राजेश कुमार पासी
इजराइल और ईरान के बीच युद्ध विराम हो गया है लेकिन इस पर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल तो इस युद्ध पर भी उठ रहे हैं क्योंकि तीनों देश इस युद्ध में खुद को जीता हुआ बता रहे हैं। इजराइल और ईरान युद्ध लड़ रहे थे लेकिन अचानक अमेरिका ने इजराइल की तरफ से ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया । जहां अमेरिका इस युद्ध को रुकवाने का श्रेय ले रहा है वहीं दूसरी तरफ वो ईरान की परमाणु शक्ति को खत्म करने का दावा कर रहा है। अमेरिका के दावे पर अब कोई यकीन नहीं करता क्योंकि उसने भारत-पाक युद्ध रुकवाने की बात भी कही थी ।
पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री इशाक डार ने बयान दिया है कि हमने कई देशों से युद्ध रुकवाने की अपील की थी और सऊदी अरब सरकार ने सबसे पहले इस मामले में हमारी मदद के लिए हाथ बढ़ाया था । उन्होंने कहा है कि हमने भारत से युद्ध विराम करने की अपील की और भारत ने स्वीकार कर लिया। डोनाल्ड ट्रंप युद्ध रुकवाने का श्रेय लेने के चक्कर में अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने ईरान पर हमला करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया और तीसरे दिन ही अचानक ईरान पर हमला कर दिया । दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति को ऐसा करने की क्या जरूरत थी, ये डोनाल्ड ट्रंप को बताना चाहिए।
तीनों देश अपने आपको विजेता घोषित कर रहे हैं इसलिए सवाल उठता है कि जब तीनों ही जीत गए हैं तो हारा कौन है। सबसे पहले बात करते हैं अमेरिका की क्योंकि वह इस युद्ध का हीरो बनने की कोशिश कर रहा है । अमेरिका पहले तो युद्ध से दूर रहने की बात करता रहा और फिर अचानक ईरान पर हमला कर दिया । अमेरिका ने दावा किया है कि उसने ईरान के परमाणु ठिकानों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है, अब ईरान परमाणु बम नहीं बना सकता । इसके अलावा उसने युद्ध रुकवाने का दावा किया है और इस युद्ध का असली विजेता बन रहा है । अमेरिका के ऐलान के बाद भी दोनों देशों ने एक दूसरे पर हमला किया था लेकिन फिलहाल युद्ध रुक गया है तो अमेरिका युद्ध रूकवाने का श्रेय तो ले सकता है ।
वास्तव में इजराइल-ईरान युद्ध ऐसी जगह पहुंच गया था जहां दोनों देश ही इसे रोकने की कोशिश कर रहे थे । इजराइल पर ईरान जबरदस्त तरीके से मिसाइल हमले कर रहा था जिसे इजराइल की वायु रक्षा प्रणाली पूरी तरह से रोक नहीं पा रही थी । इजराइल के कई शहरों में ईरान ने बहुत बर्बादी कर दी है, विशेष रूप से तेल अवीव में तो ईरान ने तबाही मचा दी है । अगर ईरान यह हमले करता रहता तो इजराइल कई साल पीछे जा सकता था । इसके अलावा इजराइल के पास हथियारों की बहुत कमी हो गई थी, अगर यह युद्ध और आगे खिंचता तो उसके पास वायु रक्षा प्रणाली के लिए मिसाइलें भी कम पड़ने वाली थी । इजराइल की अर्थव्यवस्था भी भारी दबाव में आ गई थी । देखा जाये तो इजराइल ने कभी नहीं सोचा था कि ईरान उसके ऊपर ऐसा हमला करेगा, इसलिए वो इसके लिए तैयार नहीं था । दूसरी तरफ ईरान के पास भी मिसाइलों की कमी होती जा रही थी और इजराइल के लक्षित हमले ईरान में बड़ी बर्बादी कर चुके हैं । देखा जाये तो इस युद्ध ने ईरान की सैन्य शक्ति को बहुत कम कर दिया है और उसके परमाणु कार्यक्रम को भी पीछे धकेल दिया है । ईरान किसी भी तरह इस युद्ध को रोकना चाहता था । इस तरह देखा जाये तो दोनों ही देश युद्ध-विराम चाहते थे और अमेरिका की कोशिश से तुरंत मान गए ।
