कमलेश पांडेय
व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल संगठित अपराध का नया और बेहद खतरनाक रूप है, जिसमें डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, अध्यापक, प्रोफेशनल्स और अभिजात्य वर्ग के लोग आतंक की लॉजिस्टिक्स, फंडिंग, गुप्त संगठन और तकनीकी सहायता का काम करते हैं, जबकि सामने उनका समाज में सम्मानित और बेदाग चेहरा रहता है। यह खतरा आज न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में बढ़ रहा है और इसकी पहचान तथा रोकथाम बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है।
जानिए व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल क्या है?
व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल ऐसे पेशेवर और पढ़े-लिखे लोग चलाते हैं जिन पर आमतौर पर शक नहीं होता। इनका काम सीधे आतंकवादी हमला करना नहीं बल्कि फंडिंग, लॉजिस्टिक सपोर्ट, रिक्रूटमेंट, गुप्त संचार और तकनीकी सहायता देना है। हाल ही में दिल्ली और एनसीआर में ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट्स ने बम, विस्फोटक, शस्त्र, और हाई-टेक उपकरण छुपाकर आतंकी संगठनों की मदद की। खुफिया मामलों के जानकारों के मुताबिक, हवाला, एनक्रिप्टेड कम्युनिकेशन ऐप्स, और सामाजिक/धार्मिक संगठनों की आड़ में इन्हें फंडिंग व नेटवर्किंग मिलती है।
समकालीन दुनिया व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल से कितनी प्रभावित है?
वैश्विक स्तर पर बड़े आतंकी संगठनों ने अब सीधे हमलावर भेजने के बजाय स्थानीय पढ़े-लिखे लोगों और पेशेवरों के जरिए अपने नेटवर्क फैलाने शुरू कर दिए हैं जिससे सुरक्षा एजेंसियों के लिए इन्हें पकड़ पाना बेहद जटिल हो गया है।
आतंकी मॉड्यूल की यह ‘भेस बदलकर घुसपैठ’ यूरोप, अफ्रीका, और एशिया सहित कई क्षेत्रों में देखने को मिल रही है जिसमें धन शोधन और नकली चैरिटी के माध्यम से फंडिंग होती है। इन मॉड्यूल्स की पकड़ लोकल यूनिवर्सिटीज, अस्पताल, धार्मिक संगठन और पेशेवर सोशल नेटवर्क तक फैल गई है, जिससे सुपरफिशियल सुरक्षा जांच भी प्रभावित हो रही है।
आखिर भारत इससे कैसे बच सकता है?
नागरिक समाज और पेशेवर समूहों को सतर्क और जागरूक बनाना बेहद जरूरी है। हर संदिग्ध गतिविधि की सूचना पुलिस, एनआईए या साइबर क्राइम पोर्टल पर तुरंत दें। वहीं, सुरक्षा एजेंसियों को अब केवल ‘परंपरागत’ आतंकवादियों तक सीमित न रहकर कॉलेज-यूनिवर्सिटी, अस्पताल, प्रफेशनल कॉम्युनिटी में ‘काउंटर-रेडिकलाइजेशन’ अभियान और डिजिटल मॉनिटरिंग तेज करनी होगी। बेहतर होगा कि यूरोपीय देश फ्रांस की तरह ‘प्रिवेंट टू प्रोटेक्ट’ जैसी स्कीम लागू की जा सकती है, जिसमें शिक्षा, सोशल, सुरक्षा व जेल व्यवस्था को समन्वित कर चरमपंथी विचारधारा की रोकथाम और नेटवर्क की पहचान की जाए।
इसके अलावा, डिजिटल और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग तथा फेक एनजीओ/सोशल-चैरिटी के वित्तीय लेन-देन पर खास नजर रखना जरूरी है। वहीं, ऑड-प्रोफेशनल्स या पढ़े-लिखे संदिग्धों के लिए संवेदनशील स्थानों, संगठनों में वेरिफिकेशन, साइबर मॉनिटरिंग और अंडरकवर इन्फॉर्मेशन नेटवर्क तेज किए जाएं। इन उपायों के जरिये ही भारत इस नए और बेहद मुश्किल आतंकवादी खतरे से अपनी सुरक्षा कर सकता है, क्योंकि अब युद्ध बंदूकधारियों और आतंकवादियों से ज्यादा, ‘सूट-बूट’ वालों के जरिए लड़ा जा रहा है।
व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के सामान्य संकेतों को ऐसे समझिए
