योग की महिमा

yog  -विमलेश बंसल ‘आर्या’
योग ऋत है , सत् है, अमृत है।
योग बिना जीवन मृत है।।

1. योग जोड़ है, वेदों का निचोड़ है।
योग में ही व्याप्त सूर्य नमस्कार बेजोड़ है।।

2. योग से मिटती हैं आधियाँ व्याधियाँ।
योग से मिटती हैं त्वचा की कोढ़ आदि विकृतियां।।

3. योग जीवन को जीने की जडी बूटी है।
योग ज्ञानामृत पीने की खुली हुई टूटी है।।

4. योग दर्शन  है, मनन है, ध्यान है।
योग महर्षि पतंजलि का शोध है वरदान है।।

5. योग ईश्वर से मिलने की परम सीढ़ी है।
जिसको ऋषि मुनियों ने अपनाया पीढ़ी दर पीढ़ी है।।

6. योग गीत है, संगीत है, सरस वादन है।
योग बिन खर्चे का सबसे सस्ता साधन है।।

7. योग से ही होता है चरित्र निर्माण व बचती है संस्कृति।
योग से ही बनते हैं संस्कार, विमल होती है चित्त वृत्ति।।

8. योग आधार है गीता आदि ग्रंथों का।

योग आभार है सरल सौम्य भक्तों का।।
9. योग तारण  है, दुःख निवारण है।

हर बड़ी से बड़ी समस्या के समाधान का कारण है।।

 

10. योग में निहित है पूर्ण जीवन जीने की शक्ति।

योग से ही होंगे ईश दर्शन, बढ़ेगी राष्ट्र भक्ति।।
11. रोग, भोग मिटते हैं सब योग से।
मोद, प्रमोद, विनोद होते हैं सब योग से।।

12. योग उलझे हुए हर सवाल का जवाब है।
कंटीली झाड़ियों में महकता, मुस्कराता, प्रसंञ्चित्त  गुलाब है।।

13. ज्ञान योग, ध्यान योग, कर्म योग, सांख्य योग, भक्ति योग, सब योग के प्रकार हैं।
योग की है महिमा भारी, नमन बारम्बार है।।

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