पंकज जायसवाल
आजकल चाँदी और ताँबे के दाम लगातार बढ़ने की खबरें आ रही हैं। ताँबे के औद्योगिक उपयोग तो पहले से ही सर्वविदित हैं, लेकिन चाँदी की कीमतों में आई तेज़ बढ़ोतरी ने आम आदमी से लेकर निवेशकों और नीति-निर्माताओं तक सभी को चौंका दिया है। सवाल उठता है कि आख़िर ऐसा क्या बदल गया है कि ये दोनों धातुएँ एक साथ और लगातार महँगी होती जा रही हैं?
मेरे अध्ययन के अनुसार वर्ष 2026 और उसके बाद चाँदी और ताँबे का महत्व केवल औद्योगिक धातुओं के रूप में नहीं बल्कि रणनीतिक संसाधनों के रूप में सोने के समकक्ष आंका जाने लगेगा। यह बदलाव किसी सट्टेबाज़ी या अल्पकालिक मांग का परिणाम नहीं है बल्कि इसके पीछे वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा संक्रमण, भू-राजनीति और तकनीकी बदलावों का गहरा और संरचनात्मक संबंध है। वास्तव में चाँदी और ताँबा अब केवल धातुएँ नहीं रह गई हैं बल्कि उभरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनती जा रही हैं।
आज चाँदी ने कीमती धातु से रणनीतिक संसाधन तक की यात्रा कर ली है. परंपरागत रूप से चाँदी को आभूषण, सिक्के और सुरक्षित निवेश के रूप में देखा जाता रहा है लेकिन पिछले एक दशक में इसकी पहचान तेजी से बदली है। आज वैश्विक स्तर पर चाँदी की 50 प्रतिशत से अधिक मांग औद्योगिक उपयोग से आ रही है। सोलर पैनल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहन, 5G नेटवर्क, स्मार्ट ग्रिड और मेडिकल डिवाइसेज़ में चाँदी की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है।
इसी बदलते महत्व को देखते हुए यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ इंटीरियर द्वारा जारी 2025 की अंतिम “क्रिटिकल मिनरल लिस्ट” में चाँदी को भी शामिल किया गया है। यह सूची यू.एस. जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा तैयार की गई है और इसमें कुल 60 खनिजों को शामिल किया गया है जिन्हें अमेरिका की अर्थव्यवस्था, तकनीकी उद्योग, रक्षा और ऊर्जा संक्रमण के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य समझना आवश्यक है. इस सूची में शामिल होना किसी धातु की “कमी” की घोषणा नहीं, बल्कि यह संकेत है कि उसकी आपूर्ति-श्रृंखला संवेदनशील है और उसका रणनीतिक महत्व बढ़ चुका है। चाँदी का इस सूची में आना यह दर्शाता है कि अब वह केवल एक कीमती धातु नहीं रही बल्कि आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए एक आवश्यक इनपुट बन चुकी है। इसी कारण निवेशकों की रुचि बढ़ी है और सरकारों द्वारा सप्लाई-चेन सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित होने की संभावना ने बाजार भावों को समर्थन दिया है।e
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, एक सोलर पैनल में औसतन 15 से 20 ग्राम चाँदी का उपयोग होता है। जैसे-जैसे दुनिया जीवाश्म ईंधन से हटकर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रही है, सोलर क्षमता में अभूतपूर्व विस्तार हो रहा है। चीन, भारत, अमेरिका और यूरोप के ग्रीन एनर्जी लक्ष्य चाँदी की मांग को दीर्घकालिक रूप से ऊपर की ओर ले जा रहे हैं। यह मांग अस्थायी नहीं, बल्कि संरचनात्मक है।
अगर चाँदी को भविष्य की तकनीक की आत्मा कहा जाए, तो ताँबा उसकी नसों में बहने वाला रक्त है। ताँबा बिजली का बेहतरीन संवाहक है और इसलिए इसका उपयोग पहले से ही औद्योगिक क्षेत्रों में होता आया है। लेकिन अब इसका उपयोग इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर ट्रांसमिशन, सोलर और विंड एनर्जी, डेटा सेंटर और AI इंफ्रास्ट्रक्चर में तेज़ी से बढ़ रहा है।
एक अनुमान के अनुसार, एक इलेक्ट्रिक कार में पारंपरिक पेट्रोल या डीज़ल कार की तुलना में तीन से चार गुना अधिक ताँबा लगता है। इसके अलावा, एक मेगावॉट सोलर या विंड पावर प्लांट और ट्रांसफॉर्मर नेटवर्क में भी ताँबे की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। यही कारण है कि कई वैश्विक एजेंसियाँ 2026 के आसपास “कॉपर सुपर साइकिल” की बात कर रही हैं।
इन दोनों धातुओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती सप्लाई साइड पर है। मांग तेज़ी से बढ़ रही है, लेकिन नई खदानों की खोज, पर्यावरणीय मंज़ूरी और खनन निवेश उस गति से नहीं बढ़ पा रहे हैं। चिली और पेरू जैसे प्रमुख ताँबा उत्पादक देशों में राजनीतिक अस्थिरता, श्रमिक समस्याएँ और पर्यावरणीय विरोध सप्लाई को प्रभावित कर रहे हैं।
चाँदी की स्थिति और भी जटिल है, क्योंकि वह अक्सर सीसा और जिंक की खदानों से उप-उत्पाद के रूप में निकलती है। जब उन धातुओं का उत्पादन घटता है, तो चाँदी की सप्लाई भी स्वतः सीमित हो जाती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य-पूर्व तनाव और चीन-अमेरिका तकनीकी प्रतिस्पर्धा ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को अस्थिर किया है। इसके साथ ही डॉलर की दीर्घकालिक दिशा और महँगाई से बचाव के लिए हार्ड एसेट्स की ओर निवेशकों का झुकाव बढ़ा है। पिछले दो वर्षों में निवेशकों की इस बढ़ती भागीदारी ने चाँदी और ताँबे की कीमतों को अतिरिक्त मजबूती दी है।
भारत के लिए चाँदी और ताँबा दोनों अत्यंत रणनीतिक हैं। भारत दुनिया के सबसे बड़े चाँदी आयातकों में से एक है। वहीं, ईवी, सोलर और इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के चलते ताँबे की घरेलू मांग लगातार बढ़ रही है। “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिफिकेशन अनिवार्य है, और इसका सीधा अर्थ है कि इन धातुओं की मांग आने वाले दशकों तक मजबूत बनी रहेगी। 2026 की ओर देखते हुए, चाँदी और ताँबे दोनों के लिए परिदृश्य स्पष्ट दिखता है मांग मजबूत है, सप्लाई सीमित है और उपयोगिता लगातार बढ़ रही है। इसलिए कीमतों में स्थायी मजबूती के संकेत मिलते हैं।
चाँदी और ताँबे की बढ़ती कीमतें किसी एक कारण का परिणाम नहीं, बल्कि बहु-आयामी वैश्विक बदलावों का नतीजा हैं। ग्रीन एनर्जी, डिजिटल अर्थव्यवस्था, भू-राजनीति, निवेश रुझान और सप्लाई बाधाएँ मिलकर इन धातुओं को भविष्य की रणनीतिक संपत्ति बना रही हैं।
2026 तक ये धातुएँ केवल महँगी ही नहीं होंगी, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन और आर्थिक विकास की दिशा का संकेतक भी बन जाएँगी। जो निवेशक और नीति-निर्माता इस बदलाव को समय रहते समझ रहे हैं, वही आने वाले दशक में बेहतर स्थिति में होंगे।
पंकज जायसवाल