बच्चों का पन्ना

कैसे बनती है आतिशबाजी?

राजेश कश्यप

दीपावली पर्व पर प्रत्येक बच्चे की इच्छा होती है कि वो आतिशबाजी करे। वैसे आतिशबाजी करने में बड़ा आनंद आता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि आखिर इस आतिशबाजी को बनाया कैसे जाता है? अगर नहीं तो हम आपको इसी आतिशबाजी के अवसर (दीपावली) पर बताने जा रहे हैं कि किस प्रकार बनती है आतिशबाजी?

आप सबने इतना तो सुना ही होगा कि बम-पटाखों, आतिशबाजी में मुख्य भूमिका बारूद की होती है। बारूद में जब आग लगती है तो वही चिंगारियां एवं धमाका पैदा करता है। अब एकाएक प्र्रश्न पैदा होता कि ये बारूद क्या है? बारूद पोटेशियम नाइटेªट (शोरा), गन्धक एवं काठ कोयला का मिश्रण होता है, जो कि क्रमश: ७५:१०:१५ के अनुपात में होता है। अर्थात् ७५ प्रतिशत पोटाशियम नाइटेªट, १० प्रतिशत गन्धक एवं १५ प्रतिशत काठ कोयला मिलकर बारूद का निर्माण करते हैं। इस बारूद का आविष्कारक चीन के ताओवादी किमियागर को माना जाता है।

सन् १७८८ में बरटलो ने पोटाशियम क्लोरेट का आविष्कार किया जो कि शोरे (पोटेशियम नाइट्रेट) से ज्यादा अच्छा साबित हुआ। सन् १८६५ के आसपास मैग्नीशियम का और सन् १८९४ में एल्युमीनियम और एल्युमीनियम आतिशबाजी की उन्नति में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए। आतिशबाजी बनाने के लिए कागज के खोल को एक डंडे पर लपेट कर चिपकाया जाता है। खोल के मुंह को संकरा रखने के लिए गीली अवस्था में ही एक डोर बांध दी जाती है। खोल की अंतिम परत पर जरा सी लेई अथवा गोंद लगाकर कूटकूट कर मसाला भरा जाता है। अंत में पलीता अर्थात् शीघ्र आग पकड़ने वाली डोर लगा दी जाती है।

इसी तरह बड़े अग्निबाणों के लिए मजबूत खोल बनाकर उसे बारूद से भरा जाता है। बाण की अनुमानित शक्ति को ध्यान में रखते हुए बारूद के बीच में पोली शंकू आकार जगह छोड़ी जाती है, जिससे कि बारूद जला हुआ क्षेत्र अधिक रहे। तत्पश्चात जलती गैसों के लिए टोंटी लगाई जाती है। यह इसलिए कि खोल स्वयं न जलने लगे। बाण की चोटी पर एक टोप लगाया जाता है। इसमें रंग बिरंगी फूल झड़ियां रहती हैं। जो जलने पर आतिशबाजी की शोभा बढ़ाते हैं।

फूल झड़ियांे में अन्य मसालों के अतिरिक्त लोहे के रेतन प्रयोग किया जाता है। जो जलने पर बड़े ही चमकीले फूल छोड़ती है। चरखी अथवा चक्री में बांस का एक ऐसा ढ़ांचा प्रयोग में लाया जाता है, जो अपनी धुरी पर घूर्णन कर सके। इसकी परिधि पर आमने सामने बाण की तरह बारूद भरी दो नलिकाएं होती हैं, जिनमें जस्ता तथा एल्युमीनियम भरा होता है।

महताबी चटख प्रकाश देने के लिए एंटीमनी या आर्सेनिक के लवण रहते हैं तथा रंगीन महताबियों के लिए पोटाशियम क्लोरेट के साथ विभिन्न धातुओं के लवणों का प्रयोग किया जाता है। जैसे लाल रंग के लिए स्ट्रांशियम का नाइटेªट या अन्य लवण, पीले प्रकाश के लिए सोडियम कार्बोनेट, नीले रंग के लिए तांबे का कार्बोेनेट या अन्य लवण और चमक के लिए मैग्नीशियम या एल्युमीनियम का महीन चूर्ण मिलाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार की आतिशबाजियों का निर्माण किया जाता है। बच्चों को बेहद सावधानी के साथ आतिशबाजी का प्रयोग करना चाहिए और कम से कम आतिशबाजी करनी चाहिए ताकि हमारे पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।