एक युगान्तरकारी प्रकाशन (Encyclopedia of Hinduism)

लालकृष्ण आडवाणी

श्री आर. के. मेहरा, उनके सुपुत्र कपिश मेहरा और रुपा पब्लिकेशनस् द्वारा 11 खण्डों के ‘इनसायक्लोपीडिया ऑफ हिंदुज्म‘ का प्रकाशन करने पर हार्दिक अभिनन्दन, जिसे ‘हिन्दुस्तान टाइम्स‘ में समीक्षक इंद्रजीत हाजरा ने ‘विचारों के इतिहास और उसकी गहराई में रुचि रखने वालों के लिए यह आश्चर्यों से भरा खजाना है‘ के रुप में वर्णित किया है। 

हाजरा ने आर.के. मेहरा द्वारा उन्हें बताए गए इस कथन को उद्वृत किया है कि वह इनसाक्लोपीडिया को ”अपने कैरियर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रकाशन” मानते हैं। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स‘ ने इस समीक्षा को इस प्रमुख शीर्षक के साथ प्रकाशित किया है: ‘हिन्दुज्म एक बौध्दिक पद्वति है, रिलीजन नहीं‘ (Hinduism is an Intellectual System, not a Religion). 

उपरोक्त शीर्षक इन खण्डों को सम्पादित संग्रहित और सभी की प्रूफ रीडिंग करने वाले डा. कपिल कपूर की टिप्पणियों में से लिया गया है। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा. कपूर इसके मुख्य सम्पादक हैं। 

जे.एन.यू के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर और विश्वविद्यालय में तुलनात्मक भाषा विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर ने कहा है: ”हिन्दुज्म में कोई धार्मिक मूलग्रंथ नहीं है। इसे गहराई और व्यापकता से व्याख्यायित किया गया है।” 

इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुज्म की प्रेरणा 1987 में अमेरिका के पिट्टसबर्ग, पेन्नसिलवनिया के हिन्दु-जैन मंदिर में सम्पन्न सहस्त्र शिवलिंग अभिषेक से मिली। परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश (उत्तराखण्ड) के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती सहित अनेक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक विद्वानों ने इसमें भाग लिया। 

इस विचार को अधिकारिक, समग्र और इनसायक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुज्म को अद्यतन बनाने के उद्देश्य से 21 नवम्बर, 1987 को स्वामी चिदानन्द की अध्यक्षता में ‘इण्डिया हरिटेज रिसर्च फाउण्डेशन‘ की स्थापना की गई। साध्वी भगवती सरस्वती को इसका सचिव बनाया गया। स्वामीजी ने इनसायक्लोपीडिया के मुख्य संपादक के रूप में वर्जीनिया विश्वविद्यालय के प्रसिध्द एवं सम्मानित प्रोफेसर डा. शेषगिरी राव को चुना। 

1987 से 1992 के बीच में स्वामीजी और डा. राव ने दुनिया भर में हिन्दुज्म और भारतीय प्राच्य शिक्षा के प्रमुख विद्वानों से विचार-विमर्श किया। सैकड़ों विद्वानों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम गठित की गई। मुख्य संपादक डा. के.एल. शेषगिरी राव और एडिटर-इन-चीफ भारत के डा. विद्या निवास मिश्र द्वारा 1989 में सम्पादकों और सहयोगी सम्पादकों का प्रारम्भिक बोर्ड गठित किया गया। विभिन्न चरणों में आवश्यकतानुसार क्षेत्रीय निदेशक भी इस टीम में जोड़े गए। अमेरिका और कनाडा से चार कार्यकारी सम्पादकों-डा. सुभाष काक, डा. वी.वी. रमन, डा. रामा राव पप्पू और डा. टी.एस. रुकमणी ने पुनर्समीक्षा, सम्पादन और जहां आवश्यकता पड़ी वहां पुन: लिखने का काम किया। 

इनसायक्लोपीडिया की तरफ से आई.एच.आर.एफ. द्वारा 1998 में न्यूयार्क में आयोजित एक कार्यक्रम को सम्माननीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सुशोभित किया। श्री वाजपेयी ने इस कार्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहा कहा,”आपके उपक्रम को सही ही संज्ञा दी गई है: ‘तीसरी सहस्त्राब्दी की परियोजना‘। यह दुसाध्य कार्य है। वस्तुत: यह एक ज्ञान यज्ञ है। अत: वे सभी जिन्होंने इस यज्ञ की सफलता के लिए अपना समय, प्रतिभा और विद्वता आहूति के रुप में समर्पित की है, वे हमारी हार्दिक प्रशंसा और अभिनन्दन के पात्र हैं।” 

