भारत के मार्टिन लूथर हैं फ्रांसिस

Book Release pic.1   डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत का सांस्कृतिक पुर्नजागरण अधूरा ही रह गया। स्वाधीनता आने पर राजनीतिक जागृति तो फैल गई लेकिन भारतीय समाज के कई महत्वपूर्ण हिस्से सोते ही रह गए। हिंदुओं को जगाने का काम महर्षि दयानंद, राजाराम मोहन राय, वीर सावरकर, भीमराव आंबेडकर, ज्योतिबा फूले और राम मनोहर लोहिया जैसे महापुरुषों ने किया जरुर लेकिन वह भी अधूरा ही रह गया। और जहां तक मुस्लिम, ईसाई और अन्य धर्मों का प्रश्न है, उनमें तो कोई जबरदस्त सुधारवादी धारा बही ही नहीं।

दूसरे मजहब जब से शुरु हुए हैं तब के काल की बेड़ियों में ही बंधे हुए हैं। उनकी बेड़ियां तोड़ने वाले क्रांतिकारी विचारक और नेता कहीं दिखाई नहीं पड़ते। ऐसी जड़ता के माहौल में फ्रांसिस रामलुभाया (आर एल फ्रांसिस) जैसे लोग मुझे भारतीय ईसाईयों में मार्टिन लूथर की तरह दिखाई पड़ते हैं। जैसे मार्टिन लूथर ने पोप के गुरुडम को यूरोप में खुली चुनौती दी थी लगभग वैसे ही आज भारत में ईसाई धर्म के पाखंडों को फ्रांसिसजी चुनौती दे रहे हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘भंवर में दलित ईसाई’ का विमोचन कल पूर्व राजदूत जे सी शर्मा और मैंने किया। यह पुस्तक अपने आप में क्रांति का शंखनाद है। श्री फांसिस रामलुभाया स्वयं दलित ईसाई हैं और पुअर क्रिश्चियनस लिबरेशन मूवमेंट के नेता हैं। उन्होंने दलित ईसाईयों की दुर्दशा पर उनके अनेक लेखों का इस पुस्तक में संकलन किया है।

उन्होंने बताया है कि ईसाई बनने के बावजूद एक दलित, दलित ही रहता है। ऊंची जातियों के और पढ़े-लिखे ईसाई इन दलितों से पूरी तरहें छुआछूत करते हैं। भारत के 160 बिशपों में से सिर्फ चार दलित हैं। ईसाईयों के मंहगे अंग्रेजी स्कूलों में इन दलित ईसाई बच्चों को कोई प्रवेश नहीं मिलता है। इसी प्रकार पादरियों और ननों के बीच दलितों की संख्या नगण्य हैं। हजारों बरस से चली आ रही उनकी दुर्दशा ज्यों की त्यों है।

विदेशों से आने वाली 10 हजार करोड़ रुपए की वार्षिक मदद में से दलित ईसाईयों पर दो-तीन प्रतिशत भी खर्च नहीं होता है। उन्हें अंधविश्वासों और पाखंडों में फंसाए रखा जाता है। फ्रांसिसजी ने इस पुस्तक में अनेक क्रांतिकारी मांगे उठाई हैं। जैसे कि उन्होंने कहा कि शवों को दफन करने की बजाए जलाया जाना चाहिए। बिशपों की नियुक्ति रोम से होने की बजाय लोकतांत्रिक चुनावों से होनी चाहिए।

ईसाईयों को गोमांस-भक्षण से परहेज करना चाहिए। प्रलोभन और भय से होने वाले धर्म-परिवर्तन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। उन्होंने पादरियों की चरित्रहीनता और स्त्रीयों पर किए जा रहे अत्याचारों की जमकर पोल खोली है। उन्होंने ईसायत के पूर्ण भारतीयकरण की मांग की है। उन्होंने ईसाई दलितों को सरकार द्वारा आरक्षण देने का विरोध किया है। वे मानते हैं कि दलितों को अगर आरक्षण ही देना है तो उन्हें ईसाई समाज में पूरा न्याय मिलना चाहिए। उनकी इन क्रांतिकारी मांगों को लेकर अनेक छोटे-मोटे आंदोलन हो चुके हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन से ईसाई समाज में अब नई जागृति फैलेगी।

1 COMMENT

  1. श्री वैदिक का लेख बहुत सामयिक है.श्री फ्रांसिस ने जो विषय उठाये हैं वो भारत के सन्दर्भ में प्रासंगिक हैं.लेकिन इस समय पूरे विश्व में ईसाई जगत में भारी मंथन चल रहा है और नए पोप से इस बात के आवेदन किये जा रहे हैं कि ईसाई पादरियों और धर्मगुरुओं द्वारा यौन शोषण और बाल यौन शोषण को रोकें.इसके लिए इंटरनेट पर याचिका पोस्ट करके उनपर लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए समूचे विश्व में अभियान चलाया जा रहा है. यूरोप और अमरीका में अनेकों चर्च बेचे जा रहे हैं और अनेकों स्थानों पर स्थानीय हिन्दू उन्हें खरीद कर मंदिरों में परिवर्तित कर रहे हैं.मैं श्री फ्रांसिस जी को सुझाव देना चाहूँगा कि जर्मनी के धार्मिक विषयों के विद्वान् होल्गर कर्स्टन की लगभग दस वर्षों के शोध के पश्चात् लिखी पुस्तक “जीसस लिव्ड इन इण्डिया:बिफोर एंड आफ्टर क्रुसिफिक्सन” और श्री राजीव मल्होत्रा और अरविन्दन नीलकंदन द्वारा पांच वर्ष कि शोध के बाद लिखी पुस्तक “ब्रेकिंग इण्डिया” पढने का कष्ट करें तो ईसाई जगत के बहुत से रहस्य और बहुत से षड्यंत्रों का पता चल सकेगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress