समाज

‘भगवा’ की आड़ में पनपता अपराध

-निर्मल रानी

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भगवा अथवा केसरिया रंग भारतीय संस्कृति के समक्ष अत्यंत सम्‍मानित व पवित्र स्थान रखता है। प्राचीन धर्म ध्वज से लेकर स्वामी विवेकानंद की पोशाक तक तथा भारतीय तिरंगे में इस रंग के शामिल होने से लेकर देश के हजारों प्रतिष्ठित व सम्‍मानित साधु-संतों एवं धर्मगुरुओं के लिबास तक का यही रंग देखा जा सकता है। कभी-कभार हमारे देश की संसद में भी कुछ भगवा प्रेमी सांसद इसी रंग की पोशाक पहने या केसरिया पगड़ी अपने सिरों पर रखे दिखाई देते हैं। वर्तमान दौर में गरीबों, बाल मादूरों तथा मेहनतकशों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे स्वामी अग्निवेश भी इसी भगवे रंग की पोशाक को प्राथमिकता के आधार पर धारण करते हैं। कुल मिलाकर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि भगवा अथवा केसरिया रंग का भारतीय जनमानस से लगाव सदियों पूर्व भी था और आज भी है। शायद यही वजह थी कि पिछले दिनों भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा अपने एक भाषण में जब ‘भगवा आतंकवाद’ के शब्द का प्रयोग किया गया था उस समय इस विषय पर पूरे देश में हंगामा करने वाला एक वर्ग भगवा रंग को लेकर कुछ भी नकारात्मक अथवा अपमानजनक तर्क सुनना ही नहीं चाहता था।

अब जरा गौर कीजिए कि हमारे ही देशवासी इसी भगवा रंग की पोशाक को धारण कर क्या-क्या गुल खिला रहे हैं और किस प्रकार हमारी संस्कृति व भावनाओं से जुड़े इस पवित्र रंग को बदनाम करने का बीड़ा उठाए हुए हैं। पूरे देश में लाखों बेटिकट साधु, भिखारी अथवा बाबा वेशधारी रेल गाड़ियों पर बेझिझक पूरे देश की यात्रा करते हुए देखे जा सकते हैं। इनका भगवा वस्त्र ही गोया टिकट होने का ‘प्रमाण पत्र’ होता है। यह बेटिकट घुसपैठिए रेल गाड़ियों में टिकट धारक यात्रियों के लिए प्राय: समस्याएं खड़ी करते रहते हैं। आमतौर पर इन्हें रेल के डिब्बे के दरवाजों के पास बैठे या शौचालय के मार्ग में बैठा देखा जा सकता है। प्राय: रेल यात्री इन्हें अपमानित करते हैं तथा इन्हें भला बुरा भी कहते हैं। अक्सर टिकट निरीक्षक अथवा गश्ती पुलिस के लोग भी इन्हें गालियां देते हैं व इनके साथ दुर्व्‍यवहार करते भी देखे जा सकते हैं। परंतु ऐसे लोगों को देखकर तो यही महसूस होता है कि हमारे स्वतंत्र भारत में भगवा वस्त्र धारण करने का अर्थ ही गोया यह हो गया है कि आपसे रेल यात्रा का टिकट कोई पूछेगा ही नहीं।

उसके पश्चात् यही भगवाधारी बेटिकट यात्री किसी न किसी रेलवे स्टेशन पर उतर कर प्लेटफार्म, प्लेटफार्म को जोड़ने वाले रेलवे पुल, विश्रामालय तथा रेलवे स्टेशन के आसपास के क्षेत्रों में कब्‍जा जमाए देखे जा सकते हैं। जुआ, सट्टा, शराबखोरी तथा तमाम किस्म के नशीले द्रव्यों का सेवन तथा खरीद-फरोख्‍त इन्हीं भगवाधारियों के नेटवर्क के बीच पनपता है। परंतु न तो इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई होती है न ही इन्हें इस बात के लिए बाध्य किया जाता है कि वे कम से कम भगवा वस्त्र धारण कर ऐसी हरकतों को तो अंजाम न दें।

भगवाधारियों के रेलगाड़ियों में बेटिकट चलने का तो कुछ ऐसा प्रभाव दिखाई देने लगा है कि अब तो तमाम यात्री केवल रेल यात्रा के दौरान ही भगवा वस्त्र धारण करते हैं। और अपनी मंजिल पर पहुंचकर वह प्लेटफार्म से बाहर आते ही उस ‘रेल पास’ रूपी भगवा पौशाक को अपने थैले में डालकर अन्य सामान्य कपड़े धारण कर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। गोया मुफ्तखोर प्रवृति के रेल यात्रियों के लिए भी भगवा वस्त्र एक कवच का काम करता है। लूट-खसोट, चोरी, व्याभिचार जैसे और भी तमाम अपराध इन्हीं के नेटवर्क के अंतर्गत होते रहते हैं। यही भगवाधारी आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के करीब पड़ने वाले शराब के ठेकों के ऐसे समर्पित एवं पहले ग्राहक होते हैं जो शराब का ठेका खुलने से पहले ही अंधेरे में आकर ठेके के सामने बैठ जाते हैं। और ठेका खुलते ही सूर्योदय से पूर्व ही यह नशे में धुत होने को ही अपने जीवन की सफलता समझते हैं।

