मां की प्रतीक्षा

एक पेड़ चिड़िया का डेरा
नव तृण निर्मित नया बसेरा
दो जीवन थे एक नीड़ में
साथ खुशी में साथ पीड़ में
उषा रश्मियों में जो गाते
जीवन कलरव आनन्द पाते
हुई कनक की कनक सी बाली
पुष्प पिरोए इक इक डाली

ऋतुराज में तन मन महके
और नीड़ में चुजे चहके
छोटे, नाजुक, मणी रत्न से
चिड़िया पाले बड़े यत्न से
लाख बार आती और जाती
मां का फर्ज वो खूब निभाती
दाना लाते कभी न थकती
नन्ही आंखें रस्ता तकती

सब कर्मों में कर्म बड़ा‌ है
मातृत्व का मर्म बड़ा है
पालन, पोषण, दाना लाना
बुरी नजर से उन्हें बचाना
जब बात बच्चों पर आती है
बाज़ से चिड़ी लड़ जाती है

कुछ गुजरे दिन बादल से छाए
बड़े हुए बेटे पर आये
वक्त ने पंछी ऐसे उड़ाए
लौट के धर वापस ना आए
बूढ़ी चिड़िया कहां सर फोड़े
किस्मत ने कैसे पर तोड़े
माता जिनको तन से सींचे
चल पड़ते हैं आंखें मीचे
पर आते ही यूं उड़ जाये
पर पीड़ा में काम क्या आये?

साथी भी एक रोज खो गया
कितना तन्हा जीवन हो गया
चिड़िया रह गयी बहुत अकेली
भूल गयी सारी अट्ठखेली
बूढ़ी चिड़िया दाना लाती
मोल सांस का खूब चुकाती
पड़े प्रतीक्षा में रंग काले
अब देव आये या जाने वाले

डॉ राजपाल शर्मा ‘राज’

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