अमेरिका इजराइल के कहने से युद्ध में कूद तो गया था लेकिन वो इस युद्ध में फंसना नहीं चाहता था । इजराइल ने युद्ध शुरू किया था इसलिए ईरान को युद्ध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । वैसे देखा जाये तो इस युद्ध का क्या तुक था, किसी को समझ नहीं आ रहा है । न तो कोई इस युद्ध को समझ पा रहा है और न ही इस युद्ध का रूकना किसी को समझ आ रहा है । इजराइल युद्ध से ईरान की परमाणु बम बनाने की क्षमता खत्म करना चाहता था क्योंकि वो इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है लेकिन सवाल उठता है कि क्या इजराइल अपने लक्ष्य को हासिल कर चुका है । क्या अब ईरान परमाणु बम नहीं बनाएगा । हो सकता है कि ईरान को परमाणु बम बनाने में देर लग जाए लेकिन वो रूकने वाला नहीं है । अमेरिका ने दावा किया है कि उसने ईरान की परमाणु बम बनाने की क्षमता खत्म कर दी है तो दूसरी तरफ दोनों देशों ने यह कबूल कर लिया है कि अमेरिका ने ईरान पर हमला करने से पहले उसे सूचित कर दिया था ।
अब सवाल उठता है कि जब ईरान को हमले का पता था तो क्या उसने अपना जरूरी सामान वहां से हटा नहीं लिया होगा । दूसरी बात जब अमेरिका को ईरान पर हमला करना था तो उसे बताकर क्यों किया । ईरान ने कतर और दूसरे अरब देशों में अमेरिकी ठिकानों पर हमला किया लेकिन उसने भी अमेरिका को हमला करने से पहले सूचना दे दी । अजीब बात है दो देश एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं और इसकी पहले सूचना दे रहे हैं । क्या आपको नहीं लगता कि बड़ा अजीब खेल चल रहा है । क्या इससे पहले अमेरिका को किसी देश पर हमला करने से पहले सूचित करते हुए देखा गया है । ईरान ने अमेरिकी ठिकानों पर हमला करने के लिए 14 मिसाइलें दागी जिसमें से 13 को नाकाम कर दिया और एक मिसाइल निर्जन स्थान पर गिर गई । एक अजीब बात यह रही कि अमेरिका ने इन हमलों से पहले इन ठिकानों को खाली कर दिया था । अजीब मजाक चल रहा है. क्या इसी को युद्ध कहते हैं । अमेरिका ने कहा था कि अगर ईरान ने उसके हमलों का जवाब दिया तो ईरान को बर्बाद कर दिया जाएगा । वैसे देखा जाये तो वैश्विक राजनीति में अमेरिका के बयान का बहुत महत्व होता है, वो जो कहता है करके दिखाता है, यही उसकी ताकत है । यहां जब ईरान ने अमेरिका को जवाब दिया तो अमेरिका ईरान को सबक सिखाने की जगह युद्ध-विराम करने लगा ।
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि दोनों देश उनके पास युद्ध-विराम करवाने की भीख मांगते हुए आये और उन्होंने शांति की स्थापना की । ईरानी टीवी ने दावा किया है कि ट्रंप ने युद्ध-विराम की भीख मांगी थी, तब ईरान तैयार हुआ । इजराइल भी युद्ध-विराम करवाने की बात से पीछे हट गया है । अजीब बात है कि सभी दूसरे के झुकने की बात कर रहे हैं कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि वो भी झुका और युद्ध-विराम की मांग की । ये कैसा युद्ध-विराम है जिसमें किसी ने कोई घोषणा नहीं की, न इजराइल ने ईरान पर हमला न करने की बात कही और न ही ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम रोकने की बात कही ।
