राजेश कुमार पासी
बाबा साहब अम्बेडकर को संविधान निर्माता कहा जाता है, ये बात कुछ लोग हजम नहीं कर पाते, इसलिए उनके संविधान निर्माता होने पर सवाल खड़े करते हैं। अब इस मुद्दे पर जो विवाद चल रहा है, इस पर सोशल मीडिया पर लोग बहस कर रहे हैं । पूरी बहस सिर्फ सामाजिक सद्भाव को खराब करने की कोशिश दिखाई देती है। सोशल मीडिया पर किसी की असली पहचान पता नहीं होती. बड़ी संख्या में लोग फेक आईडी चला रहे हैं और उसके माध्यम से समाज का माहौल बिगाड़ने की कोशिश करते हैं । विदेशों में बैठकर कितने ही लोग नकली पहचान के साथ धार्मिक और सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने का खेल खेल रहे हैं । मैंने जिस स्कूल से मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की, उसमें आधे से ज्यादा विद्यार्थी दलित समाज से आते थे। कक्षा 7-8 में पढ़ते समय मुझे पहली बार इस सवाल का सामना करना पड़ा कि क्या बाबा साहब ने ही संविधान लिखा था। यह सवाल मेरे एक सवर्ण समाज के दोस्त ने पूछा था क्योंकि उसे मेरे साथी दलित छात्रों की बात पर विश्वास नहीं था। उस वक्त के ज्ञान के अनुसार मैंने उसे कहा कि वो लोग सही कह रहे हैं ।
अब मुझे लगता है कि संविधान निर्माण में बाबा साहब के योगदान को देखते हुए ही उन्हें संविधान निर्माता कहा गया है । समस्या यह है कि धीरे-धीरे समाज में यह बात बैठ गई कि संविधान एक किताब है जिसे बाबा साहब ने लिखा और देश को सौंप दिया । अधिकांश जनता मानती है कि संविधान एक किताब है और देश उसके अनुसार चल रहा है । बहुत कम लोग संविधान निर्माण की प्रक्रिया को जानते हैं लेकिन अब संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया जनता को समझ आ रही है । सोशल मीडिया पर लंबे समय से संविधान निर्माण की प्रक्रिया बताकर बाबा साहब के संविधान निर्माता होने पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं । तर्क दिया जाता है कि संविधान सभा में 299 सदस्य थे तो इसके निर्माण का श्रेय एक व्यक्ति को कैसे दिया जा सकता है । ये लोग संविधान सभा में बैठकर 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन तक इस पर विचार करते रहे और इसके बाद संविधान निर्माण की प्रक्रिया पूरी हुई । उनकी अनदेखी क्यों की जा रही है । दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि बाबा साहब तो सिर्फ प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, तो उन्हें पूरा श्रेय देने का आधार क्या है ।
संविधान निर्माता का सवाल उठाने वाले मुख्य रूप से बी.एन. राव, जो कि संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार थे, उनके योगदान की बात करते हैं । वास्तव में बी.एन.राव ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था । वो केवल संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार नहीं थे बल्कि उन्होंने ही संविधान का प्रारंभिक मसौदा तैयार किया था । बाबा साहब की अध्यक्षता वाली प्रारूप कमेटी ने उसे परिष्कृत करके संविधान का निर्माण किया था । बी.एन.राव कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे बल्कि वो एक सिविल सेवक, न्यायविद, राजनयिक और राजनेता थे । 1950-52 के दौरान वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधि रहे और इसके अलावा वो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे । बाबा साहब अंबेडकर ने खुद यह स्वीकार किया था कि संविधान निर्माण में बी.एन. राव के योगदान को भी श्रेय दिया जाना चाहिए । उनका कहना था कि राव के मार्गदर्शन के बिना संविधान बनाना मुश्किल होता ।
दूसरी तरफ राव ने कहा था कि बाबा साहब संविधान के जनक नहीं जननी हैं, क्योंकि उन्होंने ही संविधान को जन्म दिया है । वास्तव में दोनों ही महान व्यक्ति थे और दोनों ने ही संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया । बाबा साहब जननेता थे, इसलिए उन्हें उनके योगदान के लिए याद रखा गया लेकिन बी.एन.राव का योगदान भुला दिया गया । सवाल उठता है कि बाबा साहब को हमारे नेताओं द्वारा संविधान निर्माता क्यों कहा गया जबकि वो भी जानते थे कि संविधान निर्माण एक सामूहिक रचना थी । वास्तव में बाबा साहब ने संविधान निर्माण को जीवंत किया है, क्योंकि जो मसौदा उन्हें दिया गया था, वो सिर्फ कानूनों का पुलिंदा भर था । उन्होंने उस पर मेहनत करके एक पूरा संविधान बनाया जिस पर आज हमारा देश चल रहा है । उन्होंने उस मसौदे को व्यवहारिक रूप दिया और उसे भारत के समाज के अनुरूप बनाया । आज हमारे संविधान को बने हुए 75 साल हो गए हैं लेकिन अभी भी देश सफलतापूर्वक उसके प्रावधानों के अनुसार चल रहा है । विभिन्नताओं से भरे हुए देश को एकजुट रखने में संविधान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।
