आर्थिकी जन-जागरण

नीति आयोग पर बेवजह प्रलाप क्यों?

niti aayog
सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान मोदी सरकार ने भारत को विकास की राह पर ले जाने के लिए अभूतपूर्व काम करना प्रारंभ कर दिए हैं। मोदी सरकार का जोर है कि देश के विकास के लिए सारे काम सांघिक भाव से किए जाएं तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। इसी सामूहिक भाव को निहितार्थ करता हुआ नवगठित नीति आयोग दिखाई दे रहा है। लगभग छह दशक पुराना योजना आयोग अब अतीत का हिस्सा बन चुका है। इसकी जगह नीति आयोग ने ले ली है। हालांकि स्वतंत्रता दिवस पर अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री ने नए ढांचे को अस्तित्व में लाने के संकेत दे दिए थे। पैंसठ साल पुराने योजना आयोग काफी पहले ही अपनी प्रासंगिकता खो चुका था। आर्थिक बदलाव के इस दौर में योजना आयोग की जगह ऐसी संस्था की जरूरत लम्बे समय से महसूस की जा रही थी जो समय के हिसाब से चल सके। बहरहाल नरेन्द्र मोदी इसमें सफल रहे। योजना आयोग की जगह नीति आयोग के गठन को लेकर विपक्ष जिस ढंग से हो-हल्ला मचा रहा है वह समझ से बाहर है।
लाल किले की प्राचीर से अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री ने नई संस्था की घोषणा करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि नई संस्था का आकार, आत्मा, सोच और दिशा नई होगी। नीति आयोग के गठन का निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक के करीब तीन सप्ताह के बाद आया है। सभी जानते हैं कि इस बैठक में ज्यादातर मुख्यमंत्री पुराने दौर की इस संस्था के पुनर्गठन के पक्ष में थे। हां, कुछ कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने मौजूदा ढांचे को खत्म करने का विरोध जरूर किया था। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि नीति आयोग का गठन केन्द्र और राज्यों की आपसी सहमति से हुआ है और ऐसे में नीति आयोग को लेकर विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस के विरोध का कोई औचित्य नहीं है। नीति आयोग का विरोध कर रही कांग्रेस के नेता शायद यह भूल गए हैं कि जिस योजना आयोग के खत्म करने पर वह शोर मचा रहे हैं, कांग्रेस में उस संस्था को खत्म करने के स्वर पहले ही उठ चुके हैं। अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी योजना आयोग के ढांचे  पर सवाल उठा चुके हैं।  जिन्होंने पिछले साल 30 अप्रैल को कहा था कि सुधार प्रक्रिया शुरू होने के बाद के दौर में मौजूदा ढांचे का कोई अत्याधुनिक नजरिया नहीं है। इससे पहले कांग्रेस शासन में ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी योजना आयोग को जोकरों का समूह निरूपित किया था। इससे साफ प्रमाणित होता है कि कांगे्रस के नेता भी इसकी कार्यशैली से संतुष्ट नहीं थे। लेकिन आज आज कांगे्रस नेता केवल इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसे भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी की सरकार ने किया है।
दरअसल विकास का नेहरू मॉडल वर्तमान आर्थिक दौर में अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। और सच तो यह है कि नेहरू के मॉडल को दशकों तक ढोने का ही नतीजा है कि भारत विकास के उन आयाम और ऊंचाइयों को नहीं छू पाया जहां उसे होना था। घरेलू मोर्चा हो या वैदेशिक मामले, नेहरू के कथित विकास के मॉडल ने भारत का सिर दुनिया के सामने शर्म से झुकाया। हम न तो अपने घर को दुरुस्त कर पाए और न ही दुनिया में अपनी धाक जमा पाए। महंगाई, भ्रष्टाचार देश को घुन की तरह चाट गए। आम आदमी को रोजी-रोटी से जूझना पड़ा और उसे आत्म सम्मान से जीने का अधिकार भी नहीं मिला। आज जब नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में वैश्विक जगत में भारत के उत्थान की संभावनाएं बनती दिखाई दे रहीं हैं, तब पुरानी राह को छोडऩा ही अत्यधिक प्रासंगिक लगता है। हम जानते हैं कि पुरानी राह पर हम लगभग 66 साल तक चले और सुखद परिणाम की चाह रखते हुए निरंतर चलते रहे। यह कार्य समय गंवाने जैसा ही कहा जाएगा। सरकारों को जब इसका आभास हो गया था कि योजना आयोग के कार्य अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रहे, तब इसको समाप्त या परिवर्तित करने में रुचि क्यों नहीं दिखाई।
बदली हुई परिस्थितियों में विकास की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए एक नई दिशा और तेजी की आवश्यकता है। समय बदल गया है और मुद्दे भी बदल गए हैं। इस नीति आयोग  के गठन के पीछे भी सरकार की मंशा साफ है। नई संस्था के जरिए ज्यादा नीतिगत फैसले लिए जा सकेंगे। नीति आयोग के जरिए सरकार चाहती है विकास की नीतियों में राज्यों की भी भागीदारी भी रहे। नीति आयोग राज्यों के सम्पूर्ण आर्थिक विकास के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करेगा। नीति आयोग के गठन के पीछे स्पष्ट सोच है कि केन्द्र और राज्य देश के विकास में अहम जिम्मेदारी निभाएं। भाजपा ने 1998 में अपने घोषणापत्र में भी देश की बदल रही जरूरतों को ध्यान में रखते हुए योजना आयोग के पुनर्गठन की बात कही थी। अप्रासंगिक हो चुकी संस्थाओं और कानूनों को समाप्त करना समय की जरूरत है और इस बदलाव का विरोध किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। कांग्रेस ने योजना आयोग को समाप्त करने की सरकार की मंशा के पीछे जो तर्क दिया है वह हास्यास्पद ही है। कांग्रेस और वामदलों ने कहा है कि नीति आयोग के गठन से राज्यों के साथ भेदभाव बढ़ेगा। विपक्ष के इन हास्यास्पद तर्क से समझा जा सकता है कि विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए इस बदलाव को मुद्दा बना रहा है। जहां तक  कांग्रेस का सवाल है उसके पास अब जनाधार भी नहीं बचा है। उसका यह कदम मोदी सरकार के क्रांतिकारी कदमों का विरोध कर अपने वजूद को जिंदा रखने से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
मोदी सरकार ने यह पहले ही तय कर दिया है कि नीति आयोग एक टीम भावना के साथ काम करेगा, यानि सभी के लिए सब काम की भावना उसे काम करना। जिस प्रकार से भारतीय क्रिकेट टीम विजय प्राप्त करने के लिए सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन करती है, उसी प्रकार के प्रदर्शन की अपेक्षा इसमें निहित है। वास्तव में इसी प्रकार का भाव देश के लिए सारे दलों को करना चाहिए, फिर आप स्वयं देखेंगे कि देश कितनी ऊंचाइयां प्राप्त करता है।