सेना के शौर्य पर अप्रिय राजनीति

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विजय सहगल

जब ऑपरेशन सिंदूर के दिन, प्रति-दिन की कार्यवाही की सूचना, प्रेस के माध्यम से देश और दुनियाँ को देने की ज़िम्मेदारी  कर्नल सोफिया कुरैशी और वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह को दी गयी तो सारे देश  ने सेना के अदम्य साहस को सार्वजनिक करने  के इस कार्य की भरपूर  प्रशंसा की। एक ओर  जिन पाकिस्तान परस्त, आतंकवादियों ने, धूर्तता पूर्वक, पहलगाम मे उन 26 महिलाओं के सुहाग को उजाड़ कर अपनी राक्षसी हैवानियत के माध्यम से पाकिस्तानी मे, स्त्रियों की दीन दशा पर, अपनी कुसांस्कृति और कुसंस्कारों  के स्याह पक्ष को  उजागर किया, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना और सरकार ने भारतीय वीरांगनाओं को, सेना के साहस और पराक्रम की  रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी देकर,  महिलाओं को भारतीय संस्कृति और संस्कारों के उस कथन, “यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” को चरितार्थ किया।

भारतीय राजनीति का ये दुर्भाग्य  हैं कि देश के चंद  राजनैतिक दल और उनके नेताओं ने सेना की इन बहादुर बेटियों पर अपनी संकीर्ण सोच और संकुचित मानसिकता के चलते अपनी अविवेकपूर्ण और अप्रिय टिप्पणियों  से न केवल सेना के मान सम्मान को ठेस पहुंचाई अपितु अपने दल और स्वयं अपने आप को भी संकट मे डाला दिया।  ऐसे बड़बोले नेताओं ने अपनी और अपने दल की जग हँसाई भी की।  दल और विचारधारा से परे यहाँ के राजनैतिज्ञों को हर विषय मे निरंतर बोलने की बुरी आदत हैं, फिर वे चाहे उस विषय विशेष मे प्रवीण भले ही न हों। इन असभ्य नेतागणों द्वारा  अपने राजनैतिक स्वार्थ की खातिर अपने  प्रतिद्वंद्वियों पर नैतिक-अनैतिक हमले तक तो ठीक था पर  अपने अनैतिक और घृणित टिप्पणियों  से सेना के मान सम्मान को भी ठेस पहुंचाई जो अप्रशंसनीय और भर्त्सना योग्य है।  इन अवांछित आरोप-प्रत्यारोप मे  विपक्ष के  गणमान्य  नेता ही  नहीं, अपितु सत्ता और सरकार के वे नेतागण भी शामिल हैं जिनकी नैतिक ज़िम्मेदारी थी कि सामान्य बोलचाल मे मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने राजनैतिक अनुयायियों से भी, बैसा करवा कर,  एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते।

दुःख और संताप तो तब और हुआ, जब ऑपरेशन सिंदूर के चलते इन अशिष्ट और निर्लज्ज नेताओं ने भारतीय सेना को अपनी तुच्छ और छुद्र राजनीति के चलते, जाति और धर्म के आधार पर बांटने की ढीठ और गुस्ताख़   कोशिश की। भारत की जिस एक सौ चालीस करोड़ जनता ने, सेना की वीरता और बहादुरी को नमन किया, वहीं  मध्य प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री विजय शाह ने अपने बेहूदा वक्तव्य से,  भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकी दुश्मनों के साथ उद्धृत कर, अपने अल्पज्ञान का परिचय दिया। विजय शाह के वक्तव्य की गंभीरता और विषय की नाजुकता को इस बात से आँका जा सकता हैं कि उनके इस कुत्सित टिप्पड़ी का स्वतः संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा न केवल उनके विरुद्ध पुलिस एफ़आईआर दर्ज़ करने का आदेश दिये अपितु उनके वक्तव्य की भर्त्सना भी की। वे जब मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो उन्हे वहाँ से भी बुरी तरह फटकार मिली। सुप्रीम कोर्ट ने  पुलिस प्रशासन की विजय शाह के विरुद्ध ढुलमुल एफ़आईआर पर भी नाराजगी प्रकट की। विजय शाह द्वारा दिया गया, ये गैरजिम्मेदाराना   बयान  उनकी अभिव्यक्ति नहीं, अपितु  किसी उन्मादी व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध है, जो अक्षम्य है, और जिसकी सजा अवश्य ही मिलनी चाहिये। अभी प्रकरण माननीय सुप्रीम कोर्ट मे विचाराधीन  हैं और संभावना हैं कि आने वाले दिनों मे मध्यप्रदेश के उन माननीय की मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं। विजय शाह के भारतीय सेना की, कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिये  जिस वक्तव्य के लिये  माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया हो और उच्चतम न्यायालय द्वारा जिस पर  नाराजगी प्रकट कर, कड़ी  फटकार लगायी गयी हो, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपने उपमुख्यमंत्री के विरुद्ध कोई कार्यवाही न करना राजनैतिक अधोपतन, अवनति और अवसाद की पराकाष्ठा  को ही दर्शाता हैं।