बेशक संविधान सभा में 299 सदस्य थे लेकिन बाबा साहब ने संविधान सभा में संविधान के प्रावधानों पर हुई सारी बहस का जवाब दिया । उन्होंने ही संविधान सभा के सदस्यों को अपने तर्कों और तथ्यों से संतुष्ट किया । सवाल यह उठता है कि बाबा साहब के संविधान निर्माता होने पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं । इसके पीछे क्या सिर्फ बाबा साहब का अपमान करने की मंशा है या कोई और वजह है । वास्तव में इस बहस का उद्देश्य दलित समाज को भड़काना हो सकता है । सोशल मीडिया में इस बहस की आड़ में लोग बाबा साहब को लेकर बेहूदा टिप्पणियां कर रहे हैं । दूसरी तरफ दलित समाज के लोग बी.एन. राव के योगदान का मजाक बना रहे हैं । सच यह है कि दोनों का काम एक दूसरे का पूरक है, उसमें प्रतियोगिता नहीं है । सबसे बड़ी बात, राव तो संविधान निर्माण का श्रेय लेना ही नहीं चाहते थे, वो चुपचाप अपना काम करके अलग हो गए । बाबा साहब ने भी संविधान निर्माता होने का दावा कभी नहीं किया, इस देश ने उनके योगदान को देखकर उन्हें संविधान निर्माता की उपाधि दी है ।
वास्तव में बाबा साहब और संविधान को लेकर दलित समाज बहुत ज्यादा संवेदनशील है । वो इस बारे में बात करने को भी तैयार नहीं है । दलित समाज का अधिकांश हिस्सा संविधान को बाबा साहब की किताब कहता है । उसे लगता है कि बाबा साहब ने संविधान को लिखा और देश को सौंप दिया जिस पर देश का शासन चल रहा है । दलितों को लगता है कि उन्हें जो भी अधिकार मिले हुए हैं, वो सब संविधान की देन हैं । यही कारण है कि संविधान को खतरे में बताकर नेता दलित समाज की भावनाओं से खेलते हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा पर यही आरोप लगाया गया था कि वो अगर इस बार सत्ता में आ गयी तो संविधान खत्म कर देगी । दलितों को डराया गया कि संविधान के खत्म होने से आरक्षण और उनके अन्य अधिकार खत्म हो जाएंगे। सोशल मीडिया पर तो यह नेरेटिव भी चलाया जाता है कि भाजपा संविधान को खत्म करके देश पर मनुवाद थोपना चाहती है। कांग्रेस बाबा साहब को सबसे महान नेता बताती है लेकिन वो भूल जाती है कि उन्हें 1991 में एक गैर-कांग्रेस सरकार ने भारत रत्न दिया था, जबकि इंदिरा जी और नेहरू जी पहले खुद को भारत रत्न दे चुके थे। क्या कांग्रेस देश निर्माण में बाबा साहब के योगदान को इतना तुच्छ समझती है कि उन्हें इस सम्मान के लायक नहीं समझा, ये कांग्रेस को बताना चाहिए।
पिछले कुछ दशकों से हमारे नेता बाबा साहब को दलितों का भगवान बनाने की कोशिश कर रहे हैं और संविधान को दलितों का धार्मिक ग्रंथ बनाना चाहते हैं । यह कोशिश इसलिए हो रही है, जैसे धर्म और जाति के नाम पर लोगों को भड़काकर दंगे-फसाद करवाये जाते हैं, वैसे ही बाबा साहब और संविधान को इस्तेमाल किया जा सके । संविधान दलितों और समाज के अन्य पिछड़े वर्गों को डराने का औजार बनता जा रहा है । समाज में यह धारणा पैदा की जा रही है कि संविधान को खत्म करके कमजोर वर्गों के सारे अधिकार समाप्त कर दिए जाएंगे । हमारा विपक्ष आजकल संविधान को सिर पर उठाकर इसलिए नाच रहा है ताकि वो खुद को संविधान का रक्षक घोषित कर सके । बिना संविधान के लोकतंत्र नहीं चल सकता. जब तक देश में लोकतंत्र है, संविधान को खत्म करना संभव नहीं है । भारत में लोकतंत्र इतना मजबूत है कि उसको खत्म करने की कोशिश करने वाला ही खत्म हो जाएगा । यह कोशिश एक बार 1975 में कांग्रेस करके देख चुकी है ।
इस देश में दलित-आदिवासी और पिछड़े ही तय करते हैं कि देश पर कौन शासन करेगा, उन्हें ही डराया जा रहा है। वास्तव में डराने वाले भी इसी समाज से आते हैं । एक तरफ 80 प्रतिशत होने का दावा करते हैं तो दूसरी तरफ देश के संविधान को 20 प्रतिशत से खतरा बताते हैं । वास्तव में संविधान दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है । देश में असमानता बढ़ रही है. गरीबों को न्याय नहीं मिल रहा है । देश की अदालतों में 5 करोड़ मुकदमें फैसले का इंतजार कर रहे हैं. न्याय में देरी अन्याय है । हमारी न्यायपालिका इस पर सिर्फ चिंता जताती है लेकिन कुछ नहीं करती । सवाल यह है कि क्या ऐसी न्यायपालिका की कल्पना बाबा साहब की थी । चुनाव लड़ना सिर्फ पैसे का खेल रह गया है, इसलिए संसद में जाना गरीब के बस का नहीं रहा । गरीब आदमी पंचायत तक का चुनाव नहीं लड़ सकता । प्रशासन में सिर्फ पैसे का खेल चल रहा है क्योंकि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि गरीब की सुनवाई कोई नहीं करता । संविधान और बाबा साहब का महिमामंडन करके दलितों और पिछड़ों को चुप कराया जा रहा है कि सब कुछ संविधान के अनुसार चल रहा है जिसे बाबा साहब लिखकर गए हैं । संविधान और बाबा साहब का नाम लेकर व्यवस्था अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है ।
राजेश कुमार पासी