अमेरिका का संरक्षणवाद क्या अमेरिकी एकाधिकार को ख़त्म कर देगा ?

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 पंकज जायसवाल

हाल के वर्षों में अमेरिका ने वैश्विक व्यापार और प्रवासन नीतियों में कड़ा रुख अपनाया है। दरअसल, अमेरिकी प्रशासन ने अपने “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडे के तहत बाहरी दुनिया से आने वाले सामान और टैलेंट पर कई तरह की बाधाएं लगाई हैं। एक ओर अमेरिका ने अपने इनलैंड में आयातित सामानों को महंगा करने के लिए टैरिफ बढ़ाए हैं जिससे विदेशी वस्तुएं महंगी हो जाएं और अमेरिकी उपभोक्ता अधिकतर घरेलू उत्पादों की ओर आकर्षित हों। दूसरी ओर, H1B वीज़ा और अन्य कार्य वीज़ाओं की लागत बढ़ाकर अमेरिका बाहर से आने वाले उच्चकुशल टैलेंट के लिए भी बाधाएं खड़ी कर रहा है। इस प्रकार अमेरिका अपने दरवाजे तो बंद कर रहा है, अपने चारों तरफ बैरियर को मजबूत कर रहा है लेकिन इस प्रक्रिया में  सवाल यह है कि क्या अपने आपको अलग थलग  करने की इस प्रक्रिया में क्या अमेरिका के पास खुद का अपना इतना टैलेंट है? खुद का इतना उत्पादन या अन्य देशों से आयात का विकल्प यदि है तो ठीक है अन्यथा कुछ वर्षों में यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के एकाधिकार को ख़त्म कर देगा. विश्व इकॉनमी में पुनर्चिन्तन को जागृत कर अमेरिका ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है, यह उपरोक्त सवालों के हाँ या ना के जवाब पर निर्भर करेगा. ऐसा कैसे हो सकता है, इसका विश्लेषण करते  हैं.

अमेरिका ने प्रमुख देशों से आयातित सामानों पर टैरिफ बढ़ाकर अपने बाजार को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने का प्रयास किया है। यह कदम अमेरिका के औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की दृष्टि से समझा जा सकता है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह रणनीति दीर्घकाल में अमेरिका के लिए लाभकारी रहेगी? टैरिफ के कारण अमेरिका में आयात महंगा हो गया है, इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए भी कच्चा माल और मशीनरी की लागत बढ़ी है। इसके परिणामस्वरूप उनके उत्पादन की लागत बढ़ी है. इससे केवल अमेरिका में ही नहीं, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अमेरिकी उत्पाद अन्य देशों के मुकाबले महंगे हो सकते हैं। परिणामस्वरूप अमेरिका में घरेलू महंगाई के साथ उसका निर्यात भी महंगा हो सकता है. अगर अमेरिका के पास इस आयात के बैरियर को रोकने के बाद भी सस्ते आयात या उत्पादन का विकल्प है तो ठीक है अन्यथा यह निर्णय इसके खिलाफ ही जाने वाला है.

H1B वीज़ा महंगा करने से अमेरिका के इनोवेशन और शोध में बाधा आनी ही आनी है. आज अमेरिका का दुनिया में एकाधिकार है. उसके मूल में उसका रिसर्च और इनोवेशन पर निवेश है लेकिन इस क्षेत्र में वह तकनीक और उच्चकुशलता के लिए विदेशी टैलेंट पर निर्भर है। Silicon Valley और अन्य टेक हब में विदेशियों की बड़ी संख्या काम कर रही है। H1B वीज़ा महंगा और कठिन करने का मतलब यह हुआ कि अब कंपनियों को बाहरी टैलेंट ढूंढना मुश्किल होगा। अगर अमेरिका के पास खुद पर्याप्त उच्चकुशल कर्मचारियों का भंडार नहीं है तो यह कदम अमेरिकी नवाचार और तकनीकी विकास को धीमा कर सकता है और उसे तकनीक की सिरमौर स्थिति से नीचे गिरा सकता है।

यह नीति अमेरिका की आत्मनिर्भरता बनाम एकाधिकार की स्थिति में उसके अगुवा की स्थिति में संकट ला सकती है. यह अमेरिका को “आत्मनिर्भर” बनाने की दिशा में एक प्रयास हो सकती है लेकिन इसके साथ ही यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के वैश्विक एकाधिकार को खतरे में डाल सकती है। यदि अमेरिका को अपने घरेलू संसाधनों और टैलेंट पर भरोसा करना संभव हो तो यह रणनीति सफल हो सकती है लेकिन अगर उत्पादन और कुशल मानव संसाधनों की कमी रही तो कुछ वर्षों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था अपनी वैश्विक प्रभुता खो सकती है। उसके पास पहले से चल रहे अपने मेगा इनोवेटिव प्रोजेक्ट पर नए टैलेंट के आने की स्पीड धीमी हो सकती है. अमेरिकी शोध कंपनिया बुरी तरह से प्रभावित होंगी. इससे आउटसोर्स पुनः बढ़ेगा।

अमेरिका की इन नीतियों ने वैश्विक आर्थिक सोच को पुनः जागृत किया है। अन्य देशों को यह स्पष्ट संदेश गया है कि अमेरिका अब अपने हितों को प्राथमिकता देने की ओर बढ़ रहा है। इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, निवेश प्रवाह और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों में बदलाव की संभावनाएं बढ़ गई हैं। कई देशों ने अब अमेरिका पर निर्भरता कम करने और अपनी उत्पादन और तकनीकी क्षमताओं को सुदृढ़ करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और विकल्प के नए आयाम बनने शुरू हो गए हैं. यदि अमेरिका के पास पर्याप्त घरेलू उत्पादन और उच्चकुशल मानव संसाधन उपलब्ध हैं तो यह नीति दीर्घकाल में सफल हो सकती है लेकिन यदि विकल्प सीमित हैं और वैश्विक सहयोग और आयात आवश्यक है तो अमेरिका ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अब अमेरिका के संरक्षणवाद और स्वायत्तता की रणनीति को लेकर सतर्क है।

 संक्षेप में कहा जाए तो अमेरिका का संरक्षणवाद, टैरिफ और H1B में बाधाएं इस बात पर निर्भर करेगी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के पास खुद का पर्याप्त उत्पादन और टैलेंट है या नहीं। यदि है, तो यह कदम अमेरिका को और अधिक आत्मनिर्भर और प्रतिस्पर्धी बना सकता है। यदि नहीं, तो यह अमेरिकी वैश्विक प्रभुता और नवाचार की स्थिति को कमजोर कर सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में पुनर्विचार को प्रेरित करने के साथ-साथ यह नीति अमेरिका के लिए दीर्घकालीन चुनौती भी बन सकती है।

 अमेरिका के इस कदम से यह सवाल अनिवार्य रूप से उठता है: क्या एक देश अपने दरवाजे बंद कर, बाहरी सहयोग और संसाधनों पर निर्भरता कम करके दीर्घकालिक रूप से स्थिर रह सकता है या यह उसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमजोर कर देगा? जवाब हाँ या नहीं में सीमित नहीं है बल्कि यह उस क्षमता और संसाधनों पर निर्भर करेगा जो अमेरिका के पास वास्तव में हैं।

 पंकज जायसवाल

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