बेमौसम हुए बरसात और ओलावृष्टि से किसानों के फसल बर्बाद हो गए है.किसानों की हालत दिन-ब- दिन दयनीय होती जा रही है.इसपर सक्रियता दिखाते हुए केंद्र सरकार ने एक बड़ी घोषणा की है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बताया कि अब फसलों का नुकसान होने पर किसानो को ढेढ़ गुना मुआवजा दिया जायेगा,तो वहीँ किसानो के लिए राहत की खबर ये भी है कि पहले 50 फीसद फसल बर्बाद होने पर मुआवजा दिया जाता था लेकिन, अब 33 फीसद भी अगर फसल की बर्बादी हुई है तो सरकार उन किसानों को भी मुआवजा देगी.अभी हालहि में हुए ओलावृष्टि से कई राज्य के किसानों आत्महत्या जैसा कड़ा फैसला लेने को मजबूर हो गए.जहाँ पहले देश में किसानो की आत्महत्या की खबरें महाराष्ट्र के विदर्भ और आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र से आती थी.
परन्तु अब हरित क्रांति की सफलता में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश,राजस्थान ,पंजाब, हरियाणा मध्यप्रदेश से भी किसानों ने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाया है.अकेले उत्तर प्रदेश में 37,राजस्थान में 55,महाराष्ट्र में 32 तो वहीँ मध्यप्रदेश ने 17 किसानों ने अपनी जान गवाई है.इस साल कितने किसानो ने आत्महत्या की है.अभी इसका ब्यौरा नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने जारी नहीं किया है. लेकिन अगर हम पिछले रिकॉर्ड को देखें तो हमारे देश में अन्नदाताओं की हालत का पता चलता है.31 मार्च 2013 तक के आकड़े बताते है कि 1995 से अब तक 2,96 438 किसानों ने कृषि में हुए नुकसान तथा उनपर लदे क़र्ज़ से उबर नहीं पाने के कारण ये घातक कदम उठाने को मजबूर हो गये.
विगत एक साल से फसलों की कीमतों में गिरावट आई है जिसके परिणामस्वरुप किसानों की आय कम हुई है.चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने किसानों को लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा दिलाने की बात कहीं जो अब तक अमल नहीं कर पाए. अब ये एक और बात मन में आता है कि कहीं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह इसे भी जुमला न करार दे दे. बहरहाल, विगत महीने किसानों से बात करते हुए मोदी ने एक किसान की हर पीड़ा का जिक्र किया. जो एक किसान को झेलनी पड़ती है ,मोदी ने सरकार की सक्रियता को भी सराहते हुए बताया कि हमारे मंत्री हर राज्य तथा जिलों में जाकर किसानों की बदहाली को देख रहे है और हर सम्भव मदद के लिए भरोसा दिला रहें है .कृषि प्रधान देश में कृषि और किसान कितने मुश्किलों से गुज़र रहा है.किसानों की बदहाली का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 18 वर्षो में लगभग तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं फिर भी सरकार मौन रहती हैं,जो अन्नदाता दुसरो के पेट को भरता है आज उसी अन्नदाता की सुध लेने वाला कोई नहीं,किसान उर्वरक के बढने दामों से परेसान है तो, कभी नहर में पानी न आने से परेसान है और अब तो मौसम भी किसानों पर बेरहम हो गई, बेमौसम बरसात ने किसानों को तबाह कर दिया.
आखिर गरीब किसान किस पर भरोसा करे. सरकार किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए ऋण माफी,बिजली बिल माफी समेत कई राहत पैकेज आदि तो देती रहती है,ये उपाय किसानों को फौरी राहत तो दे देती है न कि उनकी समस्याओं का स्थानीय समाधान. भारत वह देश है जहाँ की दो-तिहाई आबादी विशुद्ध रूप से खेती पर निर्भर है.आज़ादी के इतने सालों के बाद भी किसान अपनी किस्मत सहारे अपनी जिन्दगी जीने को मजबूर है.समय से वर्षा नहीं हुई तो फसल चौपट होने का डर तथा बेमौसम बरसात का डर आज भी किसानों को सोने नहीं देता.देश में कितने बांध और नहरें क्यों ना बन गई हों लेकिन तीन-चौथाई किसान आज भी इंद्र देवता की मेहरबानी को ही अपना नसीब मानते है.प्रधानमंत्री को यह एहसास भी होना चाहिए की इनके द्वारा चलाई गई योंजना भी किसानों तक ठीक से नहीं पहुँच रही.सरकार की योजनाएं ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीब किसान,मजदूर को केवल सुनाई देती है उनतक पहुँचती नहीं..प्रधानमंत्री मोदी अपनी सरकार को हर सरकार से अलग रखते है अब ये देखने वाली बात होगी की मोदी योजनाओं के सही क्रियान्वयन के लिए क्या करते है.
