आखिरकार बंगलादेश की कमजोर नसों को कब दबाएगा भारत?

कमलेश पांडेय

कभी ‘ग्रेटर बंगलादेश’ का स्वप्न संजोने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता और बंगलादेश के कार्यवाहक सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस अब अपने ही देश में ऐसे घिरे हैं कि जब उन्हें आगे का कोई रास्ता नजर नहीं आया तो फिर अपने जन्मदाता भारत पर ही अनर्गल लांछन लगाने लगे। वह अमेरिका, चीन, पाकिस्तान की गोद में खेलें, कोई बात नहीं लेकिन भारत और हिंदुओं से खेलेंगे तो अगले ऑपरेशन सिंदूर के लिए तैयार रहें। याद रखें, तब कोई बाप बचाने नहीं आएगा। हाल ही का पाकिस्तानी मंजर देख लें, अंजाम समझ लें और हो सके तो भारत के पड़ोस में बचकानी हरकत बंद कर दें।

बता दें कि अपनी पिछली चीन यात्रा के दौरान ही उन्होंने बढ़ चढ़ कर “भारत के चिकेन नेक” पर काबिज होने, पश्चिम बंगाल-उत्तर-पूर्व बिहार और उत्तर-पूर्व के सात बहन राज्यों को मिलाकर ग्रेटर बंगलादेश बनाने और नार्थ-ईस्ट राज्यों को लैंड लॉक्ड बताकर इलाकाई समुद्र का बेताज बादशाह होने का जो दिवास्वप्न उन्होंने देखा है, उसके मुताल्लिक भारत भी उन्हें दिन में ही तारे दिखाने की रणनीति बना चुका है। अब वो आगे बढ़ेंगे तो पीछे से भारत भी एक बार फिर बंगलादेश का अंग भंग कर देगा क्योंकि कभी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान का अंग भंग करवाकर भारत ने ही जिस बंगलादेश का निर्माण करवाया था, आज वही बांग्लादेश जब भारत को आंखें दिखाएगा तो अपने अंजाम को भी भुगतने को तैयार रहेगा। 

इस बात में कोई दो राय नहीं कि वहां की शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद महज 6 माह में ही परवर्ती कार्यवाहक सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में बंगलादेश भारत विरोधी चीनी, पाकिस्तानी और अमेरिकी अखाड़े का अड्डा बन चुका है जो उसके लिए शर्म की बात होनी चाहिए। यही वजह है कि इस विफल सरकार के खिलाफ अब वहां भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिससे देश में अस्थिरता बढ़ रही है। ऐसे में यूनुस ने अपना सारा दोष भारत पर मढ दिया है हालांकि भारत के पास उन्हें जवाब देने के लिए ऐसे-ऐसे विकल्प मौजूद हैं जिससे उनके होश उड़ सकते हैं।


स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश एक बार फिर से उबल रहा है, जिससे मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अस्थिरता के बवंडर की ओर निरंतर बढ़ रही है। उनकी सेना से ही उनकी ऊटपटांग नीतियों का विरोध हो रहा है जबकि उनकी सरकार के खिलाफ जनता द्वारा भी अविलंब चुनाव की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इससे मुल्क में तनाव का आलम व्याप्त हो चुका है। चूंकि

इस विरोध प्रदर्शन में सरकारी कर्मचारी भी शामिल हो चुके हैं। इसलिए अपनी उल्टी गिनती शुरू होते देख मोहम्मद यूनुस अपनी नाकामियों को बिना नाम लिए भारत पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। वहां उनकी लापरवाही और अदूरदर्शिता से अब जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए ‘विदेशी साजिश’ को जिम्मेदार बता रहे हैं। 

हकीकत ये है कि उन्हें सिर्फ चुनाव करवाने तक के लिए सरकार चलाने भर की जिम्मेदारी मिली है लेकिन जानकार बताते हैं कि वह चुनाव छोड़कर बाकी हर तरह के हथकंडे अपनाने में लगे हैं। बांग्लादेश की विदेश नीति, उसका संविधान, उसका इतिहास और यहां तक कि उसके जन्म की मूल अवधारणा तक को नकारने के लिए वो आत्मघाती दांव लगा रहे हैं। यही वजह है कि आज बांग्लादेशी फौज भी उनके विरोध में खड़ी हुई है। 

ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि मोहम्मद यूनुस जब से बांग्लादेश की सत्ता में आए हैं, भारत के चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों के साथ झूम-झूम कर नाचने-गाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें चीन के दम पर भारत के जिस भारत के चिकन नेक कॉरिडोर (सिलीगुड़ी कॉरिडोर) को दबा पाने की गलतफहमी हो गई है, ग्रेटर बंगलादेश बनवाने में विदेशियों व भारत के मुसलमानों के साथ मिलने का भ्रम हो चुका है और लैंड लॉक्ड नार्थ ईस्ट के चलते समुद्र का बेताज बादशाह होने के जो सपने उन्होंने चीन को दिखाए हैं, तब उन्हें शायद यह अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि भारत के रणनीतिकार उनके साथ और उनके हमदम चीन-पाकिस्तान-म्यांमार के साथ क्या क्या कर सकता है।


शायद मोहम्मद यूनुस शायद यह भूल चुके हैं कि बांग्लादेश की पैदाइश ही कुशल भारतीय विदेश नीति की सफल देन रही है जिसे तब अमेरिका व चीन नहीं रोक पाए थे। यह भारत की वीरता है जो युद्ध के मैदान में भारी पड़ती है। ऐसे में जब वो अपने जन्मदाता की संप्रभुता और अखंडता को ही चुनौती देने लगेंगे तो भारत को भी देर-सबेर अपने सटीक विकल्प तलाशने पड़ेंगे। यदि भारत के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के एक हालिया साक्षात्कार को देखें तो स्पष्ट प्रतीत होता है कि नागपुर मुख्यालय से भी मोदी सरकार को उसी तरफ इशारा किया गया है। 

मसलन, संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर और पांचजन्य में गत रविवार को छपे उनके एक इंटरव्यू के मुताबिक उन्होंने भारत के पड़ोस में ‘बुराई को खत्म’ करने के लिए शक्ति का इस्तेमाल करने की बात कही है, वह अब हमारी विदेश नीति का महत्वपूर्ण ध्येय बनने जा रहा है। उनके अनुसार जिन कुछ देशों में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है, वहां पर हिंदू समाज की ताकत का इस्तेमाल उनकी रक्षा के लिए किया जाना चाहिए।

बता दें कि पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के मुद्दे पर अपने विचार रखते हुए संघ के सर संघचालक ने ठीक ही कहा है कि, ”हमारी ताकत अच्छे लोगों की रक्षा और बुरे लोगों को नष्ट करने के लिए होनी चाहिए। जब कोई और चारा नहीं होता तो बुराई को जबरदस्ती खत्म करना पड़ता है, इसलिए, हमारे पास शक्तिशाली बनने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है क्योंकि हम अपनी सीमाओं पर बुरी ताकतों की बुराई देख रहे हैं।”


हमारा तात्पर्य यह है कि शायद जो बात मोहन भागवत ने खुलकर नहीं कहा, उसे असम के मुख्यमंत्री और पूर्वोत्तर के दिग्गज बीजेपी नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने अधिक विस्तार से बताने की कोशिश की है जो सराहनीय है। कुछ दिन पहले भी उन्होंने मोहम्मद यूनुस के भारत के चिकन नेक कॉरिडोर पर उनकी गलत नजर पर पलटवार करते हुए बांग्लादेश के पास भी दो चिकन नेक होने की जो बात कही थी, उससे बंगलादेश व उसके हमदमों का तिलमिलाना स्वाभाविक है। 

गौरतलब है कि उन्होंने गत 25 मई रविवार को एक एक्स (X) पोस्ट डाला है, जिसमें उन्होंने दो टूक लिखा है कि ‘जिन्हें भारत को चिकन नेक कॉरिडोर पर धमकाने की आदत पड़ चुकी है, उन्हें तीन तथ्यों को ध्यान से नोट कर लेना चाहिए।’ पहला, बांग्लादेश के पास अपने दो ‘चिकन नेक’ हैं और दोनों भारत से कहीं ज्यादा असुरक्षित हैं।

पहला है 80 किमी लंबा उत्तर बांग्लादेश कॉरिडोर जो दक्षिण दिनाजपुर से दक्षिण पश्चिम गारो हिल्स (मेघालय) तक जाता है। अगर यहां कोई रुकावट आती है, तो पूरा रंगपुर डिवीजन बांग्लादेश से कट सकता है । मतलब, रंगपुर का बाकी बांग्लादेश से संपर्क टूट जाएगा।