इसी क्रम मे समाजवादी पार्टी के सांसद प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह (जिनके नाम का सही उच्चारण तक माननीय प्रोफेसर साहब नहीं कर सके) और एयर मार्शल ए के भारती की जाति का उल्लेख कर, सारी नैतिक मर्यादाएं तार-तार कर, अपनी घृणित मानसिकता और संकुचित सोच का परिचय दिया, जिसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है।  देश और समाज की रक्षा मे रत व्यक्ति ही सच्चे मायनों मे  विरोचित कार्य करने वाला सच्चा देशभक्त है। सेना मे शामिल होने का एक मात्र आधार सैनिकों की शूरवीरता, साहस और शौर्य ही हैं। देश के सेनानायकों को जाति, धर्म और संप्रदाय मे विभक्त करना उन शूरवीरों का अपमान  है। देश के लिये समय आने पर अपने प्राणों का  आत्मोत्सर्ग ही भारतीय सेना के वीर जवानों की एक मात्र पहचान हैं, जिसके लिये  देश का सम्पूर्ण जनमानस उनके सामने नतमस्तक है।      

जिम्मेदार पदों पर विराजमान व्यक्तियों, नेताओं और गणमान्य हस्तियों द्वारा किसी भी विषय मे टिप्पणी करते समय देश, काल और पात्रों को दृष्टिगत अपने  शब्दों, वाक्यों और वाक्यांशों के क्रम का  ही नहीं अपितु विराम, पूर्ण विराम और अर्ध विराम का भी ध्यान रखना चाहिये, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने से विवाद और तकरार की पूरी संभावना बनी रह  सकती है। मध्य प्रदेश के एक अन्य मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा भी इसी अल्पज्ञान  का शिकार हुए। उन्होने ऑपरेशन सिंदूर की प्रशंसा का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को देते हुए न केवल देश के नागरिकों अपितु सेना के जवानों को भी, उनके चरणों मे नतमस्तक होने का श्रेय भी  दे दिया। यदि उन्होने  शब्दों और वाक्यों  का चयन सही तरह से किया होता तो कदाचित ऐसी अवांछित और अप्रिय स्थिति न बनती।

पाकिस्तान के  अनेकों हवाई अड्डों को नेस्तनाबूद कर सैकड़ों आतंकवादियों, पाकिस्तान के अनेकों सैनिकों को मारने के बाद,  पाकिस्तान के डीजीएमओ के अनुनय विनय पर, भारतीय सेना के डीजीएमओ द्वारा युद्ध विराम स्वीकृत करने के निर्णय से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी  अप्रसन्नता और असहमति प्रकट की। यूं भी सरकार के हर कदम और निर्णय की मुखालफत करने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने, अमेठी मे 15 मई 2025 को अपने वक्तव्य मे युद्ध विराम की आलोचना करते हुए कहा, कि “जीत का जश्न मनाया जाता है, युद्ध विराम का नहीं”। उन्हे आतंकी अड्डों, सैकड़ों  आतंकवादियों और पाकिस्तान के हवाई अड्डों को मिट्टी मे मिलाये जाने पर, उस भारतीय सेना की जीत दिखाई नहीं दी जिसके  मुखिया,  उनके पिता, स्वयं श्री मुलायम सिंह यादव हुआ करते थे।            

आशा की जानी चाहिये कि  देश के राजनैतिक दल अपनी निजिस्वार्थ और संकीर्ण मानसिकता से उपर उठ कर, एक स्वर मे  सेना के शौर्य और साहस को नमन करेंगे, जिसकी प्रशंसा सारी दुनियाँ कर रही है।  हम सभी देशवासियों का ये नैतिक दायित्व है कि अपनी सेना के साथ एकजुटता का परिचय देते हुए उनके साहस और शौर्य को नमन करें।   

विजय सहगल

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