गौरतलब है कि अगर सरकार मुआवजा की घोषणा कर देती है तो मुआवजा किसानों तक पहुँचते –पहुँचते काफी लम्बा वक्त गुज़र जाता है और किसान सरकारी दफ्तरों से चक्कर काट-काट के थक जाता है और हार मान लेता है.सरकार भले ही जनधन योजना के जरिये 13 करोड़ से अधिक खाते खोल दिए हो,पर किसानो के लिए वही पुरानी लंबी और लचर व्यवथा ही जारी है.क्या मोदी कुछ ऐसा बड़ा फैसला लेंगे जिससे किसान आत्महत्या जैसा कदम न उठाये.क्या मोदी कुछ ऐसा करेंगे जिससे किसानों तक सीधे सरकार द्वारा दिया गया मुआवजा या योजना का लाभ उन तक आसानी से पहुँच सके.मोदी हर रोज़ एक- एक कानून खत्म करने की बात तो करते अच्छा होगा की मोदी कानून के साथ कृषि के क्षेत्र में जो किसानों की जटिलता है उसे खत्म करे.राजनेताओं के लम्बे –चौड़े वादे सुन –सुन कर किसान त्रस्त आ चुंके है.हर एक राजनीतिक दल सत्ता को पाने के लिए किसानों की हित में बात करता है और चुनाव जीतने के बाद भूल जाता है. मोदी ने भी किसानों के लिए बड़े –बड़े वादें किये है,इस सरकार से किसानों को बहुत उम्मीदें है.अब वो वक्त आ गया है कि मोदी किसानों की उम्मीदों पर खरा उतरे.
–आदर्श तिवारी
क्या चेतन भगत का यह आलेख https://blogs.timesofindia.indiatimes.com/The-underage-optimist/lets-bake-in-india-first-open-up-the-agriculture-sector-to-help-our-farmers-and-our-economy/मोदी जी के मेक इन इंडिया का समुचित उत्तर नहीं है?यद्यपि मैं लेखक के विचारों से पूर्ण सहमत नहीं हूँ,तथापि इसे मैं भारत के लिए एक वेहतर विकल्प मानता हूँ.
मैं यह जोड़ना चाहता हूँ कि मेरी १४ अप्रैल की टिप्पणी का पहला प्रश्न अब भी अनुत्तरित है,अतः उस प्रश्न को मैं फिर दुहराता हूँ.
१.आपने लिखा है,”चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने किसानों को लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा दिलाने की बात कहीं जो अब तक अमल नहीं कर पाए”.आखिर क्यों?
क्या यह भी एक चुनावी जुमला था?
नरेंद्र सिंह जी,आपका बहुत शुक्र गुजार हूँ कि आपने मेरी नादानियों को माफ़ कर दिया.यह महान लोगों की ख़ास खूबियां होती है और ऐसा करके आपने अपने को महान सिद्ध किया.
दूसरी बात आती है मेरे जैसे लोगों का नेता बनने की तो मैं यह कहना चाहूंगा किअरविन्द केजरीवाल की उम्र मेरे बच्चों की उम्र के बराबर है,अतः आप जब यह कहते हैं कि मेरी नजर में इससे पहले कोई नेता था ही नहीं ,तो इससे यह भी सिद्ध होता है कि अरविन्द केजरीवाल में अवश्य कुछ ख़ास है,जिसके चलते मुझे इस उम्र में उसे नेता मानना पड़ा.
बात आगे बढ़ती है,तो मुआवजे की बात आती है.अगर छोटे राज्य का किसान आपदा का शिकार हो तो उसे ज्यादा मुआवजा दिया जा सकता है,पर बड़े राज्यों के किसानों को नहीं,यह तर्क मेरे समझ से बाहर है.
आपने यह लिखा है कि गुजरात में किसान जमीन बेच कर बहुत खुश हैं और अपना कारोबार करते हैं.अब मेरा प्रश्न,उनको खाने की सामग्री कहाँ से मिलती है?
आपने लिखा है कि धन का उपयोग यथार्थ नहीं किया जाए तो क्या होता है?आप ही बता दीजिये.
केजरीवाल को आगे पीछे सोचने का नहीं इसलिए लूटा रहा है,तो इसमें मैं क्या कह सकता हूँ.यह समस्या तो केजरीवाल का है,वे जाने.
अनुज अग्रवाल जी ने एक प्रश्न किया है कि क्या २०००० का मुआवजा सही है? क्यों सही नहीं है?
