समाज

क्यों बढ़ रहे हैं गुमशुदी के आंकड़े?

डॉ.रमेश ठाकुर


रहस्यमय ढंग से गुमशुदा होते लोगों को धरती निगल रही है या आसमान खा रहा है? ये सवाल गुजरे बीते महीनों से सभी के जुबान पर है। अनसुलझी पहेली जैसा बना हुआ है ये विषय। भारत में गायब लोगों के आँकड़ों में करीब 42 फीसदी का इजाफा हुआ है जो अपने आप में अचंभित करता है। बीते सप्ताह आई ‘नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो’ की रिपोर्ट में भी बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट की माने तो इस साल पूरे देश में एक लाख 16 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। इजाफे की गति ने ही वैश्विक स्तर पर लापता लोगों के मामले में भारत को दूसरे पायदान पर काबिज कर दिया है। गुमशुदगी में राजधानी दिल्ली अव्वल है लेकिन अछूता कोई प्रदेश नहीं है। चाहे मैदानी राज्य हों या पहाड़ी, हर जगह से लोग नियमित गायब हो रहे हैं। दुख ये कि बरामदगी का आंकड़ा बहुत धीमा है। ये कृत्य निश्चित रूप से बदनामी का ऐसा तमगा है जो किसी भी विकसित देश की महकती व्यवस्था पर कालिख पोतने जैसा है।

 
उत्तराखंड के हालात तो और भी खराब बताए गए हैं। वहां रोजाना तीन लोग रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे है. उनका भी रिकवरी रेट बहुत कम है। असंख्य लोगों का गायब होना और किसी का सुराग ना लगना अपने आप में चौकाता है जबकि, वर्षों से निर्धन या अति पिछड़े देशों में गायब लोगों के संबंध में हम सुनते आते थे जिनमें अफगानिस्तान, बलूच, पाकिस्तान, बाग्लादेश, योगांडा व कुछ अफ्रीकी देश शामिल थे। लोगों के गायब होने खतरा भारत में एकाध दशकों से ज्यादा मंडराया है। मेघालय, सिक्किम जैसे शांत प्रदेशों तक से लोग लापता हो रहे हैं। वहीं, दिल्ली में इसी साल पिछले मात्र 210 दिनों में 8 हजार के करीब लोग गायब हुए जिनमें सिर्फ 290 लोग ही खोजे जा सके। सवाल उठता है कि उन्हें आसमान निगल गया या धरती खा गई?

 
गुमशुदगी को लेकर विभिन्न प्रदेशों की सरकारों से लेकर प्रशासन और पुलिस महकमा भी अनोखी थ्योरी को सुलझाने में नाकाम है। खोजबीन और तमाम कोशिशों के बावजूद भी उनकी जांच-पड़ताल बेनजीता साबित हो रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी लापता लोगों का सिलसिला रूकने के नाम नहीं ले रहा। गुमशुदगी के ताजे आंकड़े एनसीआरबी के अलावा ‘जोनल इंटीग्रेटेड पुलिस नेटवर्क’ (जिपनेट) ने भी जारी किए हैं जिनसे न सिर्फ शासकीय महकमों में खलबली है बल्कि जनमानस में भी डर बैठा है। जहां आंकड़े बढ़े बताए गए हैं, वहा के वासी कुछ ज्यादा ही डरे हुए हैं, उन्हें अपनी और अपने परिजनों की चिंता समाने लगी हैं। आंकड़ों में ऐसे अनगिनत नौनिहाल भी हैं जो या तो पार्कों में खलने गए या टयूशन से पढ़कर वापस ही नहीं आए। बिहार, पंजाब, राज्यस्थान, तेलंगाना, हरियाणा में 2022-23 और 2023-24 के आंकड़ों में 22 फीदसी बढ़ोतरी भी चिंता बढ़ाती है।


गायब व्यक्तियों के प्रस्तुत आंकड़ों में जिपनेट ने एक और बात डरावनी कही है। विक्षिप्त किस्म के और बुजुर्ग वर्ग के जितने भी शव पुलिस को बरामद हुए, उनमें चौकाने वाली बात ये निकली, उन ज्यादातर शवों में किडनियां गायब मिली। ये मामला सीधे-सीधे मानव तस्करी और किडनी गैंग से जुड़ा प्रतीत होता है। समय-समय पर ऐसी खबरें आती ही रहती कि बड़े अस्पतालों में अप्रत्यक्ष रूप से किड़नी गिरोह सक्रिय है जो किडनियों की डिमांड को पूरा करने के लिए बुजुर्गों, मजदूरों, विक्षिप्तों और निर्बलों को टारगेट करते हैं। देशभर के नामी बड़े अस्पताल इन हरकतों में बदनाम रहे भी हैं। किडनी चोर का बड़ा गैंग कुछ वर्षों पहले एक्सपेज भी हुआ था जिसके आका को पुलिस ने नेपाल से धरा था। 2024-25 के लापता आंकड़ों में पश्चिम बंगाल और असम के हालात तो और भी डरावने बताए गए हैं। गुमशुदगी के आंकड़े वैसे तो देश भर से सालाना या महीनों के हिसाब से पेश होते ही हैं जिनमें एकाध या दर्जन भर लोगों के ही गायब होने की सूचनाएं होती हैं।

