मन से जोड़ती ‘मन की बात’

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मनोज कुमार

रेडियो अपने जन्म से विश्वसनीय रहा है. सुभाष बाबू का रेडियो आजाद हिन्द हो या आज का ऑल इंडिया रेडियो. प्रसारण की तमाम मर्यादा का पालन करते हुए जो शुचिता और सौम्यता रेडियो प्रसारण में दिखता है, वह और कहीं नहीं. मौजूं सवाल यह है कि रेडियो प्रसारण सेवा का आप कैसे उपयोग करते हैं? इस मामले में महात्मा गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो अभिनव प्रयोग किया है, वह अलहदा है. गांधीजी ने रेडियो को शक्तिशाली माध्यम कहकर संबोधित किया था और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे चरितार्थ कर दिखाया. संचार के विभिन्न माध्यमों के साथ मोदीजी का दोस्ताना व्यवहार रहा है लेकिन रेडियो प्रसारण के साथ वे मन से जुड़ते हैं.

मन से मन को जोडऩे का उपक्रम ‘मन की बात’ के सौ एपिसोड पूरे होने जा रहे हैं तो इसके प्रभाव को लेकर कुछ चर्चा किया जाना सामयिक है. कहने को सौ एपिसोड बहुत आसान सा लगता है लेकिन देखा जाए तो यह एक कठिन टास्क है जिसे मोदीजी जैसे व्यक्ति पूरा कर सकते थे और किया भी. ‘मन की बात’ शीर्षक को लेकर लोगों को लगने लगा कि वे अपने मन की बात कह रहे हैं लेकिन ‘मन की बात’ कार्यक्रम का कोई भी एपिसोड सुन लीजिये और विषयों की विविधता मिलेगी. एक तंत्र विकसित किया गया जो देश के अनजाने और दूर-दराज इलाकों में अपने काम से कामयाबी हासिल करने वालों से प्रधानमंत्री सीधे बात करते हैं. उनके कार्यों के बारे में जानते हैं और अपनी आपसी चर्चा के बीच उस कामयाबी के रास्ते को समझने की कोशिश करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में देशभर से लाखों की तादाद में जुड़े श्रोताओं को ना केवल नई जानकारी मिलती है बल्कि उन्हें भी कुछ नया करने का हौसला मिलता है. इसे ही मैंने मन से मन को जोडऩे वाला कार्यक्रम ‘मन की बात’ कहा है.

शुरूआती दौर में रेडियो सामान्य दिनचर्या का एक हिस्सा बना हुआ रहता था, वहीं देश और दुनिया से जोड़े रखने का भी यही एक माध्यम था. मोबाइल का दौर आया और रेडियो बाजार से गायब हो गए. हालांकि संचार की इस दौड़ में बने रहने के लिए रेडियो बन गए अब मोबाइल रेडियो. लेकिन वर्ष 2014 के बाद मोबाइल रेडियो में बड़ा बदलाव देखा गया जब  3 अक्टूबर, 2014 को ऑल इंडिया रेडियो पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू किया कार्यक्रम ‘मन की बात’. कार्यक्रम की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब कुल 98 एपिसोड प्रसारित किए जा चुके हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत करने का मकसद भारत में एक बार फिर लोगों का ध्यान रेडियो की ओर लाना तो था ही साथ ही जनता से रेडियो के ज़रिए संवाद कर जनता के मुद्दों पर बातचीत करना भी था. इसका असर यह हुआ कि जहां जनता पहले तक खास मौकों पर ही रेडियो सुना करती थी वही नरेंद्र मोदी के मन की बात के शुरू होने के बाद तक भी जनता इस कार्यक्रम से जुडी हुई है.

