क्यों उलझा है अभी तक अयोध्या विवाद? 

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अनिल अनूप

अयोध्या विवाद अभी तक अनसुलझा है, बल्कि नए बयान और दावे किए जा रहे हैं, जो 1992 के हालात पैदा कर सकते हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला ने अजीब सवाल किया है कि भगवान राम तो पूरे विश्व में हैं, सर्वव्यापक हैं, फिर अयोध्या में ही राम मंदिर क्यों बनाया जाए? दूसरे, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के प्रवक्ता ने बयान दिया है कि यदि विहिप अयोध्या में 5 लाख की भीड़ जुटाने का दावा कर सकती है, तो उनकी पार्टी 25 लाख लोग अयोध्या में जमा कर सकती है। अयोध्या में मस्जिद की लड़ाई खत्म नहीं हुई है। एसडीपीआई के एक नेता तसलीम रहमानी ने विवादित स्थान पर राम की मूर्तियों को ‘अवैध’ कहते हुए उन्हें हटाने की मांग की है। हिंदू पक्ष यह है कि अयोध्या में साधु-संतों की एक धर्मसभा की गई, लेकिन वह बेनतीजा रही। वाराणसी में भी द्वारिका एवं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में एक और धर्मसभा की गई है। उसमें दावा किया गया कि कोई सरकार या सियासी दल भव्य राम मंदिर का निर्माण नहीं कर सकते। राम मंदिर शंकराचार्य के नेतृत्व और महात्माओं के सहयोग से ही बनेगा। ये दो परस्पर विरोधी थ्योरियां राम मंदिर को लेकर सामने आई हैं। बुनियादी सवाल मंदिर निर्माण का तो है ही। अयोध्या की विवादित भूमि का मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और वह भी मिलकीयत को लेकर फैसला देगा, लिहाजा सभी धर्मसभाएं बेमानी हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने एक मंत्री के सौजन्य से 11 दिसंबर की तारीख घोषित की थी, लेकिन यह भी अस्पष्ट है कि उस तारीख को क्या होगा? 11 दिसंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है। इस मुद्दे पर मोदी सरकार अध्यादेश पारित करे या कोई बिल पारित करके कानून का रास्ता अख्तियार किया जाए। इन दोनों ही प्रयासों को कानूनन चुनौती दी जा सकती है। रही बात एसडीपीआई की, तो वह एक बौनी-सी पार्टी है, जिसका उत्तर भारत में शून्य जनाधार है। उसने केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु में कुछ उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन विधायक कोई भी नहीं बन पाया। अयोध्या में मस्जिदवादी मुसलमानों की भीड़ जमा करना भी एक भभकी हो सकती है, क्योंकि इसी पार्टी के अन्य नेता उसका खंडन कर रहे हैं, तो फिर अयोध्या में मस्जिद की मांग क्यों उठाई गई है? मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। दरअसल अयोध्या में यह धार्मिक टकराव की कवायद ऐसी है, जो 1992 सरीखे हालात पैदा कर सकती है। अयोध्या और उसके आसपास बसे मुस्लिम परिवार ऐसा ही खौफ महसूस कर रहे हैं, लिहाजा पलायन भी हुआ है। कई परिवारों ने घरों में खाने-पीने का अतिरिक्त सामान और जरूरत की चीजें जमा कर रखी हैं। उन्हें आशंका है कि अयोध्या में माहौल कभी भी बिगड़ सकता है! यह आम नागरिक और राष्ट्र की सुरक्षा का सवाल है। फिर भी धमकी दी जा रही है कि 6 दिसंबर को दिल्ली में बाबरी मस्जिद पर रैली का आयोजन किया जाएगा। 1992 में इसी तारीख पर कारसेवकों ने कथित बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया था। जिन लोगों को वह दौर याद है, उन्हें अच्छी तरह ध्यान होगा कि बाबरी विध्वंस के बाद किस पैमाने पर दंगे भड़के थे। यदि फिर 1992 वाले हालात बन रहे हैं, तो उन्हें शांत करने का दायित्व भी केंद्र और उप्र सरकारों का है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिए।

2 COMMENTS

  1. क्यों उलझा है अभी तक अयोध्या विवाद? क्योंकि हम चिरकाल से अग्नि में घी स्वरूप लेखन करते विषय को प्रचंड किये जा रहे हैं!

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