एकात्म मानववाद का संदेशवाहक है योग

डॉ. शंकर सुवन सिंह

मानव का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध होता है। समाज प्रकृति की व्यवस्था पर टिका हुआ है। प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है – प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य  प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति। प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं। मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। पृथ्वी मां स्वरुप है। प्रकृति जीवन स्वरुप है। पृथ्वी जननी है। प्रकृति पोषक है। पृथ्वी का पोषण प्रकृति ही पूरा करती है। जिस प्रकार माँ के आँचल में जीव जंतुओं का जीवन पनपता या बढ़ता है तो वहीँ प्रकृति के सानिध्य  में जीवन का विकास करना सरल हो जाता है। पृथ्वी जीव जंतुओं के विकास का मूल तत्व है। प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। मानव या व्यक्ति समाज की एक इकाई है। कई व्यक्तियों का समूह समाज कहलाता है। मानवता का एकीकृत होना ही एकात्म मानववाद है। मानवता एकता का प्रतीक है। एकता अखण्डता को दर्शाती है। योग भारत की अक्षुण्ण एकता का परिचायक है। शरीर और आत्मा का एकीकरण मानवता को जन्म देता है। योग शरीर को आत्मिक अनुभूति प्रदान करता है। स्व के साथ अनुभूति ही दर्शन कहलाता है। एकात्म मानववाद दर्शन का ही हिस्सा है। एकात्म मानववाद विचारधारा के जनक/प्रस्तावक पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी थे। एकात्म मानववाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शक दर्शन है। योग अपनेपन को विकसित करता है। अपनापन, अकेलापन को दूर करता है। अपनापन का शाब्दिक अर्थ है- आत्मीयता । आत्मीयता अर्थात अपनी आत्मा के साथ मित्रता। कहने का तात्पर्य- मनुष्य कभी अकेला नहीं होता है। मनुष्य जब नकारात्मक विचारों से ग्रसित होता है तो वह आत्मीयता अनुभव नहीं करता है। नकारात्मकता अकेलेपन को जन्म देती है। सकारात्मकता अपनेपन को जन्म देती है। अपनापन ही अकेलापन को दूर करता है। भीड़ में शामिल होने से हम अपने को अपने आप से अलग करते हैं ।भीड़ में शामिल होना अर्थात अपने को अपने आप से अलग करना हुआ। अलग होना आत्मीयता के लक्षण नहीं हैं। अपने आप को अपने से अलग करके कभी भी अकेलापन दूर नहीं किया जा सकता है। अतएव अपनी आत्मीयता को बनाए रखें। जिससे जीवन में अकेलेपन का अनुभव न हो। कोई भी व्यक्ति इस धरती पर अकेला नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति भौतिक रूप से भौतिक संसाधनो व चारो ओर के आवरण से घिरा हुआ है। देखा जाए तो भौतिक रूप से भी व्यक्ति अकेला नहीं है। अतएव हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति न तो आध्यात्मिक रूप से अकेला है और न ही भौतिक रूप से। योग से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। योग रोग को ख़त्म करता है। अयोग्य वह है जो असंतुलित है। असंतुलन आलस्य की निशानी है। आलसी व्यक्ति असंतुलित होता है। अयोग्य व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए अनुपयुक्त होता है। योग आलस्य और प्रमाद को दूर कर व्यक्ति को संतुलित करता है। संतुलन कर्मठता की निशानी है। योग्य व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त होता है। योग व्यक्ति को योग्य बनाता है। ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ में चरैवेति शब्द का उल्लेख मिलता है। चरैवेति अर्थात चलते रहना, रुकना नहीं। हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही आगे बढ़ते चलने का नाम जीवन है। जिस प्रकार बहते हुए जल में पवित्रता बनी रहती है उसी प्रकार निरंतर चलने वाले व्यक्ति में कर्मठता बनी रहती है। अयोग्यता ठहराओ के सिद्धांत पर आधारित है। अयोग्य व्यक्ति ठहरे हुए जल के समान है जबकि योग्य व्यक्ति बहते हुए जल के समान है। योग आंतरिक शांति या मन की शांति बनाए रखता है, जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है। योग से शांति, सामंजस्यता और शालीनता का विकास होता है। योग आत्मनिर्भरता के मार्ग को प्रशस्त करता है। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है। हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्श शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2025 में 11 वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है । 11 वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम/प्रसंग है- एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य। अर्थात पृथ्वी पर बसने वाले सभी मानव स्वस्थ्य हो और उनकी काया निरोगी हो। योग का स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। योग से शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है। यही नवीन ऊर्जा हमारे शरीर में नई कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। शरीर को पुनर्निर्मित करने का काम योग का है। योग से एकात्म मानववाद का विस्तार होता है। अतएव योग वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है) के दर्शन को फलीभूत करता है। योग से पूरा विश्व स्वस्थ्य होगा। एक स्वस्थ्य विश्व ही विश्व की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करेगा। अतः यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पूरे विश्व का स्वास्थ्य वैश्विक सम्पदा का आधार है। एक स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मस्तिष्क का वास होता है। स्वस्थ्य मस्तिष्क नशे जैसी आदतों से दूर रहता है। स्वस्थ्य मस्तिष्क स्वस्थ्य समाज की रीढ़ है। मानवता स्वस्थ्य मस्तिष्क में ही जन्म लेती है। एकात्म मानववाद की विचारधारा पूरे विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाती है। यदि पूरे विश्व की मानवता एक साथ एक मंच पर खड़ी हो जाए तो विश्व स्वर्ग हो जाएगा। इस्राइल- ईरान और रूस- यूक्रेन युद्ध अस्वस्थ्य विचारधारा का परिणाम है। मानवता जंग करना नहीं सिखाती। मानवता मानव के साथ प्रेम करना सिखाती है। एकात्म मानववाद एक स्वस्थ्य विचारधारा है। अतएव हम कह सकते हैं कि योग, एकात्म मानववाद का संदेशवाहक है।

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

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