साक्षात्‍कार

हम दिल से काम करते हैं : रमन सिंह

छत्तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री डा. रमन सिंह से बातचीत

अपने पिछले छः साल के कार्यकाल में अंजाम दिए विकास को मिले शानदार रिस्पांस के बाद छत्तीसगढ के मुख्‍यमंत्री डा. रमन सिंह की खुशी छिपाए नहीं रही। वे इस जनसमर्थन को अपने कार्यों का परिणाम मान रहे हैं। दूसरी पारी का एक साल पूरा करने के बाद अपने मिशन में आत्मविश्वास के साथ जुटे डा. सिंह पंकज झा के साथ खास मुलाकात में लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहे हैं.

किसी ने कहा है कि अच्छा जवाब, जवाब देने के बाद ही सूझता है। आप अभी-अभी अपने ग्राम-सुराज अभियान के दौरान जनता रूबरू हुए हैं। कुछ ऐसा कहना रह गया है जो कह नहीं पाए हों.

ज्यादातर सवालों के जवाब तो मैं यात्रा के दौरान दे चुका हूं। अपने दिल की बात भी आमसभाओं में लगातार कहता ही रहा हूं। कुछ बातें हैं जो यात्रा पूरी होने के बाद भी कहने की जरूरत महसूस होती है। इनमें से एक तो यह है कि ‘विकास’ चर्चा का मु्द्दा बना है। प्रदेश में एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण हुआ है। राजनीति में इसे एक नए दौर की शुरुआत कह सकते हैं जब विपक्षी दलों के सामने हमसे बेहतर करने, दिखने की चुनौती है। राजनीति में कीचड उछालने का दौर, मुझे लगता है कि बीते दिनों की बात हो गई। मुझे ऐसा लगता है कि यह बात बात पूरे देश के लिए माडल बन सकती है।

यानी आप अच्छाई के ब्रांड एंबेस्डर हो गए हैं?

(हंसते हुए) अच्छाई के ब्रांड एंबेस्डर तो नहीं, मगर ये है कि इन छः सालों में राजनीतिक सोच की दिशा बदली है, एक मापदंड स्थापित हुआ है। नकारात्मक सोच, चरित्र हत्या इसके बिना भी राजनीति का कोई स्वरूप हो सकता है क्या? इन सवालों का जबाब हमने अपने विभिन्न यात्राओं के दौरान ढूढने की कोशिश की है. और मुझे लगता है कि हमें जबरदस्त सफलता मिली है। हमें यह महसूस हुआ कि हम केवल विधानसभा में जवाब देने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं, वास्तव में जनता के बीच जाकर जनता के सवाल सुनें, उनके जवाब दें और ढूंढें भी।

पहले गांव चलो,घर-घर चलो अभियान, फिर विकास यात्रा और अब ग्राम सुराज….. ई-गवर्नेंस के इस जमाने में, जहां संवाद स्थापित करना इतना आसान हो गया है, व्‍यक्तिगत उपस्थिति अभी भी जरूरी है क्या ?

बिल्कुल…। बिल्कुल जरूरी है। मैं अपने आपको धन्य समझता हूं कि ईश्वर ने मुझे अपने लोगों के पास जाने का अवसर दिया है। जहां तक प्रौद्यौगिकी के इस्तेमाल और उसके द्वारा विकास का सवाल है, हम तेजी से इस दिशा में बढ रहे हैं और हमने इस क्षेत्र में कई उपलब्धियां भी हासिल की हैं। बहुत कम समय में हमने आईटी सेक्टर में दुनिया के नक्शे पर अपनी जगह बनाई है। लेकिन हमारा देश अमरीका नहीं है कि हम इतने मशीनी हो जाएं कि अपने लोगों का सामना कर ही नहीं पाएं या टेलीविजन पर डिस्कशन करके हम देश की राजनीति तय करें। हमें यह लगा कि जनता आज भी अपने प्रतिनिधि को अपने बीच देखना चाहती है और उनसे सीधा संवाद स्थापित करना चाहती है। वास्तव में मानवीय संबंधों की गरमाहट का कोई विकल्प नहीं हो सकता। प्रदेश की यात्राओं के बाद हमारी यह आस्था और मज़बूत हुई है। संबंधों की यह ऊष्मा हमने बस्तर से लेकर सरगुजा तक महसूस की है।

क्या इसी ऊष्मा को आप बार-बार वोट में बदल रहे हैं.

ऐसा कुछ नहीं है. अब तो फिलहाल कोई बड़ा चुनाव सामने है भी नहीं। हम सारे काम चुनाव के नजरिए से करते भी नहीं। दिमाग से ज्यादा सदा ही हमें दिल पर भरोसा रहा है और भाजपा दिल से ही राजनीति करना जानती है। हम अपनी भावनाओं को योजनाओं में बदलते हैं। एक रूपये तक किलो चावल, मुफ्त नमक, रियायती खाद्य तेल, मुफ्त चरण पादुका, छात्राओं के लिए साइकिल, मुफ्त पाठ्य् पुस्तकें, गणवेश, मिड-डे-मील …ऐसी ढेर सारी सफल योजनायें हमारी उसी भावना को व्यक्त करती हैं। चुनाव एक प्रक्रिया है, वह चलती रहेगी। लेकिन यह बात हम भरोसे के साथ कह सकते हैं कि हमने दिलों को जीता है। और निश्चित ही इसी भरोसे की जीत हमें बार-बार मिली है।

छत्तीसगढ की सबसे बडी चुनौती आप भी शायद नक्सलवाद को ही मानते होंगे.