सन् 2006 की शुरुआत में ही, अंग्रेजी के प्रोफेसर और संस्कृत के प्रोफेसर डा. कपिल कपूर जो उसी समय जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से रेक्टर के पद से निवृत हुए थे, ने इसे मुख्य सम्पादक के रुप में संभाला। 

पहले खण्ड की प्रस्तावना के रुप में लिखे गए डा. कर्ण सिंह के चवालीस पृष्ठीय विद्वतापूर्ण पृष्ठों का शुरुआती पैरा निम्न है: 

”हिन्दुइज्म के नाम से जाना जाने वाला रिलीजन निश्चित रुप से दुनिया के महान रिलीजनों में से प्राचीनतम और सर्वाधिक व्यापक है। ‘हिन्दुइज्म‘ शब्द अपने आप में एक भौगोलिक संदर्भ है जो भारत के उत्तरी सीमान्त से बहने वाली महान सिंधु नदी के संस्कृत नाम पर आधारित है। इस नदी के दूसरी तरफ रहने वाले लोगों के लिए, सिंधु का दक्षिण-पूर्वी समूचा भाग, जिसे ग्रीक इण्डस कहते हैं, हिन्दुओं की भूमि के रुप में जाना जाता है और यहां फले-फूले अन्य पंथो ने हिन्दुइज्म नाम अंगीकृत किया। वास्तव में, हिन्दुइज्म अपने को सनातन धर्म, शाश्वत धर्म, कहता है, क्योंकि यह किसी एक मात्र धर्मगुरू के उपदेशों पर आधारित नहीं है अपितु भारतीय सभ्यता के आदि काल से ही अनेक संतों और ऋषियों की सामूहिक विद्वता और प्रेरणा पर आधारित है।” 

डा. कर्ण सिंह की निष्कर्ष रुप टिप्पणी इस प्रकार है: 

”व्यापक ग्यारह खण्डों वाले इनसायक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुइज्म का बहुप्रतीक्षित प्रकाशन एक मुख्य प्रकाशन है। अनेक वर्षों की विद्वता, संगठन और समर्पण इसको तैयार करने में लगा जोकि हिन्दु अनुसंधान का महत्वपूर्ण मील का पथ्थर बना है। यद्यपि हिन्दुइज्म के विभिन्न पक्षों और ग्रंथों पर अनेक उत्कृष्ट पुस्तकें होगीं, और व्यापक प्रस्तुति के भी कुछ प्रयास हुए होंगे, मगर इनसायक्लोपीडिया के स्तर का कोई प्रयास अभी तक नहीं हुआ है। निश्चित रुप से दुनिया भर में यह पुस्तकालयों और विश्वद्यिलयों के लिए आवश्यक संग्रहणीय होगा ही अपितु उन हिन्दुंओं के लिए भी संग्रहणीय होगा जो इस पुस्तकों के अद्भुत सेट की संजोकर रखने के शौकीन हैं। 

इस इनसायक्लोपीडिया के कारण सम्पादकों, लेखकों और प्रकाशकों ने महान आध्यत्मिक उत्कृष्टता अर्जित की है। यह मेरी आशा है कि यह न केवल हिन्दुओं में महान हिन्दू धर्म को अच्छी तरह से समझने में सहायक होगा अपितु धर्मों और विभिन्न परस्पर-धार्मिक आंदोलनों का अध्ययन करने में रुचि रखने वालों के लिए भी सहायक सिध्द होगा।”

इंद्रजीत हाजरा ने अपने लेख (हिन्दुस्तान टाइम्स, जनवरी 14, 2012) की शुरुआत रुपा पब्लिकेशन्स गु्रप के चेयरमैन आर.के. मेहरा के साथ ”घर के बने शाकाहारी भोजन की स्वादिष्ट व्यंजनों‘ पर हुई बातचीत से की है। इस प्रोजेक्ट की सफलता के बारे में हाजरा ने अपनी आशंका छुपाई नहीं है जबकि राजन मेहरा ने उन्हें इस तरह के काम में ‘प्रोफेशनलिज्म पर कोई समझौता न करने‘ की बात समझाने की कोशिश की है, जिसके चलते इस महाकार संग्रह का प्रकाशन हो सका। 

अपने को ‘गैर-कर्मकाण्डी हिन्दू नास्तिक‘ मानने वाले हाजरा, लगता है डा. कपिल कपूर से संवाद करने के बाद, अपने आरम्भिक निराशावाद से मुक्त हो गए। डा. कपूर ने उन्हें बताया ”यहां तक कि अधिकांश ब्राह्मण विद्वानों की भी उनके बारे में नहीं पता जिन्हें वह हिन्दू कहते हैं। परमाणु विज्ञान की भांति, वास्तव में हिन्दुइज्म ज्ञान की एक पध्दति है और यह इनसायक्लोपीडिया विद्वानों और विचारों के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न तत्वों की व्याख्या करता है।” 

हाजरा ने अपनी समीक्षा में लिखा है: 

