राजनीति

नक्सली कमांडर माडवी हिडमा के एनकाउंटर से नक्सवाद समाप्ति के लक्ष्य जल्द होंगे पूरे

कमलेश पांडेय

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टीम ने नक्सलवाद मुक्त भारत की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ चुके हैं क्योंकि अर्द्ध सैनिक बलों ने शीर्ष नक्सली कमांडर माडवी हिडमा का खात्मा कर दिया है। उसकी नक्सली पत्नी और उसके चार नक्सली कमांडो भी मारे जा चुके हैं जो उसकी सुरक्षा में तैनात थे। समझा जा रहा है कि हाल में ही केंद्रीय बलों को आंध्रप्रदेश में मिली यह सफलता नक्सलवाद के खिलाफ मिली बहुत बड़ी सफलताओं में से एक है। दरअसल, कुख्यात नक्सली हिडमा व उसके 5 खूंखार सहयोगियों के एनकाउंटर से सुरक्षाबलों की लगभग दो दशक पुरानी तलाश ही खत्म नहीं हुई बल्कि नक्सलियों के पहले से ही कमजोर पड़े शीर्ष नेतृत्व पर एक और तगड़ी व निर्णायक चोट पहुंची है। इससे देश अगले साल यानी 31 मार्च 2026 तक नक्सली हिंसा से पूरी तरह मुक्त होने के लक्ष्य के और करीब पहुंच गया है।

सुरक्षा बलों की मानें तो हिडमा सबसे खूंखार नक्सली था। चाहे 2010 का दंतेवाड़ा सुरक्षा बल हत्याकांड हो या फिर 2013 का सुरक्षा बलों पर हुआ झीरम घाटी हमला, पिछले 20 बरसो में सुरक्षा बलों पर हुए लगभग सभी बड़े नक्सली हमलों के पीछे हिडमा का ही हाथ और दिमाग माना जाता है। देखा जाए तो उसने लंबे अरसे तक दंडकारण्य में आतंक का राज कायम रखा और अंततोगत्वा शासकीय दंड का शिकार हुए। वह उस पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन का कमांडर था, जिसे अब तक का सबसे खूंखार नक्सली संगठन माना जाता है। 

दरअसल, ऐसा सुरक्षा बलों के द्वारा नक्सलियों पर डाले गए

चौतरफा दबाव से ही संभव हुआ है। हिडमा से माडवी हिडमा का खात्मा सुरक्षा बलों की अबतक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है जबकि इससे पहले इस साल मई में ही सुरक्षाबलों ने सीपीआई (माओवादी) के जनरल सेक्रेटरी नरसिम्हा उर्फ नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को मार गिराया था। इसके अलावा इस साल विभिन्न मुठभेड़ में 300 से ज्यादा नक्सली मारे जा चुके है जिनमें पोलित ब्यूरो के कई सदस्य भी है। इस प्रकार से चारों तरफ से पड़ रहे दबाव के बीच नक्सलवाद अब महज एक छोटे-से इलाके में सिमट कर रह गया है।

बताते चलें कि हिडमा को छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश की

सीमा पर मारा गया। माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ से खदेड़े जाने के बाद वह आंध्र से आंदोलन को जारी रखना चाहता था लेकिन यह चौकन्ना होने वाली बात थी। इसलिए सुरक्षा बलों ने नया जाल बिछाकर उसे ढेर कर दिया क्योंकि सुरक्षा बलों की योजना है कि बस्तर और अबूझमाड़ के अपने गढ़ से बेदखल हो रहे नक्सलियों को कही और पैर जमाने का मौका नहीं मिलना चाहिए। लिहाजा जो प्रेशर बना है, वह बना रहे तो यह समस्या जल्द ही खत्म हो जाएगी। अब उन्हें कहीं मौका न मिले, यही सरकार की रणनीति भी है। 

आपको पता है कि सरकार ने नक्सलियों के सामने शीघ्र ही सरेंडर करने का रास्ता खुला रखा है। इसी के तहत गत मंगलवार को भी कई नक्सलियों ने हथियार डाले। वाकई ये अच्छे संकेत है क्योंकि जब नक्सली आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ेंगे तो जमीनी स्तर पर विधि व्यवस्था में व्यापक बदलाव भी आएगा। कारोबार भी फले- फूलेगा । इस दिशा में मिले-जुले नागरिक व प्रशासनिक प्रयास जारी हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि नक्सली खात्मे के साथ इन इलाकों को विकास की मजबूत बयार भी चाहिए। 