निस्संदेह नक्सली आज भी सबसे बडी समस्या और चुनौती हैं, इस आतंक से छत्तीसगढ को मुक्त कराना हमारी प्राथमिकता है। पिछले छः साल में हमारा मनोबल मज़बूत ही हुआ है. हमें यह बार-बार महसूस हुआ है कि विशाल जनसमर्थन एवं नक्सलियों के विरुद्ध प्रबल जनाक्रोश के बूते हम इस पर भी काबू जरूर पा लेंगे। शांति और विकास के लिए लोग जुड रहे हैं। बस्तर की अभी तक की सभी सभाओं में इतनी बडी संख्या में लोग आए, विकास के प्रति एक सकारात्मक नजरिया विकसित हुआ है।

और यही आपकी सबसे बडी ताकत है शायद …….?

हमारी सबसे बडी ताकत प्रदेश में छिपी विकास की संभावना है। पूर्ववर्ती सरकारों की उपेक्षा के कारण अंचल ने अपनी क्षमताओं का अभी तक उपयोग ही नहीं किया । हमारी खनिज संपदा, हमारे मानव संसाधन और पूरा प्राकृतिक वैभव..यही हमारी ताकत है। इस ताकत को हम समृद्धि में बदलेंगे यह हमारा प्रयास है और रहा भी है, आगे भी यही करेंगे। अब आगे भी यही ध्यान रखेंगे कि तमाम सरकारी योजनाओं से सबसे पहले, अंतिम पंक्ति में खडे, अंतिम आदमी को लाभ पहुंचे।

एक प्रधानमंत्री ने कहा था कि रुपए में मात्र पंद्रह पैसे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचते हैं।

हमने इन आंकडों को उलट दिया है। शत प्रतिशत सफलता का दावा तो हम नहीं कर सकते लेकिन बाकी बचे उन पंद्रह प्रतिशत संसाधनों का भी लाभार्थी वही अंतिम व्यक्ति हो यह हमारा ध्येय होगा।

आपने पिछली मुलाकात में कहा था कि लोगों का इतना प्यार देखकर डर लगता है…. कैसा डर?

हमने यह बार बार कहा है कि छत्तीसगढ की जनता ने जितना प्यार मुझे दिया, उससे कभी उऋण नहीं हो सकता। कई जनम लेकर भी उनका कर्ज नहीं चुका सकता। चिलचिलाती धूप में हजारों हजार लोगों का घंटों खडा रहना, घंटों इंतजार करना, इस स्नेह, सम्मान, प्यार ने जो जिम्मेदारियां बढाई हैं, वह महसूस करके डर जाना स्वाभाविक है। जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने की जो चुनौती है, उससे डर लगता है। हालांकि यही प्यार हमारी ताकत भी है और हमें प्रेरणा भी देता है।

दूसरी पारी के पहले साल पूरे करने पर क्या लगता है….क्या खोया क्या पाया.

हां… अटलजी की कविता को याद कर रहा हूं …. क्या खोया क्या पाया जग में…। यदि उन्हीं के शब्दों में कहूं तो यादों की पोटली मैं भी टटोलने लगता हूं कभी कभार। मैं पाता हूं कि खोने को तो कुछ था ही नहीं अपने पास कभी। वार्ड पार्षद से शुरुआत की, ईश्वर की कृपा, वरिष्ठ जनों का आशीर्वाद, पार्टी के विचारों के प्रति निष्ठा और जनता के स्नेह से यहां तक पहुंचा हूं। एक स्वप्न लेकर आया था राजनीति में कि कुछ अलग करना है, कुछ कर दिखाना है। अपने लोगों के आंसू पोंछना है। कुछ हद तक सफल हुआ हूं। ढेर सारी चीजें करनी अभी बाकी हैं। हां, यह जरूर लगता है कि जब कुछ काम किया है तो लोग इतना सम्मान दे रहे हैं। यही सम्मान मेरा प्राप्य है। यही पाया है मैंने। खासकर ग्राम सुराज और विकास यात्रा की बात करें तो महीनों तक इतने लोगों से सीधे संवाद, लाखों लोगों का स्नेह, छत्तीसगढजनों का प्यार पाकर तो ऐसा लगता है कि खुद के लिए कुछ पाना जैसे शेष ही न रहा हो। जैसे एक ही जनम में कई जिंदगियां जी ली हों मैंने। प्रदेश के विकास की यह यात्रा अब बिना किसी अवरोध के चलती रहे, बस यही आकांक्षा शेष है।