– कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
पिछले दिनों कश्मीर में शिया पंथ के लोगों को लेकर इस्लाम पंथ के पैरोकारों में एक मामला तूल पकड़ने लगा था । उस पर चर्चा करने के लिए शिया पंथ और इस्लाम पंथ के मूल विवाद को जान लेना जरुरी है । दरअसल हज़रत मोहम्मद (सल्ल) के पैरोकारों के दो अलग अलग पंथ कर्बला के युद्ध के बाद ही बन गए थे । एक इस्लाम पंथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ,जिसके पैरोकार मुसलमान कहलाए जाने लगे और दूसरा शिया पंथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया । इसे इतिहास का दुर्योग ही कहा जाएगा कि दोेनों हज़रत मोहम्मद साहिब में ईमान हखते हैं लेकिन उसके बावजूद एक दूसरे के सामने आ जाते हैं । शिया पंथ के अनुयायी हज़रत मोहम्मद को तो मानते हैं लेकिन उसके बाद उनका पास्ता मुसलमानों/इस्लाम पंथियों से अलग हो जाता है । इस्लाम पंथ के अनुयायी हज़रत मोहम्मद के देहावसान के बाद के चार ख़लीफ़ाओं यानि अबू बकर, उमर, उस्मान और अली (इन चार ख़लीफ़ाओं को वे राशिदुन ख़लीफ़ा कहते है) के अस्तित्व को स्वीकारते हैं और उसके बाद उत्तराधिकारी की परम्परा को समाप्त मान लेते हैं । लेकिन शिया पंथ के लोग पहले के तीन ख़लीफ़ाओं को मान्यता नहीं देते । वे हज़रत मोहम्मद के बाद हज़रत अली को ही मान्यता देते हैं । चौथे ख़लीफ़ा हज़रत अली , हज़रत मोहम्मद(सल्ल) के दामाद थे । उनकी किसी मुसलमान ने मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए हत्या कर दी थी । इतना ही नहीं उनके बेटे हसन को भी कहा जाता है ज़हर देकर मरवा दिया था । इसके बाद भी बस नहीं , उनके बचे हुए बेटे हुसैन को कर्बला के मैदान में धोखे से बुलाकर परिवार सहित उसकी हत्या कर दी गई थी । इस प्रकार पूरा वंश ही समाप्त कर दिया गया ताकि उत्तराधिकार का पास्ता ही बन्द हो जाए । मुसलमानों के इस अमानुषिक आचरण के विरोध में ,कर्बला में हुए इस नरसंहार के बाद शिया पंथ के नाम से एक नया पंथ शुरू हो गया । अंग्रेज़ी में शिया पंथ का अनुवाद ही ‘अली की पार्टी’ किया जाता है । देखते ही देखते , आज का ईरान और ईराक़ , इस्लाम पंथ को छोड़कर शिया पंथ का अनुयायी हो गया । इस्लाम पंथ को मानने वाले दुनिया के दूसरे देशों में भी बहुत से इस्लाम पंथी बाद में शिया पंथ के अनुयायी हो गए , लेकिन ईरान और ईराक़ को छोड़कर अन्य स्थानों पर वे अल्पमत में ही है ।
इस्लाम पंथ और शिया पंथ के शिष्यों में विवाद की जड़ में कर्बला का वह युद्ध बहुत महत्वपूर्ण पडाव है । शिया पंथ कर्बला की उस घटना को हर साल दुनिया भर में याद करते हैं । उसकी याद में ताजिया निकालते हैं । अली के बेटे हुसैन को जब मुसलमानों ने मारा को उनके कष्ट को अनुभव करने के लिए शिया पंथी अपने शरीर पर कोड़े मारते हुए लहू लुहान हो जाते हैं । इतना ही नहीं , ‘हा हुसैन , हम न हुए’ के नारे लगाते हैं । यानि उन्हें अफ़सोस है कि उस अमानवीय नरसंहार के वक़्त हम कर्बला के मैदान में नहीं थे , यदि हम वहाँ होते तो जरुर न्याय की इस लडाई में अपनी जान दे देते । जाहिर है मुसलमानों को शिया पंथियों का हर साल का यह प्रदर्शन और रुदन चुभता है । कोई भी क़ौम अपने इतिहास के अन्धेरे पक्ष का सामना नहीं करना चाहती । वह यह भी नहीं चाहती की शिया पक्ष बार बार उसका प्रदर्शन करके उसे चिढ़ाए । लेकिन शिया पंथ की तो शुरूआत ही कर्बला के उस मैदान से होती है , अत: वह उसे कैसे भूल सकता है ? यही कारण है कि अनेक स्थानों पर कर्बला युद्ध का वह ऐतिहासिक दिन आज भी शिया पंथियों और मुसलमानों के बीच में एक बार फिर कर्बला का मैदान बन जाता है । दोनों पक्षों में दंगा हो जाता है ,जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान चली जाती है । पाकिस्तान ने तो सारी हदें तोड़ दी हैं । वहां तो शिया इबादतखानों (शिया पंथी भी अपने इबादतखानों रो मस्जिद ही कहते हैं) पर बाक़ायदा बम विस्फोट किए जाते हैं ताकि शिया पंथी किसी स्थान पर एकत्रित न हो सकें ।