दिल्ली-अमृतसरके मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग सं या-1 पर कई दशकों से भगवाधारियों काएकऐसा गिरोह सक्रिय है जो जीप पर सवार होता है।यह गिरोह राजमार्ग पर मिलने वाले किसी पैसे वाले व्यक्ति की पहचान कर अपने एक चेले को उस व्यक्ति के पास भेजते हैं। वह चेला उस व्यक्ति से यह अनुरोध करता है कि जीप में बैठे महाराज जी आपको बुला रहे हैं। जब वह व्यक्ति उनके पास जाता है तो वे सभी भगवाधारी साधुरूपी लोग उस व्यक्ति को भावनात्मक व मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार कर लेते हैं कि वह मंदिर निर्माण, धर्मशाला, भंडारा आदि किसी भी बहाने से अच्छी खासी रंकम उन्हें दे दे। और इस गिरोह के दिनभर के प्रयासों में कई धर्मात्मा उनकी बातों में आ ही जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग पर दशकों से चला आ रहा यह सिलसिला आज भी भगवा वस्त्र की आड़ में बदस्तूर जारी है। इसी प्रकार के संगठित गिरोह के लोग गेहूं व धान की कटाई के बाद गांव-गांव जाकर जमींदारों से भी तरह- तरह के झूठ बोलकर धर्म के नाम पर राशन इकट्ठा कर लाते है जिसे बाद में बाजार में बेचकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। पूरे देश में भगवा कपड़े पहनकर भविष्य बताने, योतिष विद्या का ढोंग करने,सांप दिखाने, चमत्कार दिखाने आदि का नाटक करते हुए तमाम लोगों को देखा जा सकता है। देश के तमाम छोटे व बड़े तीर्थस्थान तो भगवा वस्त्रधारी मुफ्तखोरों से पटे पड़े हैं। यदि ऐसे भगवाधारियों से भगवा वस्त्र अथवा भगवा रंग के विषय में कुछ पूछा जाए या यही पूछा जाए कि आपने इसी विशेष रंग की पोशाक क्यों धारण की हुई है तो उनके पास इस सवाल का कोई उत्तर नहीं होता।

तीर्थ स्थानों पर तमाम ऐसे बुजुर्ग, असहाय, अपाहिज, कमाखोर भगवाधारी लोग दिखाई देते हैं जो अपनी खराब पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन तीर्थ स्थलों पर आकर अपने जीवन का शेष समय बिताने के लिए मजबूर हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे असहाय बुजुर्ग दया के पात्र भी हैं। परंतु इन्हीं के मध्य लाखों ऐसे हरामंखोर, आलसी तथा कामचोर लोग भी अपनी घुसपैठ कर चुके हैं जो शारीरिक रूप से पूरी तरह हृष्ट पुष्ट, स्वस्थ तथा मेहनत मादूरी कर अपना पेट पालने की पूरी क्षमता रखते हैं। परंतु भगवा पोशाक धारण करने के बाद मुफ्त में प्राप्त होने वाला रोटी, कपड़ा, नशा, नक़दी तथा रेलवे स्टेशन जैसा सर्व सुविधा संपन्न विशाल नि:शुल्क आशियाना उन्हें मेहनत-मजदूरी के काम करने से रोक देता है। इसी प्रकार के कुछ लोग भगवा वस्त्र पहनकर कभी किसी हाथी की पीठ पर सवार होकर गली-गली यह कहते घूमते हैं कि गणेश जी आपके द्वार पर आए हैं। इस प्रकार आम लोगों को गणेश जी के नाम पर भावनात्मक रूप से ठगकर यह भगवाधारी अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। अक्सर कुछ लोग गाय पर कोई चादर डालकर उसे लेकर गली-गली घुमाते हैं तथा गऊ माता के नाम पर पैसे व खाद्य सामग्री इकट्ठा करते फिरते हैं। यह सब कुछ अर्थात् अपराध, झूठ, फ़रेब, मक्कारी, व्याभिचार, नशा, नशीली वस्तओं का व्यापार, भावनात्मक ब्लैकमेलिंग, कामचोरी, हरामखोरी आदि सभी र्दुव्यसनों को भगवा रंग का लिबास अपने आप में आसानी से ढक लेता है।

अत: यदि हमें वास्तव में भगवा रंग के मान-सम्‍मान की रक्षा करनी है तो इसके दुरुपयोग को रोकने की सख्‍त जरूरत है। ऐसे संगठन जो स्वयं को भारतीय संस्कृति का रखवाला या ठेकेदार समझते हैं खासतौर पर वह संगठन जो ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्दों को सुनना भी पसंद नहीं करते सर्वप्रथम उन्हीं का यह दायित्व है कि वे भगवा रंग की पोशाक धारण करने वालों के लिए कुछ दिशा निर्देश भी जारी करें। निश्चित रूप से भगवा रंग की आड़ में पनप रहे अपराध व पाखंड को दूर करने के लिए ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए जिससे कि हमारे देश की संस्कृति से जुड़े इस रंग का रुतबा हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज में शामिल केसरिया रंग की ही तरह बुलंद रह सके।