सिंधु जल समझौते पर क्या होगा भारत का रुख?

संजय सिन्हा

सिंधु जल समझौते को लेकर सुर्खियां बनी हुई हैं। हालांकि भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं लेकिन सिंधु जल समझौता सस्पेंड रहेगा। 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 पर्यटकों की पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों की ओर से हत्या के बाद भारत ने पड़ोसी देश के खिलाफ कई कदम उठाए थे। इन्हीं में से एक कदम के तहत सिंधु जल समझौते को सस्पेंड किया गया था। आपको बता दूं कि आजादी के बाद सिंधु जल के बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय तक विवाद चला। आखिरकार, 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल समझौता हुआ। उसके बाद से अब तक दोनों देशों के बीच जो भी युद्ध हुए, उसमें भी इस संधि पर आंच नहीं आई थी लेकिन यह भी सच है कि इस दौरान भारत ने कई बार पाकिस्तान को इस समझौते को रद्द करने की चेतावनी दी थी।


1960 में हुए सिंधु जल समझौते की अहमियत, इसे लेकर दोनों देशों के बीच चले विवाद, इस विवाद की जड़ और राजनीतिक-कानूनी पहलुओं को समझने में डॉक्टर एजाज हुसैन की लिखी किताब  काफी मददगार है। हिमालय से निकलने वाली यह नदी भारत में जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिल जाती है। 65 साल पहले हुए सिंधु जल समझौते को दुनिया की सबसे कामयाब ऐसी संधियों में शामिल किया जाता है। पाकिस्तान में करीब 80% खेती और एक तिहाई पनबिजली उत्पादन में सिंधु नदी का योगदान है। ऐसे में उसकी इकॉनमी के लिए इस नदी की काफी अहमियत है। भारत और पाकिस्तान युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं लेकिन सिंधु जल समझौता सस्पेंड रहेगा। 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 पर्यटकों की पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों की ओर से हत्या के बाद भारत ने पड़ोसी देश के खिलाफ कई कदम उठाए थे। इन्हीं में से एक कदम के तहत सिंधु जल समझौते को सस्पेंड किया गया था।आजादी के बाद सिंधु जल के बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय तक विवाद चला। आखिरकार, 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल समझौता हुआ। उसके बाद से अब तक दोनों देशों के बीच जो भी युद्ध हुए, उसमें भी इस संधि पर आंच नहीं आई थी लेकिन यह भी सच है कि इस दौरान भारत ने कई बार पाकिस्तान को इस समझौते को रद्द करने की चेतावनी दी थी।

हिमालय से निकलने वाली यह नदी भारत में जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिल जाती है। 65 साल पहले हुए सिंधु जल समझौते को दुनिया की सबसे कामयाब ऐसी संधियों में शामिल किया जाता है। पाकिस्तान में करीब 80% खेती और एक तिहाई पनबिजली उत्पादन में सिंधु नदी का योगदान है। ऐसे में उसकी इकॉनमी के लिए इस नदी की काफी अहमियत है। खैर, डॉक्टर हुसैन की किताब में 8 चैप्टर हैं। इसकी शुरुआत में सिंधु बेसिन सिस्टम के बारे में बताया गया है और यह भी कि क्यों इसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद था। इसे खत्म कराने के लिए जब सिंधु जल समझौता हुआ तो उसमें वर्ल्ड बैंक की क्या भूमिका रही। किताब में यह भी बताया गया है कि समझौते की शर्तें क्या हैं और इसे किस तरह से लागू किया गया।
इसमें और भी कई बातों का जवाब मिलता है। जैसे, 1960 में किस वजह से भारत ने विवाद को खत्म करने के लिए वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता स्वीकार की? यह भी कि वैश्विक वित्तीय संस्थान की मदद लेने को पाकिस्तान क्यों राजी हुआ? सवाल यह भी है कि वर्ल्ड बैंक के मध्यस्थता की प्रक्रिया में शामिल होने का कारण क्या था? डॉक्टर हुसैन लिखते हैं, डेविड  ने कॉलियर्स मैगजीन में लिखे एक लेख में सिंधु जल बेसिन के डिवेलपमेंट का प्रस्ताव रखा था। इसी वजह से वर्ल्ड बैंक ने इसमें भूमिका निभाई।


