मोदी को घेरने के फिराक में अभिजात्य गिरोह

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ahmadbad080909इसरत जहां मुठभेड के बहाने एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने की योजना बनाई जा रही है। अहमदाबाद महानगर न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस0 पी0 तमांग की आख्या आते ही तिस्ता गिरोह पुन: सक्रिय हो गया है। तमांग की आख्या में कहा गया है कि इसरत जहां और उसके साथ मारे गये उसके तमाम साथी निर्दोष थे तथा गुजरात पुलिस ने कथित आतंकियों को मुम्बई से पकडकर लाई, दो दिनों तक अवैध पुलिस अभिरक्षण में रखी और फिर उसे मार कर मुठभेड दिखा दिया गया। न्यायमूर्ति तमांग की आख्या कहता है कि गुजरात पुलिस ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि कुछ अधिकारियों को मुख्यमंत्री के सामने अपना कद उंचा करना था। लेकिन इसरत मुठभेड के बाद सन 2004 में गुजरात पुलिस ने जो आख्या प्रस्तुत की वह न्यायमूर्ति तमांग की आख्या से बिल्कुल भिन्न है। उस आख्या में कहा गया है कि इसरत और उसके तमाम साथी पाकिस्तान समर्थित अति खतरनाक आतंकी संगठन लस्कर ए लोईबा के सदस्य थे और वे लस्कर के इशारे पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारने अहमदाबाद आए थे। गुजरात पुलिस का यह भी दावा है कि पुलिस को इस बात की जानकारी केन्दीय गुफिया विभाग से प्राप्त हुई और खुफिया विभाग के निशानदेही के आधार पर ही इसरत ऑप्रेशन को अंजाम दिया गया। गुजरात पुलिस के द्वारा दी गयी आख्या की पुष्टि विगत दिनों केन्द्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा राज्य सरकार को भेजे गए एक शपथ पत्र से भी होता है। उस सपथ पत्र में बाकायदा कहा गया है कि 15 जून, सन 2004 में पुलिस अभियान के दौरान मारे गये इसरत के साथ वे तमाम लोग आतंकवादी थे और लस्कर ए तोईबा के सक्रिय सदस्य थे। शपथ पत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि लस्कर के मुख-पत्र गजबा से इस बात की पुष्टि होती है। गजबा नामक अखबर में क्या लिखा है इस बात का खुलासा न तो केन्द्र सरकार के किसी एजेंशी ने किया है और न ही गुजरात सरकार ने इस विषय पर कोई मुकम्मल तथ्य उपलब्ध करायी है लेकिन केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस बात को माना है कि उसके द्वारा एक सपथ पत्र गुजरात सरकार को भेजा गया है।

इन तमाम बिन्दुओं पर प्रकाश डालने से ऐसा लगता है इसरत मामले में बडा झोल है जो किसी स्वतंत्र संस्था के द्वारा जांच के बाद ही सामने आएगा लेकिन इसरत प्रकरण से दिल्ली एवं गांधीनगर की राजनीति में एक बार फिर से उबाल आ गया है। जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी अपने मुख्यमंत्री के पक्ष में उतर गयी है वही कांग्रेस और वाम दल मोदी को आदमखोर साबित करने की योजना में लग गये हैं। इस पेचीदे मुठभेड पर नि:संदेह एक बार फिर राजनीति की रोटी सेका जाना तय लग रहा है। लेकिन जो लोग इसरत प्रकरण को नरेन्द्र मोदी से जोड कर देख रहे हैं वे या तो गुजरात की वस्तिुस्थिति से अनभिग्य है या फिर वे किसी न किसी रूप से पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। मोदी, गुजरात और गुजरात की परिस्थिति को समझाने के लिए न केवल सन 2002 के दंगे पर ध्यान केन्द्रित करना होगा अपितु दंगे के पीछे की पृष्ठमूमि भी समझनी होगी। जो लोग सन 2002 के दंगे को सरकार संपोषित षडयंत्र मानते हैं वे भी गलत हैं।

गुजरात में हिन्दू मुसलमानों के बीच दंगा कोई नई बात नहीं है, लेकिन पहले दंगों में मुसलमान भारी पडते थे परंतु गोधरा कांड के बाद फैले दंगे में मुसलमान कमजोर पड गये। इसके पीछे दो कारण है एक तो पहले के अपेक्षा हिन्दू आक्रामक हुआ है। दूसरा दंगों में गुजरात प्रशासन का हिन्दुओं के प्रति सहानुभूति है। इसे कोई आरएसएस से जोडे या फिर यह कहे कि यह गुजरात के भाजपा शासन द्वारा संपोषित षडयंत्र का प्रतिफल है तो वह उसकी मनोवृति हो सकती है लेकिन ऐसा देश भर में हुआ है। बिहार के भागलपुर के दंगे में भी ऐसा ही हुआ। भागलपुर के दंगे में मुसलमानों की तुलना में हिन्दू ज्यादा आक्रामक थे, साथ ही वहां के बहुसंख्यक हिन्दू अधिकारियों ने हिन्दुओं के प्रति सहानुभूति दिखाई। आए दिन ऐसी परिस्थिति देश के कई भागों में देखने को मिल रहा है। देश के कई भागों में ऐसा देखा जाता है कि वह चाहे किसी पार्टी का नेता हो दंगे से समय हिन्दू हिन्दुओं के पक्ष में और मुसलमान नेता मुसलमानों के पक्ष में खडा हो जाता है। तो फिर गुजरात देश का अपवाद कैसे हो सकता है? यहां भी सन 2002 के दंगे में वही हुआ जो आए दिन देश के अन्य भागों में हो रहा है लेकिन सन 2002 का गुजरात दंगा कांग्रेस और साम्यवादी दलों के लिए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक बडा हथियार साबित हुआ। देश की मीडिया ने भी गुजरात के दंगे को बेवजह तूल दिया। इस बजह से गुजरात ही नहीं देश के अन्य भागों के मुसलमानों में एक नए प्रकार का डर घर कर गया। इस डर का फायदा सीमा पर के दुश्मनों ने उठाया और देखते ही देखते पूरा भारत इस्लामिक आतंकवाद के जद में आ गया। सीधे साधे शब्दों में यह कहा जाये तो देश में इस्लामी आतंकवाद का विस्तार भारतीय मीडिया और प्रतिपक्षी राजनीति के नमारात्मक प्रयास का प्रतिफल है।