शिया पंथ के अनुयायियों और मुसलमानों में विवाद का एक दूसरा कारण भी है । शिया पंथ के लोग ताजिए के नीचे से अपने बच्चों को निकालते हैं । उनका मानना है कि इससे बच्चों को हज़रत हुसैन का आशीर्वाद मिल जाता है और वे जीवन में रोगों से मुक्त रहते हैं । इसी प्रकार वे ताजिया पर चढ़ावा शीरनी , शर्बत इत्यादि भी चढ़ाते हैं । यही चढ़ावा श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दिया जाता है । इन सभी कारणों से मुसलमान , ताजिए की तुलना मूर्तिपूजा से करते हैं । उनके अनुसार ताजिया एक प्रकार से हज़रत हुसैन का प्रतीक ही है । मूर्ति भी प्रतीक ही होती है । मूर्ति पर भी चढ़ावा चढ़ाया जाता है और प्रसाद बँटता है । इस्लाम में न तो प्रतीक रूप में मूर्ति की अनुमति है और न ही मूर्ति पूजा की । लेकिन इस्लाम पंथ को मानने वाले यह नहीं सोचते कि वे इस्लाम का कर्मकांड , शिया पंथ पर कैसे लाद सकते हैं ? न्याय के लिए जिस प्रकार का युद्ध कर्बला के मैदान में लड़ा गया था , क्या उनके पास इतिहास का कोई ऐसा गौरवशाली क्षण है ?
हिन्दुस्तान के बारे में दुनिया भर के शिया पंथियों का एक नरम कोना है । जिस समय मुसलमान हज़रत अली रे परिवार को बेरहमी से मार रहे थे और दुनिया रे बाक़ी लोग महज़ तमाशा देख रहे थे , उस समय मोहयाल ब्राह्मणों का एक वर्ग हुसैन के पक्ष में मुसलमानों से लड़ा था । न्याय की इस लडाई में अनेकों मोहयाल ब्राह्मणों ने भी बलिदान दिया था । इस लिए जब शिया पंथ के लोग अब भी ताजिया निकालते समय मोहयाल ब्राह्मणों को हुसैनी ब्राह्मण के नाम से याद करते हैं । कश्मीर में तो शियापंथियों और इस्लामपंथियों में यह विवाद प्राय इतना बढ जाता है कि अनेक बार सरकार इस्लाम पंथियों के दबाब में शियापंथियों को इस ऐतिहासिक अवसर पर ताजिया निकालने की अनुमति ही नहीं देती । इसके बाद भी यदि शिया पंथी ताजिया निकालते हैं तो मुसलमान उसे बलपूर्वक रोकते हैं । दंगा तक हो जाता है ।
इस्लाम पंथ और शिया पंथ की इस पृष्ठभूमि के बाद कश्मीर में हाल ही में हुए विवाद की चर्चा की जा सकती है । 11 जनवरी 2025 को श्रीनगर के करालपोरा इलाक़े में एक मुशायरा था । यह मुशायरा शिया पंथ के कुछ युवा अनुयायियों ने आयोजित किया था । किसी युवा कवि ने अपनी कविता में हज़रत अली से पूर्व के तीन ख़लीफ़ाओं के लिए कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जो इस्लाम पंथ के अनुयायियों की दृष्टि में आपत्तिजनक थे । मुशायरा सोशल मीडिया पर भी प्रचारित हुआ । मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी जुड़ गया । जाहिर है कि मुसलमान, शिया पंथ के युवकों द्वारा पढ़ी गई इस कविता पर आपत्ति करते । घाटी के मुसलमान उत्तेजित थे । ऐसे मौक़े पर शिया पंथ के बडे बुज़ुर्गों ने बीच में पड़कर मामला शान्त करवाने का प्रयास किया । आगा सैयद हादी ने भी उन कवियों की मुज्जमत की जिन्होंने तीन ख़लीफ़ाओं का ग़लत तरीक़े से मूल्याँकन किया था । लेकिन उन्होंने यह भी आगाह किया कि इन एक दो कवियों के विचार को बहाना बना कर पूरे शिया पंथ को निशाना नहीं बनाना चाहिए । पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर ही लिया है । यह ठीक है कि इस पृष्ठभूमि में बोलने की आजादी पर भी बहस चलती ही रहेगी । लेकिन इतना ध्यान को रखना ही चाहिए कि किसी भी पक्ष की भावनाओं को ठेस पहुँचाने से बचने का प्रयास करना चाहिए । इस मसले को हल करने का एक और रास्ता भी हो सकता है कि सऊदी अरब या कोई दूसरा इस्लामी देश जिसको लगता हो कि वह सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है , तो वह मुसलमानों की ओर से कर्बला के उस नर संहार के बारे में शिया पंथ वालों से क्षमा याचना कर ले ।