भारत में इस्लामोफोबिया के प्रचार में लगा पश्चिमी जमात, हकीकत के उलट है वास्तविकता  

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गौतम चौधरी 

अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों और अधिवक्ताओं के समूहों की ओर से लगाए जा रहे आरोपों की बढ़ती बाढ़ ने भारत को वैश्विक स्तर पर कड़ी जांच के दायरे में ला दिया है। दरअसल, दावा किया जा रहा है कि भारत में इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है हालांकि, इनमें से कई दावों की बारीकी से जांच करने पर अतिशयोक्ति, गलत सूचना और कई बार जानबूझकर तोड़-मरोड़ का एक पैटर्न सामने आया है जो साबित करता है कि इस मामले में कुछ पूर्वाग्रही तो कुछ भारत विरोधी ताकत अपने हितों के लिए ऐसा कर रहे हैं। मसलन, इससे संबंधित अक्सर आधिकारिक आंकड़ों का जांच अभिकरणों और स्वतंत्र न्याय प्रणाली ने लगातार खंडन किया है। आज हम भी इस मामले के कुछ तथ्यों की पड़ताल करने वाले हैं।

जनवरी 2024 में, ह्यूमन राइट्स वॉच नामक एक स्वतंत्र संगठन ने अपने दक्षिण एशिया बुलेटिन में एक वीडियो का संदर्भ दिया जिसमें कथित तौर पर उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम युवक को उसकी आस्था के कारण प्रताड़ित किया जा रहा था। यह वीडियो वायरल हो गया और कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स में इसका हवाला दिया गया। हालांकि, ऑल्ट न्यूज़ के तथ्य-जांचकर्ताओं ने फुटेज को 2022 की एक असंबंधित रोड रेज घटना से जोड़ा जिसका कोई सांप्रदायिक मकसद नहीं था। इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने सांप्रदायिक पहलू को खारिज करते हुए एक आधिकारिक बयान जारी किया और भ्रामक कैप्शन के साथ वीडियो फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की। बूम लाइव, इंडिया टुडे फैक्ट चेक और पीआईबी फैक्ट चेक ने इसी तरह के उदाहरणों को चिह्नित किया है जिसमें एक प्रवृत्ति का खुलासा हुआ है जहां चुनिंदा फुटेज और अपुष्ट साक्ष्य का उपयोग करके सांप्रदायिक कथाएं गढ़ी जाती है और या सनसनीखेज बना कर लोगों के सामने प्रस्तुत कर दिया जाता है। 

भारत का कानूनी ढांचा धर्मनिरपेक्षता के प्रति कृतसंकल्पित है। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 भारत के प्रत्येक नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। यही नहीं, धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने की भी गारंटी देता है। न्यायपालिका ने सांप्रदायिक संघर्ष से जुड़े मामलों में लगातार हस्तक्षेप किया है जिसमें पीड़ितों के लिए मुआवज़ा देने, स्वतंत्र जाँच के आदेश देने और नफ़रत फैलाने वाले भाषणकर्ताओं को दंडित करने का निर्देश शामिल है। 2023 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य बनाम अंकित शर्मा में, 2020 के दंगों के दौरान हत्या के दोषी पाए गए लोगों के लिए आजीवन कारावास की सज़ा को बरकरार रखा। यह दर्शाता है कि न्यायपालिका शामिल लोगों की धार्मिक पहचान की परवाह किए बिना कड़े फ़ैसले सुनाने से नहीं कतराती है। इस बीच, कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ भी नफ़रत फैलाने वाले भाषणों पर नज़र रख रही हैं और ग़ाज़ियाबाद के डासना के यति नरसिंहानंद जैसे अतिवादियों के खिलाफ निष्पक्ष रूप से मामले दर्ज कर रही हैं; जो अपने इस्लाम विरोधी बयानों के लिए चर्चा में रहते हैं।

