संस्कार हैं। पूरा जीवन इन्हीं संस्कारों के साए में आगे बढ़ता है लेकिन जब हम संस्कारों को भूलकर कुसंस्कारों की ओर बढ़ते हैं तब निश्चित ही भारत की मूल भावना का नष्ट करने का षडयंत्र करते हैं। वास्तव में रिश्तों की एक मजबूत बुनियाद आज केवल भारत देश ही दिखाई देती है विश्व के अनेक देश आज भारत के इन संस्कारों के बारे आश्चर्य प्रकट करते हैं क्योंकि विदेश में भारत जैसे संस्कारों के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। हम यह बात जानते ही होंगे कि भारत की संस्कृति का विश्व में कोई मुकाबला नहीं है, और पूरा विश्व इस बात से डरता है कि भारत अगर सांस्कृतिक रूप से खड़ा हो गया तो विश्व की कोई भी शक्ति भारत का मुकाबला नहीं कर सकती। आज विश्व के कई देशों के नागरिक एक बार भारत से जुड़कर देखते हैं तो फिर पलटकर वापस जाने का उनका मन ही नहीं करता।
देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने अप्राकृतिक कृत्य के बारे में जो अभूतपूर्व निर्णय दिया है, वह जनभावनाओं के अनुसार तो है ही साथ प्राकृतिक और धार्मिक भी है। भारत के कण कण में व्याप्त रिश्तों की मर्यादा भी है। आज कई लोग विश्व के अनेक देशों में इसके होने की बात कहकर देश में कथित पड़ा लिखा वर्ग इसका समर्थन करता दिखाई देता है, लेकिन उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की सांस्कृतिक विरासत यह नहीं है, हमारी विरासत में रिश्तों की मर्यादा है और इसे सहेजना ही हम सबकी जिम्मेदारी भी है।
अप्राकृतिक कृत्य पश्चिमी देशों से भारत आई यह एक ऐसी बीमारी हैं। जिसके गंभीर परिणाम धीरे-धीरे भारत की संस्कृति और परंपराओं की मजबूत नींव को खोखला करते जा रहे हैं। भारतीय समाज जिसे कभी विश्व के सांस्कृतिक गुरू की उपाधि से सम्मानित जाता था, आज अपने ही लोगों के भद्दे और अप्राकृतिक आचरण की वजह से बरसों पुरानी इस पहचान को खोता जा रहा हैं। केन्द्र सरकार अप्राकृतिक कृत्य के बारे में जो तर्क दे रही है वह भारत के साथ मजाक तो है ही साथ ही भारत को विदेश की राह पर ले जाने का एक गंभीर षड्यंत्र है।
भारत के संदर्भ में अप्राकृतिक कृत्य जैसा शब्द कोई नई अवधारणा नहीं हैं बल्कि बरसों से यह एक ऐसा प्रश्न बना हुआ हैं जो मनुष्य और उसके मानसिक विकार को प्रदर्शित करता हैं। सन 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अप्राकृतिक कृत्य को अपराध की श्रेणी से मुक्त कर दिया था। अदालत के इस आदेश से उन लोगों ने तो राहत की सांस ली ही होगी जो इसमें रुचि रखते हंै या ऐसे बेहूदा संबंधों को बुरा नहीं मानकर उनका समर्थन करते हैं। लेकिन नियमों और कानूनों के पक्के भारतीय समाज में इसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता। ब्रिटिश काल से चले आ रहे आदेशों और कानूनों की बात करें तो उनके जैसे खुले विचारों वाली सरकार ने भी इसे स्पष्ट रूप से मनुष्य द्वारा किया गया एक ऐसा अप्राकृतिक और अस्वाभाविक दंडनीय कृत्य माना था जिसके दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को 10 साल तक की कैद होने का प्रावधान था। लेकिन अब जब अप्राकृतिक कृत्य जैसे जघन्य अपराध कांगे्रस के पेरोकारों द्वारा समर्थन दिया जा रहा है तो इससे भारत की बरसों पुरानी छवि और उसकी आन मिट्टी में मिलती प्रतीत होती है।
हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि ऐसे संबंध भी अन्य दूसरों कुप्रभावों की तरह पाश्चात्य देशों की ही देन हैं। इसका मूल कारण वहां की संस्कृति के काफी खुले और बंधन रहित होना है। मनोरंजन के नाम पर फूहड़ और भद्दे प्रयोग वहां के लोगों के लिए कोई नई बात नहीं हैं। आए दिन संबंधों से जुड़ी किसी नई विचारधारा का प्रचार-प्रसार होता ही रहता हैं। पाश्चात्य देशों में अब हालात ऐसे हो गए हैं कि व्यक्तियों के पारस्परिक संबंध भी केवल शारीरिक भोग और विलास तक ही सीमित रह गए हैं। ऐसे संबंधों में पूर्ण रूप से लिप्त विदेशी संस्कृति अप्राकृतिक कृत्य जैसे संबंधों को भी फन और एक अनोखे प्रयोग के तौर पर लेती हैं, क्योंकि उन्हें यह सब सामान्य संबंधों से अधिक उत्साही लगता हैं। जिसका अनुसरण कुछ भारतीय लोग भेड़-चाल की तरह आंख मूंद कर करते हैं।
अप्राकृतिक कृत्य को धारा 377 के तहत कानूनी संरक्षण मिलना इसका एक सबसे बड़ा कारण हैं। क्योंकि जो संबंध हमेशा समाज की नजर से छुपाए जाते थे, आज खुले-आम उनका प्रदर्शन होने लगे हैं। ऐडस और एचआईवी जैसी यौन संक्रमित बीमारियों में आती बढ़ोतरी का कारण भी ऐसे ही संबंधों की स्वीकार्यता है। निश्चित रूप से इसे दी गई कानूनी मान्यता मानव समाज, उसके स्वास्थ्य और मानसिकता पर भारी पड़ेगी।
यह मनुष्य का अपना व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन एक इसी आधार पर उसे पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता। इसके समर्थन से जुड़े लोगों का यह तर्क हैं कि व्यक्ति का आकर्षण किस ओर होगा यह उसकी मां के गर्भ में ही निर्धारित हो जाता हैं। और अगर वह अनैतिक संबंधों की ओर आकृष्ट होते हैं तो यह पूर्ण रूप से स्वाभाविक व्यवहार माना जाना चाहिए। लेकिन यहां इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि जब प्रकृति ने ही महिला और पुरुष दोनों को एक दूसरे के पूरक के रूप में पेश किया हैं। तो ऐसे हालातों में पुरुष द्वारा पुरुष की ओर आकर्षित होने के सिद्धांत को मान्यता देना कहां तक स्वाभाविक माना जा सकता हैं। इसके विपरीत अप्राकृतिक कृत्य जैसे संबंध स्पष्ट रूप से एक मनुष्य के मानसिक विकार की ही उपज हैं। यह एक ऐसे प्रदूषण की तरह है, जो धीरे-धीरे जो प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष ढंग से पूरे भारतीय समाज को अपनी चपेट में ले रहा हैं। यह पूर्ण रूप से अप्राकृतिक हैं, और हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि जब भी हम प्रकृति के विपरीत कोई काम करते है तो उसके गंभीर परिणाम भोगने ही पड़ते है।
भारतीय समाज में संबंधों की महत्ता इस कदर व्याप्त है कि कोई भी रिश्ता व्यक्तिगत संबंध के दायरे तक ही सीमित नहीं रह सकता। विवाह को एक ऐसी संस्था का स्थान दिया गया हैं जो व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता होने के साथ ही उसके परिवार के विकास के लिए भी बेहद जरूरी हैं। और ऐसे अदलती फरमान भारतीय समाज और पारिवारिक विघटन की शुरुआत को दर्शा रहा है। शारिरिक संबंधों को केवल एक व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में रखना भले ही उसकी अपनी स्वतंत्रता के लिहाज से सही हों लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण में पूर्ण रूप से गलत होगा। केवल मौज-मजे के लिए अनैतिक सम्बन्ध बनाना और अप्राकृतिक कृत्य के समर्थन में निकाली गई किसी भी परेड का समर्थन करना ऐसे किसी भी समाज की पहचान नहीं हो सकती जो अपनी परंपरा और संस्कृति के विषय में गंभीर हों। और भारत जैसे सभ्य समाज में ऐसी स्वच्छंद उद्दंडता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

1 COMMENT

  1. लेकिन उस सरकार का क्या , जो वोट के लिए समाज को तार तार करने पर उतारू हो.शायद वे भारतीय संस्कृति,उसकी मर्यादाएं क्या हैं उससे वाकिफ नहीं निर्णय आने के बाद .बीच में तो इस विषय पर हमारी सरकार w उसके मंत्री इतने सक्रिय हो गए थे कि न जेन कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है और इसके बिना एक रात में न जाने क्या हो जायेगा.

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