विविधा

हिन्दू पर आतंकवादी छाप से अलकायदा को मदद

-तरुण विजय

भारत के इतिहास में पहली बार एक लोकतांत्रिक भारतीय शासन के नाम पर, भारतीय इतिहास और यहाँ के हिन्दू समाज की एक बड़ी विडम्बना है कि शासन का प्रथम प्रहार हिन्दू अस्मिता और उनके गौरव स्थानों तथा संगठनों पर हो रहा है।यह स्थिति हिन्दू समाज की कमजोरी के कारण ही आयी है। आपस में लड़ना, एक दूसरे के बारे में उसी चिंतन और विद्वेष के साथ प्रहार करना जिस विद्वेष और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के साथ जय सोमनाथ उपन्यास में शिवराशी गजनी को लेकर आया था, आज हिन्दू समाज के विभिन्न संगठनों के लोगों में देखने को आता है। नतीजा यह है कि भारत विभाजित करने की त्रासदी झेलने के बाद भी हिन्दू अपनी अस्मिता और स्वाभिमान के लिए संघर्ष कर रहे दिखते हैं। यह वह भारत है जहाँ हिन्दू पूर्ण बहुमत में होने के बावजूद न तो गौ हत्या बंद करवा पाए, न ही राम जन्म भूमि पर अपने सर्वोच्च आराध्य देव का स्थान पुन: निर्मित करवा पाए। उनका दुर्भाग्य इससे बढ़कर और क्या होगा की पांच लाख हिन्दू केवल हिन्दू होने के कारण कश्मीर से निकाल दिए गए फिर भी उनके आंसू पोंछने वाला कोई नहीं और अब शायद ही वे कभी वापस जा पाए ऐसा वातावरण बन गया है।

लेकिन वे जो नक्सल हिंसक आतंकवादियों के पक्ष में खुल कर बोलते हैं, वे जो कश्मीर के देशद्रोही आतंकवादियों से बातचीत की वकालत करते हैं, वे जो नागालैंड को भारत से अलग एक ईसाई देश बनाने के लिए अपनी फौज और गोला बारूद एकत्र करने वालों का साउथ ब्लाक में स्वागत कर उनके साथ बात करते हैं, क्या उनमें से एक पक्ष भी कभी हिन्दू मुद्दे पर एक शब्द भी बोलने के लिए तैयार होगा ? भाजपा छोड़ दीजिये, आर.एस.एस. की भी बात मत करिए, पर क्या देश का हिन्दू सिर्फ इन दो संगठनों तक सीमित रह गया है? बाकी दलों और संगठनों में जो हिन्दू हैं क्या उनमें से किसी को भी, कहीं भी, एक बार भी हिन्दू मुद्दे पर कुछ बोलते हुए आपने देखा या सुना या पढ़ा है? यह है आज के हिन्दुस्तान की त्रासदी। इसलिए आर.एस.एस. और उससे प्रेरणा प्राप्त संगठनों के खिलाफ आक्रमण किया जा रहा है ताकि देश में हिन्दू स्वर को मंद और कमजोर किया जा सके।

आजादी से पहले भारत में एक नहीं अनेक राष्ट्र व्यापी हिन्दू संगठन थे जो अपने अपने कार्यक्रमों और पद्धति से हिन्दू हितों पर कार्य करते थे। उनको महात्मा गांधी और कांग्रेस का भी कुछ समर्थन मिलता था हालांकि तब भी कांग्रेस हिन्दू वोट लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण वाली पार्टी मानी जाने लगी थी। हिन्दू महासभा, आर्य समाज, आर.एस.एस., रामकृष्ण मिशन, श्री अरविन्द, हिंदी के साहित्यकार जिनमें मैथिलिशरण गुप्त, दिनकर, अज्ञेय, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, रामचन्द्र शुक्ल, और शिक्षा के क्षेत्र में महामना मदन मोहन मालवीय जैसे दिग्गज पुरुष खुलकर, नि:संकोच भाव से हिन्दू हितों के लिए समाज के उच्च कुलीन तथा सभी अन्य वर्गों के साथ काम करते थे, उनकी लोकमान्यता थी और समाज में उनको अत्यंत आदर के साथ देखा और समझा जाता था।

आज हम बौने लोगों के बीच काम कर रहे हैं इसलिए न तो समाज का उच्च कुलीन वर्ग हिन्दू हितों पर खुलकर सामने आता न ही हिन्दू धर्मं और समाज के लिए जीवन अर्पित करने वालों को वो मान्यता मिलती है जो कभी आजादी से पहले मिलती थी।