फिर क्या अखिलेश यादव का मुआवजा सही है?
आर सिंहजी ,
आपका अरविन्द प्रेम अनुपम है ! इसको नेता मानने के लिए उम्र मापदंड नहीं है क्योंकि राजा को पसंद आयी वो रानी ऐसा हुआ है आपके साथ ?
दूसरी बात आप पुरानी बाटे याद करते हो तो अरविन्द को उसकी बाटे याद करवाओ आर सिंहजी !!!
आप जैसे आलोचकोको पुराने समय में शायद चार्वाक कहते होंगे ?
आपका को क्या हो गया है सरजी आप कैसा सवाल करते है —-क्या अपना कारोबार करनेवाले लोगो को खानेकी सामग्री कहासे मिलती है वो
पता भी नहीं होता है ये कहके आपने तो सरे निजी कारोबार करनेवालोंको बुध्धू बोल दिया ???
अब आपने साबित कर दिया की अरविन्द आपका पसंदीदा नेता क्यों है ?
कुछ प्रश्न मेरे भी | दिल्ली में कुल कितने किसान हैं ? खेती कहाँ कहाँ होती है दिल्ली में ? क्या केजरीवाल जी का 20 हजार प्रति एकड़ का मुआवजा सही है ? यदि हाँ तो क्या ये उप्र जैसे बड़े राज्यों में दिया जा सकता है ? या ये सिर्फ लाइमलाइट में आने की केजरी सर की दूसरी घिनौनी चाल मात्र है ?
१.आपने लिखा है,”चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने किसानों को लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा दिलाने की बात कहीं जो अब तक अमल नहीं कर पाए”.आखिर क्यों?
२.. आपने लिखा है,”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बताया कि अब फसलों का नुकसान होने पर किसानो को ढेढ़ गुना मुआवजा दिया जायेगा”प्रधान मंत्री द्वारा घोषित यह मुवावजा किसका डेढ़ गुना है?अखिलेश यादव के फैजावाद वाले मुवावजे का या अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली वाले मुवावजे का?
३.आपने यह भी प्रश्न उठाया है कि मुवावजे की राशि किसानों के पास पहुंचती है या नहीं?यह कैसे पता चलेगा?
४.डाक्टर मधुसूदन ने पूछा है,”जब इतनी आत्महत्त्याएँ हो रही हैं, तो फिर भूमि अधिग्रहण का विरोध क्यों हो रहा है?” तो क्या भूमि अधिग्रहण क़ानून से इसका समाधान हो जाएगा?
५. माननीय डाक्टर साहिब ने दो अन्य प्रश्न पूछे हैं.दूसरे का तो कोई ख़ास महत्त्व नहीं ,पर तीसरा प्रश्न बहुत महत्त्व पूर्ण है. ऐसे तो मेरे ज्ञानानुसार तीसरे प्रश्न के आखिर में व्याकरण की एक भूल भी है.” क्या करना चाहिए मोदी ने? की जगह “क्या करना चाहिए मोदी को ?” होना चाहिए,पर यह बहुत महत्व नहीं रखता.अब मैं उम्मीद करता हूँ कि आदर्श तिवारी जी डाक्टर साहिब के तीसरे प्रश्न का समुचित उत्तर देंगे.
आर सिंहजी ,
नमस्कार ,,,,,,आपके दूसरे नम्बर का मुद्दा पढ़के ऐसा लगता है की जिसे राज्य और देश -सीएम और पीएम के बीच का फर्क मालूम न हो उसे माफ़ कर देना चाहिए ?
आप जैसे लोगोका नेता केजरीवाल ही हो सकता है ये आपने साबित कर दिया !!!
आपको मालूम है गुजरात में जमीन बेचके किसान कितने खुश है आज सब अपना कारोबार करते है ?हा केजरीवाल जैसी दानतवाले जरूर रोड पर आ गए है यानि शॉर्टकट वाले ?
आपकी उम्र को देखते हुए आपको मालूम होगा की अगर धन का उपयोग यथार्थ नहीं किया तो क्या होता है !!!
केजरीवाल को आगे पीछेकुछ सोचनेका नहीं है इस लिए लूटा रहा है ये तो समझते होंगे सरजी !!!
तिवारी जी –नमस्कार।
(१) जब इतनी आत्महत्त्याएँ हो रही हैं, तो फिर भूमि अधिग्रहण का विरोध क्यों हो रहा है?
(२) या ऐसा विरोध अधिकाधिक भाव प्राप्त करनेका अप्रत्यक्ष प्रयास है?
(३) आपने कोई स्पष्ट व्यावहारिक सुझाव भी तो दिया नहीं– क्या करना चाहिए मोदी ने?