भारतीय जनमानस कहां जा रहा है

शिवानंद मिश्रा

भारत जैसा देश जहां विभीषण और जामवंत जैसे नीतिज्ञ हुए जिनकी परंपरा का निर्वहन करते हुए विदुर से लेकर कौटिल्य तक हमारे आदर्श हुए,आज उन्हीं मनीषियों के देश का युवा निर्णयहीन सा दिखता है। पंचतंत्र और हितोपदेश पढ़ने वाले देश का युवा आज तर्कशीलता और वाक्पटुता का आचरण तक नहीं जानता।

ध्रुव, प्रह्लाद, नचिकेता और आदिशङ्कर के देश में जन्मा युवा आज मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। जिस देश में ‘यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता’ पढ़ाया जाता हो,उस देश में महिला अपराध का वर्ष दर वर्ष बढ़ना एक खतरनाक संकेत है। जिस देश में स्त्री का उदाहरण सीता, सती और सावित्री हों, वहां की नारी दहेज और एल्युमनी का केस करती है । जिस देश में राम,शिव और कृष्ण जैसे पुरुष का उदाहरण हो जिन्होंने स्त्री को सदैव पुरुष के समतुल्य माना, उस देश में पुरुष का स्त्री को सिर्फ घर और भोग तक सीमित रखना अजीब लगता है । रामायण और गीता पढ़ने वाले देश में अवसादग्रस्त युवा, योद्धाओं के वाङ्मय पढ़कर जवान हुआ युवा अपने अंतर्द्वंद्व से हार जा रहा है। भारत में बीते दशकों में हुई संचार क्रांति ने भारत के संयुक्त परिवार को एकल परिवार और परिवार नियोजन से लेकर आईवीएफ तक पहुँचा दिया है।

सभी के हाथ का फोन स्मार्ट हो गया और सब भोले बन गए। फोन पतला होकर स्लिम ट्रिम और फिट हो रहा है और युवा बेडौल होते जा रहे हैं।  खुद के शरीर में जंक फूड डाल रहे हैं और हर हफ़्ते समय से फोन का जंक क्लियर करते हैं। फैमिली टाइम नगण्य या शून्य हो रहा है और स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है।आज सिर ऊपर करके बात किए घंटों बीत जाते हैं।

गर्दन के दोनों किनारे की मसल्स पुश करना अच्छा लगता है क्योंकि युवा बेवज़ह के तनाव में हैं। चाय या सिगरेट पीते वक्त यहां तक कि अब लोग टायलेट में भी अपने फोन की स्क्रीन स्क्रॉल कर रहे हैं। यहां सब कुछ उपलब्ध है जो लोग देखना चाहते हैं, अश्लील साहित्य, पोर्न, क्राइम रिलेटेड, रिलेशनशिप, मोटिवेशनल हर तरह के वीडियोज और उनकी रील्स। 

एक डेटा के अनुसार औसत भारतीय दिन के पांच घंटे रील्स देख रहा है और पंद्रह सेकेंड में यह तय कर ले रहा है कि यह रील देखनी है या नहीं। फिर उसे स्क्रॉल करके आगे बढ़ जा रहा है।

लेकिन यही भारतीय एक निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखता। वह कम से कम बीस लोगों से उसका अच्छा और बुरा पूछता है। आज हम आप या अन्य कोई भी हो, देर रात जागते हैं, कारण बढ़ती अनिद्रा जिसका कारण भी हाथ का फोन है। इस फोन ने लोगों मौन कर दिया है।

हम घर आकर किसी से बात तक नहीं करते न कोई घरवाला बात करना चाहता है। किसी को यह चिंता नहीं कि कैसे हैं। आज ऑफिस में या कालेज या अन्य जहां भी हैं वहां क्या हुआ ?  साथी आपके साथ कैसे हैं? किसी को इन सबसे कोई मतलब नहीं।

सबको महीने की पगार या मार्कशीट से मतलब है। सभी अपने-अपने फोन में व्यस्त हैं। लोग इसी अकेलेपन से जूझते हुए अपने फोन को अपना साथी बना लेते हैं, मजबूरन। 

लेकिन लोग किन चिंताओं की चिता पे लेट रहे हैं, किसी को कोई परवाह नहीं। फिर अचानक हुई आत्महत्या के बाद लोग कहते हैं, सब कुछ अच्छा था। रोज हंसता हुआ आता-जाता था।ऐसा अचानक कैसे हुआ?

कुछ भी अचानक से नहीं हुआ है। वह व्यक्ति अपने मन की बात कहना चाहता था जिसे सुनने वाला कोई नहीं था। अगर वो बात समय पर किसी से कह देता तो आज उसका पंचनामा न हो रहा होता। वह ऐसी बात थी जिसे सबसे कहना उचित नहीं समझता था और शायद सामाजिक बदनामी से भी डरता था। किसी को दिया उधार,कोई प्रेम प्रसंग, किसी विषय में फेल होने का अपराधबोध ऐसे तमाम कारण होते हैं जिसे हम सबसे साझा नहीं कर सकते और यही हमारी मानसिक अस्वस्थता का रुप लेते हैं। आज मानसिक तनाव से हर पांचवां भारतीय ग्रसित है।

हर कोई पीड़ित होने के बाद आत्महत्या नहीं करता हैं। कुछ जगह संबंध-विच्छेद और अपराध के भी मामले देखे जाते हैं। विदेशों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्पेशल कोर्स,दवाएं और कुछ विशेष अस्पतालों का निर्माण किया गया है जहां पीड़ित व्यक्ति को परिवार जैसा देखभाल देने की तैयारी की गई है जबकि भारत में लोगों को मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करना ऐसा लगता है कि पागलों की बात कर रहा है। कुछ बुद्धिमान मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दे देते हैं। मानसिक स्वास्थ्य मनोचिकित्सकों के लिए ऐसा है,जैसे फल की दुकान में सब्जी बेची जाए।

राजनीति, तंत्र और व्यापार से इतर एक सत्य यह है कि अगले कुछ वर्षों बाद भारत में मानसिक स्वास्थ्य का व्यापार हजारों करोड़ का होने वाला है। क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं ?

शिवानंद मिश्रा

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