मीडिया का मदारीपन

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asharamअरविंद जयतिलक

नि:संदेह रुप से संत आसाराम दोषी हैं तो उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दी है। एक सच्चे लोकतंत्र में कोर्इ भी व्यकित वह चाहे जितना भी ताकतवर हो, वह कानून से बड़ा नहीं हो सकता। उसे हर हाल में कानून का पालन करना ही होगा। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि दोष सिद्ध होने से पहले ही किसी आरोपी को अपराधी मान उसके चरित्र की इस कदर हत्या कर दी जाए कि वह दोषमुकित के बाद भी समाज में सिर उठाकर जी न सके। जब तक अदालत का अंतिम फैसला नहीं आ जाता है तब तक  आरोपी को अपराधी मानने की इजाजत न तो कानून देता है और न ही समाज। और यह नैसर्गिक न्याय के अनुकूल भी है। लेकिन त्रासदी है कि संत आसाराम के मामले में उल्टा हो रहा है। आसाराम पर आरोप है कि उन्होंने अपने ही आश्रम के एक नाबालिक बच्ची के साथ यौन शोषण किया। पुलिस का कहना है कि उनके खिलाफ ढेर सारे साक्ष्य मौजूद हैं। दूसरी ओर आसाराम इसे अपने खिलाफ एक साजिश बता रहे है। सच क्या है यह किसी को पता नहीं। बावजूद इसके आसाराम के वैचारिक विरोधियों द्वारा उनके खिलाफ न केवल विषवमन किया रहा है बलिक एक हद तक फैसला भी सुना दिया गया है कि वे अपराधी हैं। हालांकि आरोपी को अपराधी मान लेने की रवायत नर्इ नहीं है। विशेषकर हिंदू संतों के संदर्भ में। आसाराम से पहले भी कर्इ हिंदू संतों पर चरित्र हनन के आरोप लग चुके हैं। लेकिन आसाराम के मामले में मीडिया विशेष रुप से इलेक्ट्रानिक मीडिया जिस तरह अपनी जवाबदेही और उत्तरदायित्व के साथ खिलवाड़ की है वह अपने आप में हैरान करने वाला है। जिस दिन से संत आसाराम पर आरोप लगा है उसी दिन से वह उन्हें एक ऐसे विशालकाय दैत्य के रुप में पेश कर रहा है मानों उन्हें शीध्र ही गिरफ्तार नहीं किया गया होता तो अनर्थ हो जाता। इससे किसी को आपत्ति नहीं होगी कि ऐसे संगीन आरोप के बाद आसाराम को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। चूंकि कानून की एक प्रक्रिया है और उसका पालन होना ही चाहिए। कानून ने अपना काम किया भी है। उचित होता कि आसाराम जोधपुर पुलिस द्वारा समन थमाए जाने के बाद ही पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिए होते। इससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती और उनके विरोधियों को उन पर अनावश्यक वार करने का मौका नहीं मिलता। समाज के बीच यह भी संदेश नहीं जाता कि वे बचने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन वे ऐसा करने के बजाए अपने भावी कार्यक्रमों का हवाला देकर पुलिस से कुछ दिनों की मोहलत की दरकार की। अपनी नजर में उनकी यह मांग जायज हो सकती है। चूंकि वे कथावाचक हैं इस नाते संभव है कि उनके पहले से कार्यक्रम तय हो। या यह भी संभव है कि वे गिरफ्तारी से बचने के लिए इस तरह का बहाना बनाए हों। लेकिन जिस तरह खबरिया चैनलों ने उनके खिलाफ कुप्रचार किया कि वे अपने को कानून से उपर समझ रहे हैं या सत्ता-सल्तनत ने उनके हेंकड़ी के आगे घुटने टेक रखा है इससे देश-समाज में कोर्इ अच्छा संदेश नहीं गया। हां, आसाराम भले ही गुनाहगार हों या न हों, मीडिया ने उनके खिलाफ माहौल जरुर निर्मित कर दिया। ज्यों ही आसाराम इंदौर की ओर रुख किए खबरिया चैनलों ने ऐसा हाहाकार मचाना षुरु किया मानो वे देश छोड़कर भाग रहे हों। ऐसे में सरकार के माथे पर शिकन आना और पुलिस की सक्रियता बढ़ना लाजिमी था। जोधपुर पुलिस को उनके ही आश्रम में उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। यह जरुरी भी था। लेकिन सवाल यहां यह है कि मीडिया संस्थानों द्वारा जिस तरह उनकी गिरफ्तारी से पहले और बाद में उनकी छवि खलनायकों जैसी बनायी जा रही है क्या यह उचित है?  