 
गौरतलब है कि गायब लोगों के मामलों में दिल्ली का आंकड़ा बेहद चिंताजनक है। 1 जनवरी से लेकर 23 जुलाई 2025 के बीच 7 हजार 880 लोग गायब हुए हैं। इससे केंद्र सरकार भी चिंतित है। खुदा-न-खास्ता अगर ये गति समूचे देश में फैल गई तो कोहराम ही मच जाएगा। इसे किसी भी सूरत में रोकना होगा। व्यक्तियों के परिजन पुलिस थानों में चक्कर काटते हैं। मामले फाइलों में धूल फांकते रहते हैं। परिजन खुद से भी कोशिश करते हैं पर सफलता उन्हें भी नहीं मिल रहीं? गुमशुदगी मामलों में ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ सदैव अव्वल रहा था। दूसरे नंबर पर भारत है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रत्येक घंटे में 88 महिलाएं, बच्चे और पुरुष गायब हो रहे हैं, यानी रोजाना 2,130 और हर महीने 64,851। 2022 से लेकर 2024 के बीच इन आंकड़ों में बेहताशा उछाल आया। ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले महानगरों में गति ज्यादा है। लापता में सर्वाधिक संख्या बच्चों और महिलाओं की है। पुरुष भी हैं, लेकिन बच्चियों और महिलाओं से कम।

 
गायब लोगों के संबंध में कानाफूसी ऐसी है कि लापता लोगों को पकड़ने में कुछ गिरोह सक्रिय हुए हैं। जो मानव तस्करी के अलावा, भीख मंगवाने जैसे कृत्यों में गायब लोगों को डाल रहे हैं। जहां तक दिल्ली में गायब लोगों की बात है तो दूसरे राज्यों के मुकाबले वहां पुलिस हमेशा चौकन्नी रहती है। बावजूद इसके ऐसा हाल? ताज्जुब ये भी है ऐसी घटनाएं हाई सिक्योरिटी जोन जैसे संसद मार्ग, चाणक्यपुरी, कनेटप्लस, तिलक मार्ग क्षेत्रों में हो रही हैं जो क्षेत्र चौबीसों घंटे सीसीटीवी के निगरानी में हैं। प्रशासन बरामदगी को लेकर खाली हाथ है। वहां गायब हुए लोगों के आंकड़ों को जिपनेट जैसी विश्वसनीय संस्था ने उजागर किया हैं जो इस क्षेत्र में माहिर बताई जाती है। संस्था एक केंद्रीकृत डेटाबेस है जिनके आंकड़ों का प्रयोग, पुलिस, कोर्ट व कानूनी प्रक्रियाओं और जांच एजेंसियां करती हैं। अज्ञात शवों का भी विश्वसनीय डाटा उनके पास होता है। संस्था विभिन्न थानों, सरकारी संस्थाओं और प्लेटफार्मों से डाटा एकत्र करती है। जिपनेट के आंकड़ों पर एनसीआरबी की रिपोर्ट ने भी मुहर लगा दी है।

 
समूचे भारत में फैली गायब होने की गति को थामना होगा। इस सरकार का कहना कि भारत विशाल जनसंख्या वाला देश है इसलिए ये आंकड़े बड़े लगते हैं पर, ये चिंता व्यक्त करने का मुकम्मल तरीका कतई नहीं हो सकता। एक भी व्यक्ति का गायब होने का मतलब है सिस्टम की कार्यशैली पर सवाल उठाना। रिवकरी की स्पीड बढ़नी चाहिए, सुरक्षा तंत्र को चौकन्ना करना होगा। दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करनी होगी। गायब लोगों में अभी तक पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र जैसे राज्य ही बदनाम थे लेकिन ये तपिश अब शांत प्रदेशों तक पहुंच गई है। लापता लोगों के कम रिकवरी रेट पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है। दरअसल, ये ऐसा मानवीय पहलू है जिस पर सभी को गंभीरता से विमर्श करने की आवश्यकता है। ये ऐसी समस्या है जो किसी के भी दरवाजे पर आकर दस्तक दे सकती है।



डॉ.रमेश ठाकुर