भारत-बांग्लादेश क्रिकेट मैचका विरोध क्यों ?

बांग्लादेश इस समय गैर मुस्लिम समुदायों अर्थात अल्पसंख्यकों के लिए जहन्नुम बन गया है | चूँकि वहां अल्पसंख्यकों में हिन्दुओं की संख्या अधिक है इसलिए हिंसा और दंगों का असर हिन्दुओं पर ही सर्वाधिक पड़ता है | एक समय था जब बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या लगभग बाईस प्रतिशत हुआ करती थी | किन्तु आज यह संख्या घटकर लगभग आठ प्रतिशत या इससे भी कम रह गई है क्यों ? जानकारों का कहना है कि यदि जिहाद  ऐसे ही जारी  रहा तो 2050 तक बांग्लादेश हिंदू विहीन हो जाएगा | यहाँ हिन्दू बिहीन का अर्थ केवल हिन्दुओं से नहीं है अपितु सिख, बौद्ध, ईसाई सभी से है | यदि संयुक्तराष्ट्र द्वारा शीघ्र ही कठोर कदम नहीं उठाए गए तो ये सब-के-सब धीरे-धीरे मिटा दिए जाएँगे | कुछ की हत्या करदी जाएगी, कुछ का धर्मान्तरण हो जाएगा और कुछ भगा दिए जाएंगें या स्वयं भाग जाएँगे | प्रश्न यह भी है कि देखते ही देखते चौदह प्रतिशत हिन्दू घट गए और संसार में कोई हलचल, कोई प्रतिक्रिया या विरोध नहीं हुआ | भारत में एक मुसलमान की हत्या होती है तो यह जाने बिना,कि इसमें मृतक दोषी था या निर्दोष, हत्या आपसी रंजिश में हुई या अन्य कारण से ,जिहादियों ने भारत के सभी हिन्दुओं को असहिष्णु घोषित कर दिया | कई मुस्लिम देशों ने विरोध प्रदर्शन किया | केवल एक मुसलमान की हत्या पर ? मैं यहाँ किसी हत्या का समर्थन नहीं कर रहा, मेरे कहने का आशय यह है कि एक व्यक्ति की हत्या पर पूरी दुनिया में विरोध प्रदर्शन होते हैं और यहाँ चौदह प्रतिशत आबादी को मार काट कर समाप्त कर दिया और संसार में कोई हलचल,आन्दोलन या असहिष्णुता नहीं क्यों ?

अस्तु, मेरे कहने का आशय यह है कि आज जिस प्रकार से बांग्लादेश में हिन्दुओं को मारा जा रहा है उस समय हम भारत के लोग क्या कर रहे हैं ? हम बांग्लादेश के साथ क्रिकेट खेल रहे हैं ! जहाँ विरोध होना था वहाँ हँसी खेल चल रहा है |यह नीरसता,निष्ठुरता और पलायनवाद ही जिहादियों को जिहाद करने और कट्टरपंथियों को हिन्दुओं पर अत्याचार करने का हौसल देता है | भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता सबको पता है | हमारे देश में बड़ी संख्या में युवा वर्ग क्रिकेट का दीवाना है ऐसे में जो हाथ बांग्लादेश की हिंसा के विरुद्ध मानवता का झंडा उठाने को तत्पर होने चाहिए वे उस कट्टर देश के लिए ताली बजाते हुए देखे जाएंगें ! किन्तु हर जगह स्थिति एक जैसी नहीं है | भारत-बांग्लादेश के मध्य मैचों की श्रृंखला में टी-ट्वेंटी सीरीज का पहला मैच ग्वालियर के नवनिर्मित स्टेडियम में 6 अक्टूबर को होने जारहा है | ग्वालियर में अनेक संगठन इस मैच का विरोध कर रहे हैं | सोशल मीडिया पर भी बड़ी संख्या में इसका विरोध किया जा रहा है | यदि यह मैच रद्द होता है तो पूरी दुनिया में यह सन्देश जाएग कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार का भारत की जनता विरोध कर रही है | मैच का विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे बांग्लादेश हिन्दू बौद्ध ईसाई ओइक्यो परिषद की उस माँग को बल मिलेगा जिसमें परिषद संयुक्त राष्ट्र से वर्तमान हिंसा की निष्पक्ष जाँच की मांग कर रही है | यह तो सब जानते ही हैं कि बांग्लादेश के आतंकी इस हिंसा की चर्चा को दबा देना चाहते हैं | कम्युनिस्ट मीडिया और बुद्धिजीवी इसे राजनीतिक हिंसा का रूप देकर मामले को बदलना चाहते हैं | इस्लामिस्ट और कम्युनिस्ट मिलकर इसे सांप्रदायिक या इस्लामिक हिंसा के स्थान पर संपत्ति आदि का झगड़ा सिद्ध करने के प्रयास में हैं | ऐसे में भारत का बांग्लादेश के साथ क्रिकेट खेलना कम-से-कम इस समय तो ठीक नहीं है | इससे वहां के अल्पसंख्यकों की लड़ाई कमजोर पड़ सकती है |

 यह भी एक विडंबना की बात है कि वहां हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख चारों को निशाना बनाया जा रहा है | सभी के धार्मिक स्थल तोड़े जा रहे हैं | सब के घरों में आग लगाई जा रही है | किंतु भारत के हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख चारों मिलकर इस आतंकवाद का विरोध नहीं कर रहे, क्यों ? यद्यपि सिक्खों ने विरोध किया है किन्तु उतना नहीं जितना अपेक्षित था | सोशल मीडिया पर ऐसी अपीलें भी की जारही हैं कि हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख आओ हम सब मिलकर एक साथ बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के समर्थन में खड़े होकर इस मैच को रद्द करने की मांग करें | इस विरोध से यह मैच रद्द होगा कि नहीं यह तो समय बताएगा किन्तु इस विरोध में एक बात बहुत सकारात्मक है वह यह कि बांग्लादेश के सभी गैर इस्लामिक लोग एक साथ भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं | किन्तु भारत में कट्टर इस्लामिस्ट और कम्युनिस्ट गठजोड़ इतना सक्रिय है कि वह हर उस आवाज को दबाने का प्रयास करता है जो हिन्दुओं के पक्ष में उठती है | मैच के पक्ष और विपक्ष में लोगों की अलग-अलग राय हो सकती हैं किन्तु समय के औचित्य पर तो प्रश्न उठता ही है | मान लीजिये बांग्लादेश के स्थान पर यह घटना पाकिस्तान में हुई होती | वहां ठीक इसी प्रकार हिन्दुओं के गाँव-के-गाँव जला दिए जाते,हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार होते,मंदिर तोड़े जारहे होते (जैसा कि वहाँ भी होता रहता है ) तब क्या भारत, पाकिस्तान के साथ ऐसे ही मैच खेलता ? क्या भारत की जनता पाकिस्तानी क्रिकेटरों का ऐसे ही गर्म जोशी से स्वागत करती ? यदि नहीं तो पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इस आतंकवाद पर विराम लगने से पहले बांग्लादेश के खिलाडियों का स्वागत भला कैसे किया जासकता है ?

दिनकर जी के शब्दों में कहें तो –

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।’

डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

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