 वैसे तो नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में सड़क-बिजली-मोबाइल नेटवर्क जैसे क्षेत्रों में काफी काम हुआ है और इससे भी नक्सलियों की पकड़ कमजोर करने में मदद मिली है। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार, 2014 से अभी तक नक्सल प्रभावित इलाको में 12 हजार किमी से ज्यादा सड़कें बनी है, बैंकों की हजार से ज्यादा शाखाएं खोली गई है और स्किल डिवेलपमेंट पर काफी काम किया जा रहा है ताकि सबको रोजगार, स्वरोजगार मिले। इससे स्थानीय छोटी-मोटी नौकरियां भी पैदा होंगी। वाकई इन समन्वित प्रयासों से ही नक्सली जड़ से उखड़ेंगे।

स्मरण रहे कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रबल पक्षधर समझे जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आतंकवाद और नक्सलवाद के कट्टर दुश्मन माने जाते हैं। उनके कार्यकाल में आंतरिक व बाह्य सुरक्षा की स्थिति काफी मजबूत हुई है। बीते वर्ष ही उन्होंने यह स्पष्ट रूप से घोषणा की थी कि भारत सरकार 31 मार्च 2026 तक देश से हथियारी नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए एक बहुआयामी रणनीति पर काम किया जा रहा है। हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों की सक्रियता, आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल, और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास एवं समावेशन की योजनाओं से नक्सलवाद कमजोर हुआ है।

इस दिशा में.सरकार की रणनीति और लक्ष्य स्पष्ट है क्योंकि अमित शाह के नेतृत्व में सरकार ने नक्सल विरोधी अभियान तेज़ कर दिए हैं और स्पष्ट घोषणा की है कि मार्च 2026 तक हथियारी नक्सलवाद पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। इस प्रक्रिया में केंद्र और राज्य की संयुक्त फोर्सेज़ ने आधुनिक तकनीक का उपयोग कर नक्सली नेटवर्क को कमजोर किया है। नक्सली सरेंडर करने या हथियार छोड़ने को तैयार हों तो पुनर्वास की योजना है अन्यथा निर्णायक कार्रवाई की जायेगी। 

जहां तक मौजूदा स्थिति और प्रगति का सवाल है तो 2025 में सुरक्षाबलों ने 270 से अधिक नक्सलियों को ढेर किया और उनके कई बड़े नेताओं को निशाना बनाया गया है। प्रभावित इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, बैंकिंग, सड़क और अन्य सुविधाओं को तेज़ी से स्थापित किया जा रहा है जिससे जनता मुख्यधारा से जुड़ रही है। नक्सल विरोधी अभियानों से हिंसा और उग्रवाद की घटनाएँ कम हो रही हैं और कई जिले अब नक्सल-मुक्त घोषित किये जा चुके हैं।

हालांकि, सुरक्षा बलों की चुनौतियाँ और समाज की भूमिका भी अब साफ है। अमित शाह ने यह भी कहा है कि जब तक समाज में नक्सल विचारधारा या उसका वैचारिक, लीगल, आर्थिक समर्थन पूरी तरह खत्म नहीं होता, तब तक समस्या की जड़ें बची रहेंगी। आम जनता की जागरूकता और हिस्सेदारी से ही नक्सलवाद का वैचारिक आधार पूरी तरह खत्म हो सकेगा। निष्कर्षत: सरकार की घोषणाओं, रणनीति, और अब तक हासिल प्रगति के आधार पर कहा जा सकता है कि अमित शाह के नेतृत्व में नक्सलवाद समाप्ति की दिशा में निर्णायक कदम उठाये जा रहे हैं और मार्च 2026 तक इसका बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। वहीं, अंतिम सफलता के लिए प्रशासनिक, राजनैतिक और सामाजिक सहयोग साथ-साथ महत्वपूर्ण रहेगा।

कमलेश पांडेय