सन 2002 के दंगे के बाद गुजरात इस्लामी आतंकवाद के जद में आ गया। इस बात पर कम चर्चा होती है लेकिन दंगे के बाद गुजरात के सैंकडों हिन्दू नेताओं की हत्या हुई है। इसके अलावा लगभग 20 छोटी बडी आतंकी हमले गुजरात में हो चुके हैं। यह साबित करने के लिए काफी है कि दंगा में विश्वास करने वाली शक्ति अपनी रणनीति बदल ली है एवं वह अब हिन्दू नेतृत्व को अपना निशाना बना रही है साथ ही दंगा तो नहीं आतंकी हमला कर हिन्दुओं को मारने का कोटा पूरा किया जा रहा है। इस परिस्थिति में अगर केन्द्रीय गुप्तचर संस्था गुजरात पुलिस को कोई सूचना देती है तो उसपर कार्रवाई स्वाभाविक है। इसके अलावा इसरत अभियान में गुजरात और महाराष्ट्र दोनों राज्यों की पुलिस बराबर की हिस्सेदार थी तो फिर गुजरात पुलिस और गुजरात के मुख्यमंत्री को ही कठघरे में खडा करना कितना उचित है, इसपर विशद मीमांसा की जरूरत है।

हर मामले में मोदी और गुजरात को घसीटना आज देश की मीडिया के लिए मानो फैसन हो गया हो। अभी अभी उत्तराखंड और दिल्ली में फर्जी मुठभेड हुए हैं लेकिन किसी मीडिया समूह ने इस बात की चर्चा नहीं की कि वहां का मुख्यमंत्री आदमखोर है लेकिन मोदी को लगातार मीडिया यह साबित करने पर लगी है कि मोदी उल्पसंख्यकखोर हैं। इससे मीडिया का अभिजात्य, जातिवादी चेहरा उभरकर सामने आता है। वर्तमान समय में देश के अंदर एक खतरनाक साजिश हो रही है। देश के कुछ अभिजात्य परिवार, देश के सभी तंत्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाह रहे हैं। इन समूहों को इस काम में बहुत हद तक सफलता भी मिल चुकी है। देश का सर्वोच्च न्यायालय मानों कुछ परिवार के लिए आरक्षित कर दिया गया हो। यही हाल देश के कार्यपालिका का भी है। कार्यपालिका के आला पदों पर परिवारवाद जम कर हावी है। विधायिका में नरेन्द्र मोदी, कल्याण सिंह, उमा भारती, मायावती, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, येदुरप्पा, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव जैसे कुछ सामान्य लोगों की घुस पैठ हो गयी है जो देश की अभिजात्य शक्तियों को पच नही रही है और यही कारण है कि मोदी जैसे राजनेताओं को अपने परोये सभी का विरोध झेलना पडता है। अगर ऐसा नहीं है तो खुद गुजरात में कांग्रेस के शासनकाल में 10 से अधिक मुठभेड हुए उस पर प्रश्न क्यों नहीं खडा किया जाता है? कांग्रेस के नेता शंकर सिंह बाघेला के मुख्यमंत्रित्वकाल में लतीफ को मार गिराया गया था उस पर कांग्रेस या साम्यवादी दल क्यों नहीं बोलते? कुछ नहीं नरेन्द्र मोदी प्रतिपक्षी के अन्य किसी आघात से नहीं घबराते और चट्टान की तरह खडे हैं। साथ ही वे अभिजात्य गोष्ठि के सदस्य नहीं हैं क्यों कि मोदी अत्यंत पिछडी जाति से आते हैं। इस बात को न तो अभिजात्य मीडिया पचा पर रही है और न ही सत्ता पर हावी प्रभुता सम्पन्न लोग। यही कारण है कि मोदी हर समय सभी के टारगेट में रहते हैं। अब देखना यह है कि मोदी विरोधी गिरोह मोदी को पछाडता है या तमाम बाधाओं को पार कर मोदी राष्ट्रीय नेतृत्व की कमान झटक लेते हैं।

-गौतम चौधरी

2 COMMENTS

  1. इस तरह की पत्रकारिता जहाँ कुछ “पत्रकारों” (???) को अपना करियर बनाने का सुनहरा अवसर प्रदान करती है वहीँ तथाकथित समाजसेवकों और मानवाधिकारवादियों (???) को अपने चेहरे चमकाने और विदेशी पुरस्कार पाने का अवसर भी देती है. विदेशी चंदे और चर्च की शह पर भारत और भारतीय संस्कृति, धर्म और अस्मिता को मिटाने पर तुले यूरोपीय गठबंधन के यह कुछ ऐसे प्यादे हैं जो आधुनिक जयचंदों से ज्यादा कुछ नहीं.

  2. इस्लामी आतंकवाद का विस्तार भारतीय मीडिया और प्रतिपक्षी राजनीति के नमारात्मक प्रयास का प्रतिफल है।
    बात में दम है….

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