डॉ.वेदप्रकाश
हाल ही में भारत के पहले लेखक गांव थानों, देहरादून जाना हुआ। अवसर था लेखक गांव में साहित्य, कला एवं संस्कृति के वार्षिक अंतरराष्ट्रीय महोत्सव का। लेखक गांव, यह विचार अथवा संकल्पना ही मुझे वहां जाने के लिए बार-बार प्रेरित करती है क्योंकि देश में और विदेशों में भी हम स्मार्ट सिटी, स्मार्ट स्कूल और स्मार्टनेस की तो कई बार चर्चा अथवा चिंता सुनते हैं। लेकिन लेखकों और सृजनकर्ता के लिए कोई लेखक गांव जैसा स्थान बने अथवा उसकी कोई आवश्यकता है, इस बात पर कभी विचार नहीं सुनाई देते। ध्यान रहे लेखक अथवा सृजनकर्ता ही वे लोग हैं जो किसी भी समाज अथवा राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
सृजन के लिए वातावरण की आवश्यकता होती है क्योंकि उस वातावरण में ही विचार आता है और आकार लेता है। लेखक संवेदनशील होता है। उसकी संवेदनाएं ही जीवंतता को संजोती हैं। जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को कूटता, छानता, गीला करता है और फिर बर्तन का निर्माण करता है, ठीक उसी प्रकार लेखक भी इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरते हुए अपने संवेदनशील मन से किसी कहानी, उपन्यास,कविता अथवा विचार को आकार देता है।
उत्तराखंड के देहरादून स्थित थानों नामक स्थान पर भारत का पहला लेखक गांव आकार ले चुका है। विगत वर्ष अक्तूबर महीने में देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी द्वारा इसका लोकार्पण किया गया। यह लेखक गांव उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, भारतवर्ष के पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी के संकल्प से तैयार हुआ है। साहित्य, कला और संस्कृति को समर्पित यह लेखक गांव अब सृजन का केंद्र बनता जा रहा है, जहां देश- दुनिया के अनेक विद्वान एवं साहित्यकार पहुंच रहे हैं। विगत वर्ष की तरह इस वर्ष भी 3, 4 व 5 नवंबर को यहां साहित्य, कला एवं संस्कृति का अंतरराष्ट्रीय महोत्सव हुआ है। जिसमें देश-दुनिया के सैंकडों विद्वानों ने सहभागिता की है। 3 नवंबर का दिन उत्तराखंड के साहित्य,कला एवं संस्कृति को समर्पित रहा, जिसमें उत्तराखंड के कलाकारों ने विभिन्न रूपों में अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
लेखक गांव में अपना वक्तव्य देते हुए परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा कि- स्पर्श हिमालय महोत्सव मात्र उत्सव नहीं है। यह साहित्य, कला, संस्कृति और प्रकृति के संरक्षण- संवर्धन की दिशा में एक बड़ा संकल्प है। लेखकों- साहित्यकारों के सम्मान से यह देश बहुत तेजी से विश्व गुरु के संकल्प को पूरा करेगा। उद्घाटन कार्यक्रम में अपना महत्वपूर्ण वक्तव्य देते हुए आध्यात्मिक विभूति स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने अपने वक्तव्य ने कहा कि- भारत ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला एवं संस्कृति का केंद्र बनकर उभर रहा है। ऐसे में प्रत्येक प्रदेश में लेखक गांव बनें यह आवश्यक है। डॉ. निशंक जी द्वारा संकल्पित यह लेखक गांव देश-दुनिया के साहित्य, कला व संस्कृति प्रेमियों का मार्गदर्शन कर रहा है।
भारत का पहला लेखक गांव विचार, संकल्प,पुरुषार्थ और संवेदनशीलता का जीवंत उदाहरण है। सर्वविदित है कि भारतवर्ष के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक सुलझे हुए राजनेता होने के साथ-साथ वरिष्ठ साहित्यकार भी थे। एक साहित्यिक कार्यक्रम में उन्होंने वरिष्ठ साहित्यकार श्याम नारायण पाण्डेय को याद करते हुए कहा था- ऐसे साहित्यकार जिन्होंने अपना जीवन साहित्य की सेवा में लगा दिया लेकिन वृद्धावस्था में उनका जीवन कष्टों में बीता, क्या इस देश में कभी ऐसे लेखकों, साहित्यकारों की कोई चिंता करेगा। अटल जी की इस चिंता को विचार व संकल्प बनाकर डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी