रामस्वरूप रावतसरे
कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी पर जल्द ही चोरी का मुकदमा दर्ज हो सकता है। प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (पीएमएमएल) सोसाइटी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जुड़े कुछ निजी दस्तावेजों को वापस पाने के लिए इस एक्शन पर विचार कर रही है। ये दस्तावेज वर्ष 2008 में यूपीए सरकार के दौरान हटाए गए थे। इस मामले में 23 जून, 2025 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी। यह बैठक पीएमएमएल सोसाइटी वार्षिक बैठक थी। इस बैठक में इस मुद्दे पर भी गंभीर चर्चा की गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बैठक में शामिल सदस्यों के बीच सहमति बनी कि अब इस मामले को कानूनी रास्ते से सुलझाया जाना चाहिए।
पीएमएमएल ट्रस्ट के सूत्रों ने बताया कि वे इन दस्तावेजों की कथित ‘चोरी’ को लेकर कानूनी जाँच पर विचार कर रहे हैं। पीएमएमएल के लोगों का कहना है कि ये दस्तावेज पहले दान किए गए थे और इसलिए ये अब कानूनी रूप से संस्थान की संपत्ति हैं। अगर यह साबित होता है कि इन दस्तावेजों को गैरकानूनी तरीके से संस्थान के कब्जे से हटाया गया था तो सोनिया गाँधी को इस मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। मामले में गंभीर जाँच होने की संभावना है जो सोनिया गाँधी पर शिकंजा बढ़ाएगी।
इस पूरे विवाद की जड़ पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी संग्रह से जुड़े उन ऐतिहासिक दस्तावेजों में है जिनमें कई मशहूर हस्तियों के साथ उनकी पत्रों से बातचीत शामिल है। इनमें एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, विजया लक्ष्मी पंडित, बाबू जगजीवन राम और अरुणा आसफ अली जैसे बड़े नाम शामिल हैं। ये दस्तावेज 1971 से लेकर 2008 तक नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) में रखे गए थे। एनएमएमएल का नाम बदल कर अब प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय ( पीएमएमएल ) हो गया है। यह पूरा विवाद वर्ष 2008 में चालू हुआ था। तब यह कागज कथित तौर पर 51 बक्सों में पैक कर सोनिया गाँधी द्वारा संग्रहालय से निकाल लिए गए बताए जा रहे है। यह भी बताया जा रहा है कि इनमें वे दस्तावेज भी शामिल थे जिन्हें पहले इंदिरा गाँधी और बाद में सोनिया गाँधी ने एनएमएमएल को दान किया था क्योंकि गाँधी परिवार उत्तराधिकारी के रूप में काम कर रहा था। पीएमएमएल इससे पहले कई बार सोनिया गाँधी के कार्यालय को कई बार पत्र भेजकर उन दस्तावेजों को लौटाने की अपील कर चुका है।
जानकारी के अनुसार गुजरात के इतिहासकार और पीएमएमएल सोसाइटी के सदस्य प्रोफेसर रिजवान कादरी ने भी सितंबर 2024 में सोनिया गाँधी और फिर दिसंबर, 2024 में राहुल गाँधी को पत्र लिखे थे। उन्होंने निवेदन किया कि अगर दस्तावेज वापस नहीं दिए जा सकते तो कम से कम उनकी फोटोकॉपी या डिजिटल स्कैन ही भेज दिए जाएँ। जानकारी के अनुसार लगातार कहने के बावजूद सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने कोई जवाब नहीं दिया है। इसके चलते यह मामला काफी गंभीर हो गया है। अब पीएमएमएल इस मामले में कानूनी रास्ते तलाश रहा है और जल्द एक्शन ले सकता है।
प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (पीएमएमएल) सोसाइटी की 47वीं वार्षिक आम बैठक हाल ही में तीन मूर्ति भवन में आयोजित की गई। इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की। इसमें सोसाइटी के उपाध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण, धर्मेंद्र प्रधान और अश्विनी वैष्णव सहित कई प्रमुख नेता शामिल हुए। अन्य प्रमुख सदस्यों में भाजपा नेता स्मृति ईरानी, गीतकार प्रसून जोशी और रेलवे बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अश्विनी लोहानी भी मौजूद थे। लोहानी अब पीएमएमएल के निदेशक के रूप में कार्य कर रहे हैं। बैठक में इस मुद्दे पर दोबारा चर्चा की गई। यह इससे पहल फरवरी 2024 की एजीएम में उठाया गया था।
