समाज

बंटा हुआ भारतीय समाज

-शिशिर चन्‍द्र

आज भारतीय समाज कई भागों में विभाजित हो गया है. 1947 में जो विभाजन देश ने देखा, वो अब काफी पीछे छूट गया है. ऐसा लगता था कि देश विभाजन के बाद समग्रता को प्राप्त करेगा; लेकिन यह दिवा स्वप्न ही साबित हुआ. आज विभाजन की लकीरें और गहरी हो गयी हैं. सिर्फ एक देश की भौतिक रूप से एकता ही उस देश की अक्षुण्‍णता के लिए काफी नहीं होती और न ही एक देश परिभाषा में खरे उतरती है. आज भारत देश पहचान के गहरे संकट संकट गुजर रही है.यदि ये इसी कदर चलती रही भारत देश की अविच्छिन्नता निर्बाध नहीं रह पायेगी.

देश की सामने बाह्य और आतंरिक दोनों प्रकार की चुनौतियाँ हैं. लेकिन इन स्पष्ट शत्रुओं के अतिरिक्त कुछ अदृश्य या गंभीरता से नहीं लिए गए शत्रु कारण हैं जो देश की अस्मिता के लिए भविष्य में चुनौती कड़ी कर सकते हैं. किसी भी देश का निर्माण वहां की जनता, उनके संस्कार, भाषा, भूभाग, इतिहास, संसाधन और अन्य हजारों कारणों से होता है, जब देश की जनसँख्या का बड़ा भाग इन कारणों से गौरवान्वित होता है तो देश दीर्घायु समझी जाती है. लेकिन एक एक करके इन प्रतीकों को भारतवर्ष में जानबूझकर क्षति पहुँचाया गया है.

आरक्षण के विष के द्वारा भारतीय जनता को आमने सामने भिड़ा दिया गया है, जिससे राष्ट्र निर्माण की गति को कुंद किया जा सके. इसका असल उद्देश्य वोटबैंक बनाना है जिससे अयोग्य नेताओं को चुनाव जीतने में आसानी रहे. मुझे कोई कारण नहीं लगता कि सवर्ण नेता अजा/जजा के हितों कि निस्वार्थ भाव से चिंता करते. इसका एक और उद्देश्य राष्ट्रवाद के उत्थान को रोकना, जिससे समाज का एक हिस्सा राष्ट्रवादियों को हमेशा शक की निगाह से देखे. क्या कोई इंकार कर सकता है कि भारतीय समाज इसकी वजह से दो हिस्सों में बँट चुका है?

हिन्दुओं को प्रताड़ित करना. 3 लाख कश्मीरी पंडितों को आज देश में ही शरणार्थी के रूप में रहना पड़ रहा है. क्या हिन्दुओं के मन में इस देश के लिए क्षोभ नहीं है? क्या हिन्दू, गैर हिन्दू को शक कि निगाह से नहीं देखेगा? यदि हिन्दू बहुल बस्तियों से मुसलामानों को खदेड़ने की नहीं सोच सकता?

भ्रष्टाचार आज नासूर बन चुका है. शायद ही कोई नेता और नौकरशाह आज ईमानदार दिखाई देता है. क्या इससे देश को अच्छे नागरिक मिल सकेंगे? क्या व्यवस्था के लिए आक्रोश राष्ट्रविरोध का रूप नहीं ले लेगा?

हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी को बढ़त से हिंदी भाषी दोयम दर्जे का नागरिक समझे जा रहे हैं? क्या विदेशी भाषा से राष्ट्र का निर्माण हो सकता है?

विभिन्न जातियों में बँटा हिन्दू धर्म क्या एकता का सन्देश दे पायेगा? क्या अलग अलग जातियों के लोग आपस में विवाह करेंगे? यदि नहीं तो एक राष्ट्र के लिए अच्छे लक्षण नहीं हैं.

अल्पसंख्यकों को विशेष सहूलियत और हिन्दुओं को अपमान क्या देश को तोड़ने वाला नहीं है? हज के लिए अनुदान, शैक्षणिक संस्थाएं चलने की सुविधा सिर्फ अल्पसंख्यकों को. बहुसंख्यकों को ठेंगा.

धर्मान्तरण पर सरकारों की चुप्पी क्या हिन्दुओं को देश के खिलाफ नहीं बना देगा. देश की सारी नीतियां पूंजीपतियों या वोटबैंक को ध्यान में रख कर बनाना क्या देश के लोगों को ही आमने सामने नहीं करेगा?

कानून और पुलिस का अपराधियों की रखैल होना क्या राष्ट्र पर गर्व करने लायक छोड़ता है.

भोपाल जैसे कांड में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्या नयायाधीश का बिक जाना क्या संकेत करता है.

नोट से जनमत तैयार करना और चुने हुए प्रतिनिधियों को नोट से खरीद लेना लोकतंत्र से जनता का विशवास ख़त्म नहीं कर देगा?

मुस्लिम आतंकवादियों का तुष्टिकरण और हिन्दुओं को आतंकवादी ठहराना देश के साथ गद्दारी नहीं है?

प्रतिभा के बजाये चाटुकारिता को मुख्य अस्त्र बनाना क्या राष्‍ट्र को कमजोर नहीं बनाएगा? भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, स्पीकर(लोकसभा), प्रधानमंत्री आदि के पद चाटुकारिता के आधार पर दिए गए. जो इन पदों की गरिमा के विरुद्ध है.

राष्ट्रवादी सरकारों और उनकी मशीनरी को परेशान करना और अपने खुद के और अपने सहयोगियों के पापों से आँख मूंद लेना कहाँ का न्याय है और क्या सन्देश जाता है.

रंगभेद भारत में विभाजन का बड़ा कारण रहा है. क्या इस बारे में देश के विद्वान् दावा कर सकते हैं कि वो रंगभेदी नहीं है