राजनीति

 हंगामा है क्यों बरपा…

सर्व दलीय प्रतिनिधि मंडलों का गठन 

बाकी सब ठीक, पर देशहित प्रथम 

डॉ घनश्याम बादल

   पहलगाम की आतंकवादी घटना के बाद यह तय था कि भारत एक्शन लेगा और एक्शन लिया गया जिसकी परिणीति 6 व 7 मई की रात में पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस कर देने वाली कार्रवाई के रूप में हुई । चोट खाए पाकिस्तान ने भी अपने पाले हुए आतंकवादियों का पक्ष लेते हुए भारत पर पलट कर हमला करने की कोशिश की जो नाकाम रही । 

   बात-बात में परमाणु बम की धमकी  एवं गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान की हालत केवल चार दिन के जंग के बाद ही खस्ता हो गई और जब भारत में उसके तेरह में से ग्यारह एयरबेस क्षतिग्रस्त कर दिए और कम से कम छह पूरी तरह तबाह कर दिए व उसकी मिसाइलें एवं लड़ाकू विमान मार गिराए तथा ब्रह्मोस का प्रयोग करते हुए (यदि मीडिया की रिपोर्ट को सच माने तो)  उसे परमाणु बम के उपयोग करने की संभावना से भी वंचित कर दिया, तब आनन फानन में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्वीट करके दुनिया को इस संघर्ष विराम या सीज फायर की जानकारी दी तो एक तरह से दक्षिण एशिया एवं दुनिया ने राहत की सांस ली । 

     वहीं यदि डोनाल्ड ट्रंप के वक्तव्य को मानें तो लाखों लोग मरने से बचे लेकिन यहीं से देश में राजनीतिक उठा पटक शुरू हो गई । विपक्ष ने मुखर होकर पूछा कि ऐसे क्या कारण थे जिसकी वजह से अचानक ही संघर्ष विराम की घोषणा करनी पड़ी और विभिन्न कोणों से सरकार पर जब हमले हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को देश को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर समाप्त नहीं हुआ है. अभी तो उसे केवल स्थगित किया गया है। साथ ही साथ उन्होंने कड़े शब्दों में पाकिस्तान एवं आतंकवादियों सहित दूसरे देशों को भी चेतावनी दे दी की भारत के आंतरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाएगा तथा आतंकवाद  की किसी भी घटना को ‘एक्ट आफ वार’ समझा जाएगा जिसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। 

   भले ही सरकार एवं विभिन्न रक्षा विशेषज्ञों की दृष्टि में भारत का पलड़ा इस संघर्ष में भारी रहा तथा पाकिस्तान को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा लेकिन दुनिया में अपना पक्ष रखना भी बहुत ज़रूरी था, इसलिए भारत सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडलों का गठन किया जिनका नेतृत्व जाने माने नेताओं को सौंपा गया।  59 सदस्यों वाले इन साथ प्रतिनिधि मंडलों में लगभग सभी प्रमुख दलों के सदस्यों को शामिल किया गया लेकिन विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब कांग्रेस ने अपनी ही पार्टी के नेता शशि थरूर को अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेता चुने जाने के बावजूद इस पर आपत्ति दर्ज कराई । कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि जिन चार नेताओं के नाम कांग्रेस ने दिए थे, उनमें से केवल आनंद शर्मा को ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है और सरकार में अपनी मर्जी से ही शशि थरूर एवं सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं को कांग्रेस का प्रतिनिधि बनाकर भेजने का निर्णय लिया जो उसके लिए आपत्तिजनक है।