पीएमएमएल के सदस्यों का मानना है कि ये दस्तावेज सिर्फ परिवार की निजी संपत्ति नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीय धरोहर हैं और इन्हें संस्थान के पास सुरक्षित रहना चाहिए। इस पर सभी सदस्यों की आम सहमति बनी। फरवरी की बैठक के बाद इस मामले में कानूनी सलाह ली गई और इसी के आधार पर सोनिया गाँधी के कार्यालय को एक औपचारिक पत्र भेजा गया। इसमें पहली बार आधिकारिक तौर पर यह रिकॉर्ड में रखा गया कि दस्तावेज वापस ले लिए गए हैं और उन्हें लौटाने का अनुरोध किया गया है। हालाँकि, गाँधी परिवार की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया। अब पीएमएमएल सोसाइटी के सदस्य 2014 से पहले की प्रशासनिक चूक को सुधारने की दिशा में कदम उठा रहे हैं, ताकि नेहरू से जुड़े ये ऐतिहासिक दस्तावेज दोबारा सार्वजनिक संग्रह में आ सकें।
जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (पीएमएमएल) ट्रस्ट अब कानूनी सलाह पर विचार कर रहा है। इसके अनुसार, एक बार जो दस्तावेज दान कर दिए जाते हैं, उनको वापस नहीं लिया जा सकता। इसलिए ट्रस्ट का मानना है कि नेहरू गाँधी परिवार द्वारा दान किए गए दस्तावेज अब भी संग्रहालय की वैध संपत्ति हैं। बैठक में इन कागजों के मालिकाना हक़, इनके संरक्षण, कॉपीराइट और इन ऐतिहासिक दस्तावेजों को शोधकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने से जुड़ी चिंताओं पर भी चर्चा हुई। खासतौर पर नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच हुए पत्राचार की पूरी जानकारी रखने पर जोर दिया गया। सदस्यों ने यह भी माँग की कि जो दस्तावेज संग्रहालय से लिए गए थे, उनका फोरेंसिक ऑडिट कराया जाए ताकि यह साफ हो सके कि कहीं कोई अहम कागज गुम तो नहीं हो गया।
जनवरी 2025 में पीएमएमएल की कार्यकारी परिषद का पुनर्गठन हुआ था। इसमें कई नए और प्रमुख लोगों को शामिल किया गया था। स्मृति ईरानी, नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन, फिल्म निर्देशक शेखर कपूर और कलाकार वासुदेव कामथ को इसमें सदस्य बनाया गया था। नृपेंद्र मिश्रा को परिषद का अध्यक्ष बनाए रखा गया और उन्हें 5 साल का नया कार्यकाल दिया गया। इस बैठक में सिर्फ नेहरू पेपर्स का मामला ही नहीं उठा बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशभर के संग्रहालयों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए दो नए सुझाव भी दिए। उन्होंने पूरे देश में ‘म्यूजियम मैप’ बनाने और सभी संग्रहालयों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने का प्रस्ताव रखा। इसके साथ ही उन्होंने आपातकाल की 50वीं वर्षगाँठ के मौके पर उससे जुड़े सभी कानूनी दस्तावेजों और घटनाओं को इकट्ठा करने की योजना भी पेश की।
दिसंबर 2024 में भाजपा सांसद संबित पात्रा ने नेहरू से जुड़े दस्तावेजों के मामले पर प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने साफ कहा कि ये सिर्फ पारिवारिक पत्र नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय महत्व के दस्तावेज हैं। पात्रा ने यह भी कहा था कि जनता को यह जानने का पूरा हक है कि उन कागजों में क्या लिखा है। यह मुद्दा पहले भी संसद में उठ चुका है, जिससे साफ होता है कि अगर दस्तावेज नहीं लौटाए जाने की स्थिति में सोनिया गाँधी के खिलाफ पीएमएमएल द्वारा कानूनी कार्रवाई शुरू की जाती है, तो मामला और तूल पकड़ सकता है। लेकिन जैसे संकेत मिल रहे है उसके अनुसार पीएमएमएल दस्तावेजों के लिए हर वह कदम उठायेगी जो भी आवश्यक होगा।
रामस्वरूप रावतसरे