व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के सामान्य संकेतों में ये प्रमुख पहलू होते हैं: पहला, ऐसे पेशेवर और पढ़े-लिखे व्यक्ति जो आमतौर पर सम्मानित होते हैं जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, जो अचानक कट्टरपंथी विचार धारा अपना लेते हैं।
दूसरा, सोशल मीडिया, डिजिटल चैनल्स और एनक्रिप्टेड संचार माध्यमों का उपयोग कर गुप्त रूप से फंडिंग, हथियार और विस्फोटक सामग्री की खरीद-फरोख्त करते हैं। तीसरा, सामाजिक या धार्मिक संस्थाओं के आड़ में छुपकर संदिग्ध गतिविधियों को अंजाम देते हैं, जैसे सुरक्षा बलों को धमकी देना या स्थानीय लोगों को सुरक्षा सहयोग से रोकना। चतुर्थ, सामान्य जीवन में कोई संदिग्ध व्यवहार नहीं दिखाते, लेकिन अचानक आंतरिक घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं।
पंचम, अचानक किसी पेशेवर या छात्र समूह में कट्टरपंथी विचारों का प्रभाव फैलाना, खुद को ऑनलाइन या ऑफलाइन तेजी से रेडिकलाइज करना। षष्टम, बड़े हमलों के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट, विस्फोटक, हथियारों और फंड की गुप्त व्यवस्था करना। सप्तम, संदिग्धों का संदिग्ध यात्रा इतिहास (जैसे विदेश यात्रा), पोस्टर्स या सोशल मीडिया पर आतंकवादी प्रोपेगैंडा फैलाना। इन संकेतों से सुरक्षा एजेंसियां शुरुआत कर स्थानीय संदिग्धों की पहचान कर पाती हैं, खासकर जब ये लोग अचानक अपने सामाजिक व्यवहार या नेटवर्क में बदलाव दिखाने लगें। इससे साफ होता है कि यह मॉड्यूल पेशेवर और प्रतिष्ठित दिखने वाले लोग होते हुए भी आतंकवाद का हिस्सा होते हैं जो बेहद खतरनाक है।
इस प्रकार, व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के संकेत पहचानना और समय रहते सतर्क रहना भारत की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। नागरिक व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के संकेतों की पहचान कर देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए वे निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:- पहला, अपने आस-पास के लोगों के व्यवहार में अचानक आए बड़े बदलावों, कट्टरपंथी विचारों, और सामाजिक अलगाव को गंभीरता से लें। दूसरा, संदिग्ध गतिविधियों या गुप्त फंडिंग, हथियारों की खरीद, या आतंकवादी प्रोपेगैंडा फैलाने वाले ऑनलाइन या ऑफलाइन व्यवहार की जानकारी तुरंत पुलिस, राष्ट्रीय जांच एजेंसी या साइबर क्राइम पोर्टल पर दें।
तीसरा, पेशेवर, शिक्षाविद्, और सामाजिक समूहों में घुसपैठ की आशंका होने पर सतर्क रहें और बदलावों की सूचना संबंधित अधिकारियों को दें। चतुर्थ, अपने परिवार, दोस्तों और समुदाय में कट्टरपंथी विचारों के खात्मे के लिए संवाद और जागरूकता बढ़ाएं, ताकि युवा और पेशेवर इस तरह के जाल में न फंसें। पंचम, सामाजिक और धार्मिक संस्थानों में किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि पर नजर रखें और त्वरित सूचना दें। षष्टम, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर संदिग्ध या फेक सोशल मीडिया प्रोफाइल, फंडिंग स्रोत और ग्रुप्स पर नजर रखें और रिपोर्ट करें। सप्तम, सरकारी और पुलिस द्वारा जारी की गई व्हाइट कॉलर टेरर और रेडिकलाइजेशन से संबंधित प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लें।
निःसन्देह, इन उपायों से नागरिक अपनी सामाजिक-जिम्मेदारी निभाते हुए आतंक के खिलाफ सरकार और सुरक्षा बलों का सहयोग कर सकते हैं जिससे आतंक की जड़ों को समय रहते पकड़ा जा सकेगा और सुरक्षा मजबूत होगी और देश व देशवासी सुरक्षित रहेंगे।
कमलेश पांडेय