‘मन की बात’ में मोदी जी अपनी मन की बात कम करते हैं और लोगों के मन की बात ज्यादा सुनते हैं. ‘मन की बात’ कार्यक्रम सुनते हुए मुझे एक छोटी सी कहानी का स्मरण हो आता है. यहां इस कहानी का उल्लेख करना समीचीन होगा. बात यूं है कि एक बंद ताला पड़ा हुआ था और उसके पास एक छोटी सी चाबी और एक भारी-भरकम हथौड़ा भी. बंद ताले को खोलने के लिए हथौड़े ने अपनी पूरी ताकत लगा दी और परास्त होकर वहीं बैठ गया. इतने में छोटी सी चाबी बंद ताले के दिल में प्रवेश किया और ताला खुल गया. भारी-भरकम हथौड़े के लिए यह रहस्य की बात थी. उसने चाबी से पूछा कि मैं इतना वजनदार होने के बाद भी ताला नहीं खोल पाया और तू इत्ती सी चाबी ताले को खोल दिया. यह कैसे हुआ? ताले की तरफ मुस्कराती हुई चाबी ने कहा कि किसी के दिल को खोलने के लिए उसके दिल में उतरना पड़ता है और वही मैंने किया. मोदी जी भी ‘मन की बात’ के जरिये चाबी की मानिंद लोगों के दिल में उतरकर उनके दिल तक पहुंच जाते हैं.

भारत जैसे महादेश में अनेक ऐसे लोग हैं जो गुमनामी का जीवन जी रहे हैं लेकिन उनका काम, उनकी सफलता की कोई चर्चा नहीं होती है. ऐसे में कोई कारीगर, कोई किसान, कोई महिला जब प्रधानमंत्री से बात करती है तो उसकी कामयाबी ना केवल सामने आती है बल्कि ये लोग और आगे बढऩे का हौसला पाते हैं. हमारे भारतीय समाज में परीक्षा प्रतिभा मूल्यांकन के स्थान पर भय का वातावरण निर्मित करता है और बच्चे फेल होने के डर से कई बार जान देने तक उतारू हो जाते हैं. इन बच्चों के भीतर साहस जगाने के लिए और परीक्षा से भयभीत ना होने का मंत्र मोदीजी देते हैं तो ज्यादतर बच्चों के भीतर का डर पूरी तरह भले ही खत्म ना हो लेकिन कम तो जरूर हो जाता है. परीक्षा देने जाने से पहले हम उस अदृश्य शक्ति से पास हो जाने की कामना करते हैं क्योंकि हमारी पीठ पर हाथ रखकर हमें हौसला देने वाला कोई नहीं होता है. समाज का कोई भी तबका इस बड़ी समस्या पर कभी कोई पहल करने की जरूरत नहीं समझा इसलिये परीक्षा का भूत हमेशा हावी रहा लेकिन ‘मन की बात’ के जरिये मोदीजी ने एक पालक की भूमिका का निर्वहन किया तो सारा का सारा मंजर ही बदल गया.

‘मन की बात’ के जरिये मोदीजी ने बड़ी ही खामोशी के साथ बाजार को बदल दिया. इसके लिए एक उदाहरण का उल्लेख करना जरूरी हो जाता है. खादी हमारा राष्ट्रीय स्वाभिमान है लेकिन नए जमाने के साथ खादी का चलन कम से कम होता जा रहा था. ऐसे में मोदीजी ने ‘मन की बात’ के जरिये खादी अपनाने के लिए लोगों से आह्वान किया. यह यकिन करना मुश्किल होगा  लेकिन सच है कि खादी की बिक्री में जो इजाफा हुआ, वह रिकार्ड है. अब यहां इस बात को दर्ज किया जाना चाहिए कि ‘मन की बात’ में मोदीजी के मन की बात है या भारत के एक सौ तीस करोड़ लोगों के मन की बात है.

‘मन की बात’ के जरिये ऑल इंडिया रेडियो का कायाकल्प हो गया. रेडियो के राजस्व में जितनी बढ़ोत्तरी ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से हुई, वह अब तक के रिकार्ड को ध्वस्त करने वाला है. पक्का-पक्का आंकड़ा देना मुनासिब नहीं है क्योंकि प्रत्येक माह होने वाले ‘मन की बात’ के जरिए रेडियो के राजस्व में बढ़ोत्तरी होती जा रही है. एक मोटा-मोटी आंकड़ें की बात करें तो मन की बात के प्रसारण शुरू होने के बाद से अब तक राजस्व में 33.16 करोड़ कमाए गए हैं जबकि प्रचार पर केवल 7.29 करोड़ खर्च किए गए थे। यह आंकड़ा 2023 के आरंभिक दिनों की है. रेडियो प्रसारण सेवा के क्षेत्र में प्रधानमंत्री द्वारा किये गए नवाचार से ना केवल रेडियो के दिन फिर गए बल्कि देश के दूर-दराज इलाकों में ‘मन की बात’ की गंूज सुनाई देनी लगी.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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