     एक तरह से देखे तो कांग्रेस का पक्ष अनुचित नहीं है क्योंकि हर दल को अपने उपयुक्त नेता को ऐसे प्रतिनिधि मंडलों में शामिल कराने का अधिकार है लेकिन सरकार का कहना है कि उसने ऐसी कोई सूची मांगी ही नहीं थी तथा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए जिन नेताओं को उसने योग्य पाया, उनका चयन इन प्रतिनिधि मंडलों में किया गया है । इस दृष्टि से सरकार का पक्ष भी सही है क्योंकि जब राष्ट्र की बात आती है तब दल नहीं, योग्यता प्रमुख हो जाती है और इसका उदाहरण स्वयं कांग्रेस की पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने उस समय दिया था जब 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का पक्ष रखने के लिए उसने अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में वहां प्रतिनिधिमंडल भेजा था तो कह सकते हैं कि ऐसी परंपरा की शुरुआत स्वयं कांग्रेस ने की थी। 

     वैसे ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेजे हैं. इससे पूर्व भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल भेजे जाते रहे हैं. 2008, 1971 एवं 1965 में भी भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधि मंडलों को भेजा गया था। 

     जिस तरह भारत के सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर पाक की तरफ से खड़े किए गए इस संकट में साथ दिया, वह एक प्रशंसनीय कदम था लेकिन संघर्ष विराम के बाद से ही जिस तरह की राजनीति की जा रही है उससे इस बात का भी अंदेशा है कि सेना द्वारा लगभग जीते गए जंग की महत्ता को राजनीतिक प्रतिद्वंदिता कहीं महत्वहीन न कर दे । इसलिए सभी राजनीतिक दलों को चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, इस बात पर ध्यान देना होगा कि ऐसा परिदृश्य न प्रस्तुत करें कि दुनिया भर में भारत की जग हंसाई हो। 

    खैर, एक बार फिर से लौट कर चिंतन करते हैं कि इन प्रतिनिधि मंडलों के गठन का लक्ष्य क्या है तथा यह भारत के किस-किस पक्ष को दुनिया के सामने रखेंगे और पाकिस्तान षड्यंत्रों एवं आतंकवादी मानसिकता को बेनकाब करेंगे । भारत सरकार के एजेंडे के अनुसार यह प्रतिनिधिमंडल विभिन्न देशों में जाकर उन परिस्थितियों के बारे में अवगत कराएंगे जिनके चलते भारत को पलटकर वार करना पड़ा तथा किस तरह पाकिस्तान अपने पाले हुए आतंकवादियों के माध्यम से भारत को निरंतर संकट में डालता रहा है । साथ ही साथ उनका एक बिंदु यह भी होगा कि यदि पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या अन्य देशों द्वारा अनावश्यक रूप से आर्थिक सहायता दी जाती है तो यह देश इसका इस्तेमाल सभी शर्तों एवं नियमों का को अनदेखा करके एक बार फिर से हथियार खरीदने एवं आतंकवादियों को शहर देने के लिए करेगा। 

  यह तो सभी जानते हैं कि राजनीति में मुद्दों के साथ-साथ भावनाओं का भी दोहन किया जाता है और उनसे राजनीतिक लाभ लेने की भरसक कोशिश होती है। ऐसा करने में न सत्ता पक्ष गुरेज करता है न ही विपक्ष । अभी हम उस कठिन दौर से गुजर रहे हैं जहां एक तरफ देश के हित की बात है, वहीं साथ ही साथ अपने दल के हितों की रक्षा करने की भी घड़ी है। हर दल एवं नेता को अधिकार है कि वह अपनी हितों की रक्षा करें तथा प्रतिपक्षी पर पलटकर वार करें । 

  विपक्ष का काम है सरकार की कमियों को उजागर करना एवं उसे किसी भी तरह सत्ता से हटाने की कोशिश करना जबकि सरकार या सत्ता में बैठे हुए दल का प्रयास रहता है कि वह अपनी मठाधीशी बरकरार रखें और विपक्ष को सांसत में डाले रखें जिससे उसकी कुर्सी बची रहे । 

   यह सब ठीक है पर सबसे मुख्य बात तो वही है कि यदि देश सुरक्षित रहेगा तभी आपकी सत्ता तथा सत्ता में आने की संभावना भी सुरक्षित रहेगी इसलिए क्षणिक आवेश या निहित स्वार्थ के चलते यह उचित नहीं होगा कि भारत के हितों की अनदेखी की जाए।

डॉ घनश्याम बादल