वह लिखते हैं कि भारत और पाकिस्तान ने राजनीतिक वजहों से वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता मंजूर की। डॉक्टर हुसैन का यह भी दावा है कि वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को इस समझौते को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। वह बताते हैं कि इस संधि के तहत सिंधु आयोग बनाया गया जिसका इसे लागू करने में बड़ा योगदान रहा है। संधि होने के बाद पांच विवाद हुए हैं, जिनका जिक्र किताब में किया गया है और जिसे सुलझाने में दोनों पक्ष कामयाब रहे। सिंधु आयोग की भी विवादों को सुलझाने में बड़ी भूमिका रही है, वहीं इन विवादों के कानूनी और राजनीतिक पहलुओं पर भी किताब में रोशनी डाली गई है।डॉक्टर हुसैन जिस सबसे बड़ी बात की ओर इशारा करते हैं, वह यह है कि जब समझौता हुआ था, तब दुनिया को जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली दुश्वारियों का ख्याल दूर-दूर तक नहीं था, जबकि आज यह बड़े संकट के रूप में उभरा है। भारत और पाकिस्तान में पिछले कुछ वर्षों में इसी वजह से एक्स्ट्रीम वेदर पैटर्न दिख रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान भी हुआ है। ऐसे में डॉक्टर हुसैन की किताब सिंधु नदी पर जलवायु परिवर्तन के असर को समझने में मददगार है।


आगे क्या होगा

भारत समय-समय पर इस जल संधि को लेकर नाराजगी का इजहार करता आया है। उसे लगता है कि समझौते में ज्यादातर पानी पाकिस्तान को दिया गया और उसके साथ इंसाफ नहीं हुआ। 2023 में उसने पाकिस्तान से इसमें संशोधन के लिए कहा था, लेकिन बात नहीं बनी। अब जबकि भारत ने संधि को सस्पेंड कर दिया है तो इस बारे में आने वाले वक्त में दोनों देशों के बीच जरूर बात होगी और तब यहां की सरकार इसमें तब्दीली का आग्रह करेगी क्योंकि वह समझौते के तहत मिलने वाले पानी से  असंतुष्ट है। संधि के मुताबिक़, सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताते हुए इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया  जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया। इसके मुताबिक़, भारत पूर्वी नदियों के पानी का, कुछ अपवादों को छोड़कर, बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है। वहीं पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भारत को भी दिया गया था. जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी। इस संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत करने और साइट के मुआयना आदि का प्रावधान भी था।


इसी संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया. इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था। संधि में दोनों कमिश्नरों के बीच किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत का प्रावधान है। इसमें यह भी था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा. इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें होंगी। बैठकों में भी अगर कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे मिलकर सुलझाना होगा। साथ ही ऐसे किसी भी विवादित मुद्दे पर तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान भी रखा गया है।पाकिस्तान ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के साथ सिंधु जल संधि का मुद्दा उठाया। सिंधु जल संधि को पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद नई दिल्ली ने स्थगित कर दिया है।संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने भारत का सीधे तौर पर उल्लेख किए बिना हिंद महासागर रिम एसोसिएशन से अपने बहिष्कार पर भी अफसोस जताया और भारत की नौसैनिक श्रेष्ठता को आक्रामक नौसैनिक विस्तार बताया।

सिंधु जल संधि, जिसे कभी सीमा पार सहयोग का एक मॉडल माना जाता था, अब पतन के कगार पर है। अगर भारत संधि रद्द कर देता है और पश्चिमी नदियों के प्रवाह को रोक देता है, तो पाकिस्तान सूखे, अकाल और आर्थिक विनाश की धीमी गति वाली आपदा का सामना करता है। फिर भी, भारत की विशाल मात्रा में पानी संग्रहीत करने की अक्षमता बाढ़ की द्वितीयक आपदा को खोल सकती है जो पाकिस्तान की दुर्दशा को और बढ़ा देगी। दोनों परिदृश्य – भुखमरी या डूबना – पहले से ही कगार पर खड़े राष्ट्र के लिए एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं।अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विश्व बैंक के नेतृत्व में, मध्यस्थता और वृद्धि को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। भारत के लिए, पानी को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का प्रलोभन मानवीय और राजनयिक लागतों के खिलाफ तौला जाना चाहिए।

संजय सिन्हा

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