कविता

तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा…

-जावेद उस्मानी-
poem

तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा
उसने जो भी कहा, क्या खूब कहा
तुमको उसको मैं ही तो चुनने वाला था
आखिर को इक मैं ही तो सुनने वाला था!

तुम ठहरे सपनों के सौदागर
वह ठहरा बातों का जादूगर
सच झूठ के बीच इक बारीक़ सा जाला था
आखिर को इक मैं ही तो सुनने वाला था!

दिन तेरे बदलने वाले थे
दिन उसके बदलने वाले थे
मेरे पास तो ख़ाली शब्दों का ही हवाला था
आखिर को इक मैं ही तो सुनने वाला था!

मेरी चाहत की तो, कोई पूछे मुझसे
अमनो राहत की तो, कोई पूछे मुझसे
कई बोलों में से जो किसी एक को चुनने वाला था
आखिर को बस इक मैं ही तो सुनने वाला था!