जब अदालत का फैसला आना अभी बाकी है तो उन्हें गुनाहगार मान लेना कहां तक उचित है। पर दुर्भाग्य है कि खबरिया चैनलों पर ऐसे-ऐसे बुद्धिजीवियों और रहस्यज्ञानियों का प्रकटीकरण हो रहा है मानो वे आसाराम के सात जन्मों की कथा से सुपरिचित हों। आसुमल से आसाराम तक की पटकथा खूब चटकारे से पेश की जा रही है। उनके बचपन के ऐसे साथी भी अवतरित होने लगे हैं जो उन्हें चोर-डाकू से लेकर हत्यारा तक बता रहे हैं। यह बेहद खतरनाक है। इसलिए कि ये उनके राजदार हैं भी या नहीं इसे कौन प्रमाणित कर सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसे लोगों को जानबुझकर मीडिया चैनलों पर उतारा जा रहा है? अगर ऐसा हो रहा है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सवाल यह कि जब आसाराम के खिलाफ अभी अपराध की पुष्टि नहीं हुर्इ है इससे पहले ही उन्हें जनता और उनके भक्तों की नजरों में गिराना आखिर कहां तक न्यायसंगत है? बेहद बेशर्मी से चैनलों पर मांग की जा रही है कि आसाराम को तत्काल फांसी पर चढ़ा देना चाहिए। उन्हें सरेआम शूट कर देना चाहिए। वे संत नहीं शैतान हैं। भू-माफिया हैं। अल्प समय में हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर लिए हैं। हो सकता है कि इसमें सच्चार्इ हो। लेकिन सवाल यह कि अगर वे भू-माफिया हैं या गलत तरीके से धन इकठठा किए हैं तो अभी तक उनके खिलाफ कार्रवार्इ क्यों नहीं हुर्इ? सरकार हाथ पर हाथ धरी क्यों बैठी रही? मीडिया इसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठायी? अगर उनके खिलाफ कार्रवार्इ नहीं हुर्इ तो क्यों न माना जाए कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया? ऐसे में खबरिया चैनलों का धर्म यह था कि वे सच का परीक्षण किए बिना उनके खिलाफ दुष्प्रचारियों को अपना मंच उपलब्ध नहीं कराते। लेकिन उन्होंने ऐसा न कर न केवल अपनी विश्वसनीयता पर दांव पर लगायी है बलिक दुनिया को भी भ्रमित करने का काम किया है। देश-दुनिया में संत आसाराम के करोड़ों भक्त हैं। मीडिया के इस प्रहसन से उन्हें ठेस पहुंची है। मीडिया की अतिसक्रियता और राजनीतिकों के बखेड़ा से एक साथ कर्इ सवाल सतह पर उभरने भी लगे हैं। लोगों को दाल में कुछ काला दिखने लगा है। बहुतेरे अभी भी मानने को तैयार नहीं हैं कि आसाराम ने ऐसा दुष्कृत्य किया होगा। फिलहाल सच क्या है यह कोर्इ नहीं जानता। लेकिन मीडिया ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए जिस तरह अपने की ऐसी-तैसी की है वह आसाराम के धार्मिक धंधेबाजी से कम खतरनाक नहीं है। उससे भी बड़ी त्रासदी यह कि खबरिया चैनलों के कुछ एंकर न्यायाधीश की भूमिका में हुंआ-हुआं करते देखे गए। ऐसे एंकरों पर दया आती है। कर्इ एंकरों ने तो भाषा की मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखा। एंकर के बजाए वे आसाराम विरोधी गुट के सदस्य नजर आए। जबकि वे अच्छी तरह अवगत रहे कि आसाराम के खिलाफ लगे आरोप की पुष्टि नहीं हुर्इ है। बावजूद इसके वे अपना धैर्य खोते नजर क्यों आए यह समझ से परे है। सवाल यह है कि अगर आसाराम की जगह कठघरे में किसी अन्य धर्म का पाखंडी होता तब भी मीडिया का उतावलापन इसी तरह दिखता? जब संसद में सदस्यों द्वारा वंदेमातरम बोलने से परहेज किया जाता है तो मीडिया तूफान खड़ा क्यों नहीं करता है? जब विध्वंसक सियासतदानों द्वारा भटकल की गिरफ्तारी पर छाती धुना जाता है और अनर्गल सवाल खड़ा किए जाते हैं तो मीडिया हाहाकार क्यों नहीं करता? आसाराम जैसे बहुतेरे संसद सदस्य सदन की शोभा बढ़ा रहे हैं जिनपर हत्या, बलात्कार और भ्रष्टाचार के संगीन मामले दर्ज हैं। लेकिन मीडिया की सक्रियता नहीं दिखती है। आखिर क्यों? मीडिया को समझना होगा कि वह जनमत निर्माण का एक सशक्त माध्यम है। उसका काम सच को सामने रखना है। लोगों को जागरुक बनाना है। आमजन पर मीडिया का तात्कालिक प्रभाव पड़ता है। उसके एक-एक शब्द को सच मानता है। लेकिन आसाराम मामले में मीडिया का मदारीपन उसकी विश्वसनीयता को हिलाकर रख दिया है। सवाल यह कि अगर कहीं संत आसाराम दोषमुक्त हुए तो फिर टीआरपी वाला मीडिया देश-समाज को क्या जवाब देगा?

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