
ओंठों पर मुस्कान खिली है,
आंखों में है जादू।
मुझे देखकर खुश कितने हैं,
मेरे अम्मा बापू।
मुंडन अभी करा के आई,
लगती हूं मैं कैसी?
फूलों पर बैठी तितली हूं,
या हूं पारियों जैसी।
प्रभूदयाल श्रीवास्तव
ओंठों पर मुस्कान खिली है,
आंखों में है जादू।
मुझे देखकर खुश कितने हैं,
मेरे अम्मा बापू।
मुंडन अभी करा के आई,
लगती हूं मैं कैसी?
फूलों पर बैठी तितली हूं,
या हूं पारियों जैसी।
प्रभूदयाल श्रीवास्तव
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।