शिवानन्द मिश्रा
सावधान हो जाइए ! भारत सहित पश्चिमी देशों में कुछ ही दशक बाद फैमिली सिस्टम का अंत निकट है। परिवार लगातार टूट रहे हैं , बिखर रहे हैं , समाप्त हो रहे हैं। इस समय फैमिली सिस्टम को बचाना पश्चिमी जगत का सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत के सनातनी समाज में भी फैमिली सिस्टम बड़ी तेजी से सिमट रहा है । फैमिली सिस्टम यूँ ही बिखरता रहा तो भविष्य खराब है । आज पश्चिमी समाज को तबाही का दृश्य दिखाई पड़ने लगा है । कल भारत भी इसी दौर से गुजरनेवाला है।
मशहूर पश्चिमी लेखक डेविड सेलबोर्न की किताब ” loosing battle with islam ” में आँखें खोलने वाले खुलासे किए गए हैं । बताया गया है कि ईसाई जगत के समान सनातनी जगत के सामने भी ऐसा ही खतरा है। यहूदियों ने इस खतरे पर पार पा लिया है। डेविड के अनुसार इस्लाम के सशक्त फेमिली सिस्टम से पश्चिमी दुनिया हार रही है। पश्चिम में लोग शादी करना पसंद नहीं करते। समलैंगिकता , अवैध सम्बन्ध , लिव इन रिलेशनशिप आदि से फैमिली सिस्टम टूट गया है ।
पश्चिम में ऐसे बच्चों की तादाद बढ़ती जा रही है , जिन्हें अपने पिता का पता नहीं । मां बाप के साथ रहने का चलन पश्चिम पूरी तरह भूल चुका है । लोगों का बुढ़ापा ओल्ड एज होम्स में गुजर रहा है । नतीजा यह कि पश्चिमी बच्चे दादा दादी , नाना नानी , चाचा ताऊ जैसे रिश्तों के नाम भी भूल चुके हैं ।अब तो नो चाइल्ड लाइफ स्टाइल बहुत शीघ्र पश्चिम को बर्बाद कर देगा । आबादी घटने से उत्पन्न अकेलेपन के सबसे बड़े शिकार जापान और दक्षिण कोरिया हैं । कारण , खाओ पियो ऐश करो , नो चाइल्ड ऑनली प्लेजर, ऑनली मस्ती।
गौर से देखने पर पता चल जाता है कि भारत का हिन्दू समाज भी उधर बढ़ चुका है जहां से पश्चिमी जगत के सामने अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है । सॉलिड फेमिली सिस्टम के कारण अमेरिका , ब्रिटेन , जर्मनी और फ्रांस में इस्लाम की संख्या बढ़ती जा रही है। इस्लाम धर्म में परिवार वास्तव में मजबूत इकाई है । परिवार को जोड़े रखने की कला यहूदियों ने इस्लाम से सीखी है और अपनी आबादी बढ़ाई है। पश्चिम में अकेला होता जा रहा आदमी भयावह ऊब और घुटन का शिकार है। भारत के शहरों में ही नहीं , कस्बाई जीवन में भी अकेलापन प्रवेश कर चुका है ।
भारत में भी पाएंगे कि समाज में भी चाचा , भतीजा , बुआ , ताऊ , मामा , मौसी और यहां तक कि सगे भाई सगी बहन के रिश्ते भी धीरे धीरे समाज में खत्म हो रहे है । यह घोर चिन्ता का विषय है , दुर्भाग्य से इस पर चिंतन अभी शुरू भी नहीं हुआ है । इसका एक प्रमुख कारण विवाहित बेटियों का अपने मैके में दखल देना तथा बेटियों के मां को उनके ससुराल में दखलंदाजी है। विवाहित बहन भी अपनी उल्लू सीधा कर भाइयों को आपस में खूब लड़वाते हैं। याद कीजिए चीन ने वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर अपनी आबादी घटाई जो अब भारत से कम हो गई । वहां भी चीनी जनता ने जब वन चाइल्ड के बजाय नो चाइल्ड अपनाना शुरू किया तब चीन ने दो बच्चों की इजाजत दी ।
आज दुनिया के अनेक देशों में आबादी बढ़ाने के अभियान चल पड़े हैं । भारत में भी कुछ धार्मिक गुरु ज्यादा बच्चे पैदा करने को कह रहे हैं । बहरहाल एक समस्या तो है जिसका समाधान खोजना पूरी दुनिया के लिए जरूरी है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है । समाज तभी बनता है जब परिवार हो। समाज की सबसे बड़ी ताकत संयुक्त परिवार थी जो अब लगभग मर चुका है । मैं , मेरी बीबी और मेरे बच्चे सिद्धांत ने परिवारों के बीच दीवारें खड़ी कर दी है। नारी को इस बाबत सबसे ज्यादा विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि वो जननी है उसको अपना स्वहित त्याग समाज हित को देखना होगा । अपना फिगर अपना कैरियर अपनी फ्री लाइफ अपने आनन्द से ऊपर उठ परिवार समाज व सनातन धर्म के लिये संकल्प लेना होगा। आप देखिए , पश्चिम में फैले अवसाद , अकेलापन और डिप्रेशन भारत में भी बहुत गहरे प्रवेश कर चुके है। इन्हें अब रोकना होगा रोकना होगा और यह कार्य भारतीय नारी ही कर सकती है।
शिवानन्द मिश्रा