कविता साहित्‍य

मंदिर जाता भेड़िया

templeशेर पूछता आजकल, दिया कौन यह घाव।
लगता है वन में सुमन, होगा पुनः चुनाव।।

गलबाँही अब देखिये, साँप नेवले बीच।
गद्दी पाने को सुमन, कौन ऊँच औ नीच।।

मंदिर जाता भेड़िया, देख हिरण में जोश।
साधु चीता अब सुमन, फुदक रहा खरगोश।।

पीता है श्रृंगाल अब, देख सुराही नीर।
थाली में खाये सुमन, कैसे बगुला खीर।।

हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।