इस युद्ध में इजराइल और अमेरिका की एक कोशिश तो पूरी तरह नाकाम हो गई है कि वो ईरान में सत्ता परिवर्तन नहीं कर पाए जिसकी वो घोषणा कर रहे थे । दूसरी बात यह है कि बेशक दोनों देश ईरान की परमाणु क्षमता को खत्म करने की घोषणा कर रहे हों लेकिन वो कम जरूर हुई है लेकिन खत्म नहीं हुई है । ईरान ने युद्ध शुरू नहीं किया था इसलिए उसका तो कोई लक्ष्य नहीं था. उसे बर्बाद करने के लिए युद्ध शुरू किया गया था लेकिन ईरान ने साबित कर दिया कि वो इराक नहीं है जिसे अमेरिका ने आसानी से बर्बाद कर दिया था । देखा जाये तो ईरान ही इस युद्ध का असली विजेता बना है क्योंकि अमेरिका और इजराइल का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है । दोनों देशों ने जो सोच कर ईरान पर युद्ध थोपा था, वो बात पूरी नहीं हुई है बल्कि दुनिया ने ईरान की मिसाइल शक्ति को देख लिया है ।
इजराइल को पता चल गया है कि न तो उसकी और न ही अमेरिका की वायु रक्षा प्रणाली उसे ईरानी हमलों से बचा सकती है । अमेरिकी एयर डिफेंस सिस्टम की पोल दुनिया के सामने खुल गई है । ईरान के आकाश पर नियंत्रण होने के बावजूद दोनों देश मिलकर भी इजराइल पर ईरानी हमलों को रोक नहीं पाए । इजराइल इस बात पर खुश हो सकता है कि उसने ईरान के बड़े वैज्ञानिकों और सैन्य अधिकारियों को इस युद्ध में ठिकाने लगा दिया । सवाल उठता है कि क्या इससे ईरान को कोई बड़ा फर्क पड़ने वाला है । मेरा मानना है कि कुछ वैज्ञानिकों और अधिकारियों के मरने से ईरान को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है । अमेरिका की हार तो इससे ही साबित हो जाती है कि वो अपने सहयोगी इजराइल पर ही भड़क रहा है क्योंकि उसे पता है कि इस युद्ध ने उसकी बुरी तरह से भद्द पिटवा दी है । पाकिस्तान का दोगलापन पूरी दुनिया ने देख लिया. एक तरफ उसने अमेरिका का साथ दिया तो जब ईरान पर अमेरिका ने हमला किया तो उसकी निंदा कर दी । मुस्लिम देशों ने ईरान की अपील के बावजूद उसका साथ नहीं दिया, इससे मुस्लिम उम्माह की बात भी बेमानी हो गई है ।
भारत की नीति सबसे बढ़िया रही कि उसने इस युद्ध से दूरी बनाकर रखी क्योंकि दोनों देश ही उसके मित्र देश हैं । इस युद्ध ने साबित कर दिया कि अमेरिका पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता. अगर उसके ऊपर भरोसा किया तो आपकी बर्बादी तय है । देखा जाये तो इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका का हुआ है । जब इस युद्ध का विश्लेषण किया जाएगा तो सैन्य विशेषज्ञों को यह बात समझ आ जाएगी । इस युद्ध ने साबित कर दिया है कि अमेरिका की दादागिरी अब ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है । इस युद्ध ने यह बात भी साबित कर दी है कि युद्ध अपने दम पर लड़ना चाहिए किसी दूसरे के भरोसे युद्ध लड़ना बर्बादी को बुलावा देना है । विशेष रूप से अमेरिका के भरोसे युद्ध लड़ना तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है ।
राजेश कुमार पासी