कविता

विरहणी का सन्देश वाहक बादल

नन्ही नन्ही जल की बूँदे,जब बरसाता है बादल
धरती भी लहरा देती है, उसे अपना सूखा आँचल

जीव-जन्तु भी खुश हो जाते है,जब लाता बूँदे बादल
विरहणी भी लगा लेती है ,अपनी आँखों में काजल

घन-घोर घटाये घुमड़ती है,और शोर मचाता है बादल
दामिनी भी खूब दमकती है प्रेमिका हो जाती है पागल

आसमान में जब छा जाते है ,जब कारे कारे बादर
पनिहारिन भी नहीं जाती है पनघट पर भरने गागर

पनिहारिन भी डर जाती है,जब डराते है उसे कारे बादर
मटकी अपनी फोड़ देती है,याद करती है अपना नागर

आंधी भी रुक जाती है,जब गर्जन करता है बादर
मुसाफिर भी रुक जाता है,ओढ़ता है अपनी चादर

विरहनी बोली सुनो ऐ बादल संदेश ले जाओ तुम बादल
ढूंढो मेरे प्रेमी को,सुनाओ उनको मेरा संदेशा बादल

“प्रेमिका तुम्हारी तड़फ रही है” सुनाओ संदेशा बादल
तुम बिन मर जाएगी इस मौसम में ऐसा कहो बादल

विरहणी बोली बादल से,रुक जाओ अब तुम बादल
प्रियतम मेरे आ जाये तब जोर से बरसों तुम बादल

सभी हंस रहे है तू क्यों रो रहा है ऐ पागल बादल
प्यास बुझाने के चक्कर में मै रह गया प्यासा बादल

आर के रस्तोगी