ने लेखक गांव की संकल्पना और संकल्प पर काम करना शुरू किया। थोड़ा समय तो लगा लेकिन अब वह संकल्प सिद्धि को पहुंच चुका है। आज यह स्थान सृजन का केंद्र बनता जा रहा है। लेखक गांव में संजीवनी वाटिका, नवग्रह वाटिका, हिमालयी भोजनालय एवं एक बड़ी संकल्पना के साथ नालंदा पुस्तकालय बनकर तैयार हैं। एक द्वार के पास बना भगवान नरसिंह का मंदिर साहित्य, कला एवं संस्कृति की अध्यात्म से संबद्धता और अध्यात्म के महत्व को दर्शाता है तो दूसरे द्वार पर आरोग्यता का वरदान देती धन्वन्तरि की प्रतिमा नूतन ऊर्जा का संचार करती है।
लेखक गांव का दूर तक फैला हरा भरा आंगन देश- दुनिया के साहित्यकारों, कला एवं संस्कृति प्रेमियों को आमंत्रित करता है। सामने हरा भरा पहाड़ और वहां से धीरे-धीरे आते जाते बादल यह अनुभव करवाते हैं कि विश्व प्रसिद्ध मेघदूत जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना भी ऐसे ही वातावरण में हुई होगी। लेखक गांव के आंगन में शान से लहराता राष्ट्रीय ध्वज यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मां भारती के प्रति त्याग एवं समर्पण का संदेश देता है। साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं के लिए यहां पर्याप्त अवसर हैं। उनके लिए यहां वरिष्ठ लेखकों से संवाद, आवास, भोजन, लेखन और प्रकाशन आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं। साहित्य, कला और संस्कृति में सृजनात्मकता और उत्कृष्टता हेतु कई प्रकार के सम्मान एवं पुरस्कारों की भी व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले सृजनशील लोगों के लिए यह आंगन खुला है। विगत एक वर्ष में देश की कई प्रतिष्ठित सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएं यहां कार्यक्रम कर चुकी हैं। कई वरिष्ठ लेखकों की महत्वपूर्ण पुस्तकों के लोकार्पण एवं कई महत्वपूर्ण विषयों पर व्याख्यान निरंतरता के क्रम में हैं। इस बार अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव का केंद्रीय विषय विकसित भारत-एक देश एक दृष्टि था। इससे जुड़े हुए विभिन्न विषयों पर तीन दिनों में कई सत्रों में व्यापक चर्चा एवं चिंतन हुआ है। कार्यक्रम के समापन समारोह में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लेखक गाँव को नए विचारों का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि- उत्तराखंड देवभूमि है। यहां से निकले संदेश समूची मानवता का कल्याण करेंगे।
लेखक गांव के संस्थापक व संरक्षक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि- हिमालय की गोद देवभूमि उत्तराखंड में भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रेरणा से लेखक गांव की स्थापना मात्र एक आधारभूत संरचना के रूप में ही नहीं बल्कि प्रकृति, संस्कृति, साहित्य, कला, सांस्कृतिक सौंदर्य और अध्यात्म के सान्निध्य में पूरी दुनिया के सृजनशील लोगों का एक महत्वपूर्ण गंतव्य स्थल है।
आज भौतिक संसाधनों का निरंतर विस्तार हो रहा है। जीवन की भागदौड़ और आपाधापी में संवेदनाएं कहीं पीछे छूट रही हैं। ऐसे में सृजन के लिए स्थान और वातावरण का नितांत अभाव है। ध्यान रहे सृजनशील मन ही साहित्य, कला और संस्कृति के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान और विकास के नए रास्ते खोज सकता है। यह सृजनशील मन ही निर्माण का और विकसित राष्ट्र का आधार बनता है। विचार के अभाव में विकास की संकल्पना संभव नहीं है। आज यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक राज्य में ऐसे लेखक गांव अथवा सृजन केंद्र स्थापित किए जाएं जहां स्वस्थ और सकारात्मक संवाद हों, जिनसे नए विचार निकलें।
उत्तराखंड के देहरादून में बना यह भारत का पहला लेखक गांव सृजन के साथ-साथ देश-दुनिया के लिए प्रेरणा का केंद्र भी बनेगा, ऐसा विश्वास है।
डॉ.वेदप्रकाश