यह सच है कि आज बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, माता अमृतानंदमयी जैसे महँ विभूतियाँ हिन्दू धर्मं के मंच से जगत व्यापी ख्याति और अपार धन भी अर्जित कर रहीं हैं। लेकिन उनमें से कोई भी, सिवाय स्वामीनारायण्ा संप्रदाय के, हिन्दू के नाम पर जन संगठन और प्रतिरोध का वातावरण भी बना रही हैं क्या ? उनमें से एक भी संगठन हिन्दू हितों पर हमले के समय, हिन्दू जन के ऊपर होने वाले प्रहारों के समय और हिन्दू अस्मिता पर सरकारी आघातों के समय खुलकर सामने आकर प्रतिरोध करतें है क्या? इसका एक ही उत्तार है, नहीं। इनमें से एक भी संगठन ने अपनी भक्तशक्ति, भक्तों के द्वारा प्राप्त धनशक्ति और उनकी अपनी अपनी महत्वपूर्ण स्थिति का उपयोग हिन्दू हितों के व्यापक उद्देश्य के लिए कभी किया है क्या? इसका भी उत्तार है, नहीं। वे तो हिन्दू धर्मं के मधुर प्रवचन करता बनकर धन और वैभव का विस्तार ही तो कर रहे हैं ? आर.एस.एस. क्योंकि आग्रही हिन्दू धर्म के आधार पर भारत के अभ्युदय के लिए काम कर रहा है, इसलिए उसपर निशाना साधना सेकुलर ईसाई सत्ताा को सर्वाधिक जरूरी लग रहा है, पिछले दिनों एक चैनल पर सैफ्फ्रान टेर्रोरिज्म नाम से एक प्रोग्राम दिखाया। उसमें ऐसा एक भी तथ्य नहीं था जो उसके शीर्षक को न्यायोचित ठहराता। लेकिन बैक ग्राऊंड म्युजिक और लापतेदार एंकरिंग के सहारे आप कुछ भी दिखा सकतें हैं और दर्शकों के मन में कम से कम एक शक तो पैदा कर ही सकते हैं जो कहेंगे भाई कुछ तो जरूर काला होगा।

इस सरकार के सेकुलर चरित्र का एकमात्र पहलु है हिन्दू नाम से चिढ़। इसने भारत विभाजन की जिम्मेदार मुस्लिम लीग के साथ समझौता स्वीकार किया और स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उसके सांसद को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान दिया। कोई कुछ नहीं बोला। इसने नागालैंड में भारत से पृथक नागा लिम देश की मांग करने वाले चुर्च समर्थित ईसाई आतंकवादियों को बुलाकर उनसे वार्ता की, कोई आपत्तिा नहीं हुई। इसनें भारत के विरुध्द और हमारे संविधान को अमान्य करने वाले कश्मीर के हुर्रियत जैसे संगठन से बात की पेशकश की, उनके नेताओं को सुरक्षा और चिकित्सा की सुविधाएँ दी, कोई उसपर विद्रोह में खड़ा नहीं हुआ। मदनी जैसे आतंकवादी को अदालत से सजा होने पर केरल प्रदेश के कांग्रेसी और कम्युनिस्ट नेता मदनी के समर्थन में सामने आये और उसके जमानत पर छूटने के समय उसका नागरिक अभिनन्दन किया, सब चुप रहे। इस सरकार के निशाने पर सिर्फ आग्रही हिन्दू औए उनके संगठन हैं इसलिए क्या कभी आपने सुना की प्रधानमंत्री ने आर.एस.एस. या विश्व हिन्दू परिषद् के प्रमुख नेताओं को घर पर बातचीत के लिए बुलाया? क्योंकि आर.एस.एस. और उसके विचारों से प्रेरणा प्राप्त पचास से अधिक संगठन हिन्दू विचारों के आधार पर देश में एतिहासिक सेवा और संगठन के कार्य कर रहे हैं जिससे विदेशी और सेकुलर अभारतीय तत्वों को सर्वाधिक परेशानी हो सकती है, इसीलिए महंगाई, आतंकवाद पर नियंत्रण में असफलता, बढ़ती गरीबी और हर मोर्चे पर सरकारी असफलता से जनता का ध्यान हटाने के लिए अब हिन्दू संगठनों को बदनाम करने की साजिश बड़े पैमाने पर शुरू की जा रही है। कोई व्यक्ति यदि संविधान विरोधी कार्यों में लिप्त हो तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए। इतना बड़ा हिन्दू संगठन क्या कभी संकीर्ण हिंसा का मार्ग अपनाकर अपने दशकों की तपस्या और बलिदान से प्राप्त उपलब्धि को बर्बाद होने दे सकता है?

