सबको बनाकर मैं बना कुछ कम बना तो क्या हुआ,
सबको मिटाकर तुम बने ज़्यादा बने तो क्या हुआ।
मेहनत मेरी मिट्टी हुई, तुमने उसी पर ताज रखा,
मैंने पसीना बहा दिया, तुमने उसे ही राज रखा।
कल का हिसाब किताब जब समय स्वयं लिखेगा,
पूछेगा किसने क्या रचा, किसने क्या सिर्फ छीना।
जो बचा गया मनुष्यता, वही तो असली जीत है,
राजमहल हो या खँडहर, अंत में सब मीत है।
मैं हारकर भी सीख लूँ, तुम जीतकर भी खो गए,
फर्क बस इतना-सा रहा—हम आदमी, तुम लोग हो गए।
नाम तुम्हारे शोर बने, काम मेरे संस्कार बने,
भीड़ तुम्हारे साथ चली, सच मेरे हथियार बने।
अंत समय जब आईना, सबको सच दिखलाएगा,
कम होकर भी जो मनुष्य रहा, वही बड़ा कहलाएगा।
- डॉ सत्यवान सौरभ