दिसंबर 2024 में संसद में पेश गृह मंत्रालय की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में देश भर में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में 12.5 प्रतिशत की कमी आई है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने 2024 में दस से भी कम घटनाओं की सूचना दी जो सक्रिय सामुदायिक आउटरीच और पुलिसिंग कार्यक्रमों के कारण संभव हो पाया है। इसके अलावा, एनसीआरबी के आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में सज़ा में वृद्धि हुई है जबकि पंजीकृत घृणा अपराधों की संख्या समान चुनौतियों का सामना करने वाले अन्य देशों की तुलना में सांख्यिकीय रूप से कम है।

एक स्वतंत्र अभिकरण का दावा है कि स्वतंत्र भारतीय पत्रकारों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने धार्मिक तनाव के वास्तविक मामलों और झूठे आख्यानों दोनों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। द वायर, स्क्रॉल.इन और इंडियास्पेंड ने सांप्रदायिक घटनाओं के पीछे के सामाजिक-राजनीतिक कारकों पर व्यापक रूप से रिपोर्ट की है, साथ ही गलत सूचना सामने आने पर सुधार या स्पष्टीकरण भी प्रकाशित किए हैं। मार्च 2024 में, द क्विंट ने मध्य प्रदेश में कथित ‘बीफ़ लिंचिंग’ के बारे में एक वायरल दावे की जाँच की। जांच में स्पष्ट हुआ कि इस मामले में धर्म का कोई एंगल था ही नहीं। उक्त समाचार एजेंसी ने दावा किया था कि उन्होंने एफआईआर विवरण और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर अपनी रिपोर्ट जारी की। इस मामले में बीफ लिंचिंग का कोई मामला था ही नहीं। यह मामला संपत्ति विवाद का था। फिर भी इस कहानी को पहले ही अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगों ने ‘हिंदू भीड़ हिंसा’ का आरोप लगाते हुए सुर्खियों में लाया गया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में जी20 इंटरफेथ डायलॉग सहित कई मंचों पर इस मुद्दे को संबोधित किया है, जहां उन्होंने कहा – ‘‘भारत की ताकत इसकी विविधता में निहित है। हमारे संविधान या संस्कृति में नफरत के लिए कोई जगह नहीं है।’’ इसी तरह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अक्टूबर 2023 में फ्रांस 24 के साथ एक साक्षात्कार में ‘‘अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों द्वारा एजेंडा-संचालित आख्यानों’’ की आलोचना की और ‘‘ज़मीनी तथ्यों के साथ अधिक ईमानदार जुड़ाव’’ का आह्वान किया। कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि ये अभियान भू-राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं। इस मामले में एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के प्रो. सी. राजा मोहन कहते हैं, ‘‘ये समूह अपने घरों में अधिकारों के उल्लंघन को अनदेखा करते हुए चुनिंदा रूप से भारत को निशाना बनाते हैं। यह मानवाधिकारों के बारे में कम और वैचारिक लाभ के बारे में अधिक है सक्रिय रहते हैं।’’

भारत, किसी भी बहुलवादी समाज की तरह, जटिल अंतर-सामुदायिक गतिशीलता का सामना करता है लेकिन देश को व्यवस्थित रूप से इस्लामोफोबिक के रूप में चित्रित करने में अनुभवजन्य समर्थन का अभाव है। हमारा संविधान और न्यायिक तंत्र अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम है। यह भी सत्य है कि गलत सूचना, चाहे जानबूझकर हो या लापरवाही से, उसी शांति को खतरे में डालती है जिसकी रक्षा करने का दावा किया जाता है। ऐसे समय में जब तथ्यों को हथियार बनाया जा सकता है या वायरल आक्रोश के नीचे दबा दिया जा सकता है, सत्यापन और संतुलन की जिम्मेदारी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दोनों की है।

 भारत एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपनी यात्रा जारी रखे हुए है। भारत दुनिया की चुनौतियों से अलग नहीं है। दुनिया के सामने जो चुनौतियां हैं, वही चुनौतियां भारत के सामने भी हैं । ऐसे में दुनिया को भी चाहिए कि भारत को अपनी चुनौतियों का सामना करने में सहयोग करे न कि केवल अपने अपने राष्ट्रीय हितों की चिंता करें और महज कुछ पूर्वाग्रहों के कारण भारत की सकारात्मक छवि को नकारात्मक बना कर प्रस्तुत करे। 

गौतम चौधरी 

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