आर.एस.एस. आज दुनिया का सबसे बड़ा सेवाभावी और गरीब भारतीयों की सहायता का ऐसा संगठन बना है जो अपने किसी भी सेवा कार्य में संप्रदाय के आधार पर कभी कोई भेदभाव नहीं करता। उसपर और उसके बहाने सारे हिन्दू समाज को कलंकित करने का घृणित कार्य किसकी सहायता के लिए किया जा रहा है? अफजल को सजा सुनाने के बाद भी फांसी से बचने वाले अब हिन्दू समाज के उदारवादी और सर्व धर्मं समभाव के चरित्र की हत्या कर रहे हैं। हमारा स्पष्ट कहना है की जो भी दोषी हो, कोई भी व्यक्ति हो, किसी भी पद पर हो, उसे दोषी पाए जाने पर संविधान के अनुसार सजा मिलनी ही चाहिए, इसमें कौन आपत्तिा करता है? लेकिन हिन्दुओं को आतंकवादी कह कर सजा क्या जांच, अदालती कार्यवाही और संवैधानिक प्रक्रिया से पहले ही सुनाई जा सकती है? जो हिन्दू कभी नादिरशाह द्वारा दिल्ली में हुए कत्लेआम और उसके अलावा दिल्ली के सत्रह बार और कत्लेआम के बाद आतंकवादी नहीं हुए और न ही उन्होंने मुस्लिम या इस्लाम विरोधी रवैय्या अपनाया, जो हिन्दू बाबर से लेकर औरंगजेब के अत्याचारों के बाद भी कभी मुस्लिम या इस्लाम विरोधी नहीं हुए और मस्जिदों को नहीं तोड़ा न ही उन्होंने दरगाहों को जलाया। जिन हिन्दुओं ने अपने हजारों मंदिरों को मुसलमान हमलावरों के हाथों तोड़े जाते देख कर भी मुस्लिम या इस्लाम विरोधी तेवर नहीं दिखाए और न ही उनसे नफरत की, जिन हिन्दुओं ने अपने पांच लाख हिन्दू भाई बहनों को मुस्लिम जिहादियों के हाथों लुट – पिटकर, बलात्कार और कत्लोगारत का शिकार होते देखा फिर भी मुसलमानों के खिलाफ विद्रोह का आह्वान नहीं किया, जिनके कारण भारत सर्व धर्म समभाव वाला संविधान स्वीकार कर रहा है और इस्लामी पाकिस्तान या बंगलादेश की राह पर नहीं चला, उन हिन्दुओं को आज सोनिया गाँधी की सरकार और उनके रहमोकरम पर चलने वाले मीडिया के चैनल आतंकवादी घोषित कर रहे हैं। ऐसा पाप इंदिरा या नेहरु के कार्य काल में भी नहीं हुआ था क्योंकि उनमें हिन्दुस्तान का रक्त बहता था। हिन्दू को बिना प्रमाण या कानूनी कार्यवाही के आतंकवादी घोषित करने का षड़यंत्र विदेशी ईसाई शक्तियों के इशारे पर किया जा रहा है इसके परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं। जो हिन्दू संगठन भारत के सभी वर्गों को साथ में लेकर व्यापक हिन्दू एकता का कार्य सफलता पूर्वक कर रहा है, उसको बदनाम और ध्वस्त करके ही ईसाई विस्तार की वैटिकन – योजना सफल हो सकती है। इसलिए सी.बी.आई. जैसे राजनीतिकृत संगठन, जिससे कभी मायावती को ब्लैक मेल किया जाता है तो कभी मुलायम सिंह को, की सहायता से अधपके साक्ष्यों को पक्के सबूत के तौर पर प्रेस में उछाल कर एक हव्वा बनाया जा रहा है। उसके आधार पर संसद में तो शोर शराबा हो ही सकता है।

मीडिया में हिन्दू संगठनों की आवाज तो पहले से ही कम है, उनपर एक प्रकार का अघोषित प्रतिबन्ध है। उसपर हिन्दू संगठन और बौने हिन्दू सेठों द्वारा नियंत्रित मीडिया संकीर्ण और आपस की हिन्दू बनाम हिन्दू की लड़ाई में आत्मघाती रस ले रही है। मीडिया के बिजनिस हित और सरकारी कृपा का चस्का भी हिन्दू संगठन विरोधी वातावरण बनाने में सहायक बना है, ऐसी स्थिति में हिन्दू विरोधी सेकुलरों का काम यह हिन्दू शिवराशि और मंद बुध्दि शोर मचाओ दस्ते आसान कर रहे हैं। यह समय पुन: सोमनाथ के उद्धोष का है जिसमें कहीं भी हिन्दू एकता में दरार न आए। वयं पंचाधिकम शतं, यह उद्धोष आर.एस.एस. के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरूजी का था। उनकी वाणी और मार्गदर्शन ही आज हिन्दू समाज पर गजनी के पुनरोदय के समान घातक सेकुलर प्रहार के समय में पथ प्रदर्शक बन सकता है।