पंद्रह अगस्त के दिन आपने क्या किया

सच-सच बताओ आपने पंद्रह अगस्त के दिन क्या किया ? क्या आपने दो मिनट के लिए भी तिरंगे झंडे के पास जाकर नमन किया, हमारी  स्वतंत्रता के लिए प्राण अर्पित कर देने वाले महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन या पुण्य स्मरण किया अथवा पिकनिक मनाकर छुट्टी का आनंद लिया | यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है क्योंकि देश इस समय स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है |  कोरोना के चलते बच्चे स्कूल कॉलेज न जा सके, वहाँ सीमति संख्या वाले सांकेतिक आयोजन ही हुए | किन्तु इस बार पंद्रह अगस्त के दिन मॉल, बाजार, रेस्टोरेंट, होटल और पिकनिक स्थानों पर उमड़ती भीड़ देख कर लग ही नहीं रहा था कि देश कोरोना की भयंकर मार झेल चुका है और संकट अभी टला नहीं है | किन्तु इससे भी बड़ा और गंभीर प्रश्न यह है कि क्या पंद्रह  अगस्त और छब्बीस जनवरी जैसे राष्ट्रिय पर्व भी छुट्टी के दिन या पिकनिक डे के रूप में बिताए जाने के लिए होते हैं ? क्या केवल शैक्षणिक संस्थाओं और शासकीय कर्मचारियों का ही कर्तव्य है कि वे इस दिन को मनाने का उपक्रम करें, शेष आम नागरिकों  का कोई कर्तव्य नहीं है | छोटी-छोटी बातों के लिए आन्दोलन और हड़ताल करने वाले,अपने अधिकारों का रोना रोने वाले ये क्यों भूल जाते हैं कि हमें स्वतंत्र कराने वालों ने हम से कुछ कर्तव्यों की भी अपेक्षा की थी |  क्या अब स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस होली, दिवाली, ईद और क्रिसमस से कम महत्व के दिन बनकर रह गए हैं ? इन त्याहारों को मनाने वालों की वेशभूषा और उत्साह से ही पता चल जाता है कि आज अमुक त्यौहार है | क्या राष्ट्रिय पर्वों पर हमारे घरों, मुहल्लों, प्रतिष्ठानों, को देख कर ऐसा लगता है कि आज हम सब का राष्ट्रिय पर्व है ? ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोगों को स्वतंत्रता दिवस से भी अधिक खुशी एक दिन काम से मुक्ति मिलने और छुट्टी मना लेने की होती है |

सामान्य परिस्थितियों में छोटे-छोटे बच्चे (और उनके  अभिभावक भी ) पंद्रह अगस्त और गणतंत्र दिवस की तैयारी एक दिन पूर्व से ही करने लगते हैं | सांस्कृतिक आयोजनों और पीटी-परेड से जुड़े बच्चे तो कई दिन पूर्व से ही अभ्यास में जुट जाते  हैं | विद्यालय जाने के नाम पर देर से और बड़ी कठिनाई से जागने  वाले बच्चे भी राष्ट्रिय पर्व पर स्वयं ही खुशी-खुशी जाग जाते हैं | किसी को भगत सिंह बनना होता है तो किसी को चंद्रशेखर आजाद, किसी को रानी लक्ष्मीबाई …..बच्चों की कई दिनों की तैयारी और उत्साह देखने योग्य और अभिनंदनीय होता है | किन्तु यदि अपवाद छोड़ दें तो जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं इन राष्ट्रिय पर्वों के प्रति हमारा उत्साह भी कम होने लगता है क्यों ? महाविद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में एनसीसी, एनएसएस, रेडक्रॉस अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़े विद्यार्थियों के अतिरिक्त शेष में राष्ट्रिय पर्वों में सहभागित को लेकर उतना उत्साह नहीं रहता जितना विद्यालय  स्तर पर होता है क्यों ?  कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले अत्यंत विद्वान और सम्माननीय कहे जाने वाले (सर्वाधिक वेतन लेने वाले भी ) प्राध्यापक बन्धु भी इस दिशा में कोई गंभीर प्रयास करते नहीं दीखते |  केवल शासकीय औपचारिका के निर्वहन के लिए स्टाफ के लोग ही ध्वजारोहण  या ध्वज फहराने का उपक्रम कर लेते हैं | इसमें  में भी चर्चा के नाम पर ‘नेताओं ने देश को बरबाद कर दिया’ टाइप दो चार आपसी डायलोग और निजी समस्याओं का रोना-धोना करके, घर चले जाते हैं | इनमें भी कुछ लोग तो इतने महान होते हैं कि वे इसे छुट्टी वाला दिन ही मान कर चलते हैं | ऐसे लोग एक दिन पहले से ही सपरिवार सैर-सपाटे पर निकल जाते हैं,पूछे जाने पर किसी परिचित निजी संस्था के झंडावंदन समारोह में उपस्थिति का प्रमाण प्रस्तुत कर देते हैं |

       राष्ट्रिय पर्वों को पिकनिक डे या होली डे के रूप में मनाने  की यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है | देश की चिंता मोदी जी करें हमें तो बस पिकनिक के लिए बहाना चाहिए जैसी मानसिकता आगे आने वाले दिनों में कई समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है | आज देश के अधिकांश लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक  इतिहास और सभी  क्रांतिकारियों के अतुलनीय बलिदान की पूर्ण जानकारी नहीं है | राजनीतिक दलों एवं जातीय संगठनों के के चतुर खिलाड़ियों ने महापुरुषों को भी जाति,धर्म और विचारधारा के नाम पर बाँटने का अभियान आरंभ कर दिया है और आम जनता पिकनिक मना रही है | क्रांतिकारियों एवं सत्याग्रहियों ने ऊँच-नीच,जाति-धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्र सेवा और सामाजिक समरसता का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसकी चर्चा किए बिना न तो उसे  व्यवहार में लाया जा सकता है और न हीं सामाजिक संगठन किया जा सकता  है | ये राष्ट्रिय पर्व हुतात्माओं के पुण्य स्मरण के साथ-साथ समाज और देश की चिंता करने और हम देश हित में क्या कर रहे हैं इसबात का चिंतन करने के दिन भी हैं | क्या यह संकल्प कर सकते हैं कि राष्ट्रिय पर्वों पर हम सपरिवार राष्ट्र ध्वज का वंदन किए बिना कोई कार्य आरंभ नहीं करेंगे | यदि हम वर्ष में केवल दो दिन का समय भी देश को नहीं दे सकते तो एक नागरिक के रूप में हमें किसी भी समस्या के लिए किसी अन्य को दोष देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं  है |

डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

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