दूसरा है 28 किमी का चटगांव कॉरिडोर, जो साउथ त्रिपुरा से बंगाल की खाड़ी तक जाता है। यह कॉरिडोर भारत के ‘चिकन नेक’ से भी छोटा है पर यह बांग्लादेश की आर्थिक राजधानी और राजनीतिक राजधानी को जोड़ने वाला एकमात्र रास्ता है।

इससे साफ है कि बांग्लादेश के मौजूदा हालात, मोहम्मद यूनुस की ओर से सत्ता में बने रहने के लिए चलाए जा रहे खौफनाक एजेंडा की गवाही दे रहे हैं और भारत में अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए जो तल्ख विचार सामने आ रहे हैं, उससे भारतीयों को यह आस्वस्ति मिल रही है कि हमारा जवाब बहुत करारा होगा क्योंकि रंगपुर में चिकन नेक कॉरिडोर काटने का मतलब है कि भारत का सिलीगुड़ी कॉरिडोर बहुत ही विशाल हो जाएगा। कहने का तात्पर्य यह कि अभी जो लगभग 22 किलोमीटर की चौड़ी पट्टी है और जिसपर यूनुस और भारत के दुश्मनों की नजर लगी हुई है, वह अप्रत्याशित रूप से इतनी चौड़ी हो सकती है कि मतलब, पूर्वोत्तर की बहुत बड़ी समस्या एक ही झटके में खत्म हो सकती है।

वहीं, अगर हम त्रिपुरा के कुछ किलोमीटर तक नीच चले जाएं यानी चटगांव कॉरिडोर को भारत में मिला लें तो पूरे पूर्वोत्तर को जोड़ने वाला भारत का अपना समुद्र यहां भी हो जाएगा। देखा जाए तो यह सामरिक और आर्थिक रूप से बहुत ही फायदे का सौदा साबित होगा क्योंकि भविष्य में मोहम्मद यूनुस की तरह के विचार वाले बांग्लादेश के किसी अन्य शासक की भी आए दिन की होने वाली नौटंकी भी हमेशा के लिए खत्म की जा सकती है।


इसके अलावा, हमें यह भी पता होना चाहिए कि बांग्लादेश के चटगांव से नीचे ही म्यांमार का रखाइन इलाका है जहां पर रोहिंग्या मुसलमानों की गम्भीर समस्या है। इसका मतलब यह हुआ कि बांग्लादेश से चटगांव के कटते ही रोहिंग्या मुस्लिम समस्या खत्म हो सकती है क्योंकि तब भारत इस इलाके को रोहिंग्या मुसलमानों को सौंप सकता है और भारत में जो रोहिंग्या घुसपैठिए आ गए हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं, उन्हें यहां पर स्थायी रूप से भेजा जा सकता है क्योंकि यह उनका मूल इलाका है, जहां जाकर बसना उनके लिए भी आसान हो सकता है।


इसके अलावा, म्यांमार के रखाइन से ही थोड़ा उत्तर-पूर्व में उसका चिन इलाका है जो पहाड़ी क्षेत्र है और ईसाई (क्रिश्चियन) बहुल इलाका है, जो म्यांमार से अलग होना चाहता है। यह पहले से ही मिजोरम में मिलाए जाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में यदि भारत ने इस पूरे इलाके पर दबदबा कायम कर लिया तो पूर्वोत्तर की कई उग्रवादी समस्याओं का हल निकालना भी आसान हो सकता है क्योंकि विदेश की यह धरती अभी उग्रवादियों के लिए नर्सरी का काम करती है, जिसे नियंत्रित करना और खत्म करना भारत के हित में है।


इस बात में कोई दो राय नहीं कि 1971 में भारत, बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करवाकर एक स्वतंत्र मुल्क के रूप में जन्म दे चुका है। इसलिए ऊपर जो चार विकल्प दिए गए हैं, वह इसके लिए असंभव भी नहीं है क्योंकि मोहम्मद यूनुस के कार्यकाल में जिस तरह से बांग्लादेश फिर से पाकिस्तान की ओर झुक गया है और वहां पर आईएसआई की गतिविधियां बढ़ गई हैं, उसके दृष्टिगत भारत के लिए इस वास्तविकता को ज्यादा लंबे समय तक टालना आसान नहीं है। इसलिए भारत अपने भविष्य को महफूज रखने की नीति अपनाए तो क्षुद्र पड़ोसियों को खण्ड-खंड करके कमजोर कर दे। पाकिस्तान-बंगलादेश इसी के पात्र हैं और भारत को दृढ़तापूर्वक अपनी कार्रवाई व रणनीति को अंजाम देना चाहिए।

कमलेश पांडेय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here