”निस्संदेह, भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन का मजा अलग ही है। इसी प्रकार यह इनसायक्लोपीडिया मेरे जैसे गैर-कर्मकाण्डी हिन्दू नास्तिक के लिए है। इसका फार्मेट सीधा है और इनसायक्लोपीडिया ब्रिटानिका जैसा है। पहले खण्ड ‘अबाधित ज्ञान‘ से दसवें खण्ड में जीरोस्टर (जीरोस्टरइज्म के संस्थापक) तक प्रविष्टियां स्पष्ठ, पृष्ठभूमि और अग्रभूमि बताती हैं तथा संदर्भ सूची अद्वैत और न्यसेपलाटोनइज्म भी सम्मिलित है। 

प्रकाशन शानदार है जैसाकि खण्डों में चित्रों की गुणवत्ता है। ‘धमपद‘ (थेरेवदा बुध्दिइज्म का मुख्य ग्रंथ), ‘चिपको आंदोलन‘ (भारत में वनों का विनाश होने से रोकने के लिए संगठित पर्यावरण आंदोलन) और साथ-साथ ‘सौर मण्डल‘ (सौर प्रणाली) सहित प्रविष्टियां स्पष्ट रुप से यह इनसायक्लोपीडिया हिन्दुइज्म की संकीर्ण मजहबी संदर्भ में व्याख्या नहीं करता।” 

टेलपीस (पश्च्य लेख)

आज के भारत में लोकतंत्रप्रेमियों के लिए 18 जनवरी का दिन कभी न भुलाने वाला है। आज के दिन से भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के अंधकारमय अध्याय के अन्त की शुरुआत हुई थी।

सन् 1977 में आज ही के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1976 में होने वाले चुनावों को कराने का निर्णय किया था जिन्हें आपातकाल के चलते स्थगित कर दिया गया था। मेरी जेल डायरी जो ‘ए प्रिजनर्स स्क्रैप बुक‘ (A Prisoner’s Scrap-book) शीर्षक से प्रकाशित हुई है, में इसे इस तरह दर्ज किया गया है: 

”लगभग 1.30 बजे दोपहर बंगलौर जेल सुपरिटेण्डेंट मेरे कक्ष में आए और कहा कि मेरे गिरफ्तारी आदेश को रद्द करने वाला वायरलेस संदेश नई दिल्ली से प्राप्त हुआ है (मुझे 26 जून, 1975 को यानी 17 महीने पूर्व गिरफ्तार किया गया था)” 

जेल से रिहा होने से कुछ क्षण पूर्व मुझे उन पत्रों का पुलिंदा दिया गया जो मुझे नहीं दिए गए थे। इसमें लगभग 600 पत्र थे जो विदेशों से आए थे। उनमें से अधिकांश क्रिसमस या नव वर्ष बधाई कार्ड्स थे। लेकिन प्रत्येक पर एक या दो पंक्तियां लिखी हुईं थी। 

उसका एक नमूना – हालैण्ड के एम्सटर्डम से किन्हीं लॉरी हेंड्रिक्स का क्रिसमस कार्ड था। उन्होंने लिखा था ”स्वतंत्रता और आशा साथ-साथ नहीं चलते। वे तुम्हारी स्वतंत्रता चुरा सकते हैं लेकिन तुम्हारी आशा नहीं ले सकते।” 

हां, उन्होंने 600 मिलियन लोगों की स्वतंत्रता चुरा ली, लेकिन वे उनकी आशाएं नष्ट नहीं कर पाए! 

मार्च, 1997 में हुए चुनावों में, भारत के लोगों ने अपने मत से लोकतंत्र को पुन: स्थापित किया, जिस पर उन्नीस महीनों से ग्रहण लगा था।

2 COMMENTS

  1. अडवाणी जी, आप भी लेख ही लिखोगे, तो राजनीति कौन करेगा? लिखने के लिए तो और लोग भी हैं। हिन्दू समाज में करने वाले, कुछ करके दिखाने वाले का अभाव है। उतने शानदार लिखने वाले अरुण शौरी की तो इज्जत आपकी पार्टी कर न सकी! अब आप भी लेख ही लिखते हो। तब हिन्दुओं की दुर्गति, उपेक्षा, विखंडन, अपने ही देश में विस्थापित होने जैसी लज्जाजनक वेदना, आदि के लिए कुछ करने का काम कौन करेगा? इंदरजीत हाजरा?

  2. यह वाकई में एक सकारात्मक और कालजयी प्रयास है. इससे न सिर्फ हिन्दू समाज बल्कि भारत वर्ष की विरासत को सही ढंग से समझाने में मदद मिलेगी. स्वामी चिदानंद को नमन. अडवानी जी और इस महाग्रंथ को तैयार करने वाली टीम को अभिनन्दन.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress