समाज

क्या लिव इन रिलेशनशिप की यही परिणिति है ?

विनायक शर्मा

दिल्ली में कुछ दिनों पूर्व आठ टुकड़ो में मिली महिला के सिर विहीन शव की गुत्थी को सुलझा लेने का दावा करते हुए पुलिस का कहना है कि मृतक पूजा के प्रेमी योगेश जो उसके साथ विगत चार वर्षों से लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहा था, ने ही मृतक महिला से पीछा छुड़ाने के लिए ही अपने दो मित्रों के साथ मिलकर बेरहमी से उसकी हत्या की थी. इसके बाद दो दिन बाद ही दिल्ली में घटित एक दूसरी घटना जिसमें एक युवक की छत से गिर कर मृत्यु हो जाती है, भी अपनी एक मित्र के साथ लिव-इन-रिलेशन रह रहा था. सेक्स, बलात्कार, प्यार में धोखा और इज्जत के साथ-साथ धन-दौलत लुटवा बैठना आदि तमाम तरह की त्रासदियों को झेल रही शहरों में कैरियर बनाने आयीं युवतियां, आधुनिकता की अंधी दौड़ में लिव-इन-रिलेशन जैसे संबंधों के चक्कर में फँस जाती हैं. क्या इस प्रकार के संबंधों की यही परिणिति है ?

लिव-इन-रिलेशन के विषय में आज से लगभग ३५-४० वर्षों पूर्व मैंने किसी पत्रिका में एक आलेख देखा था. उस समय लेख में दी गई जानकारी के अनुसार इस प्रकार के संबंधों को गुजरात का समाज मान्यता भी दे रहा था और बाकायदा लिखा-पढी कर यह सम्बन्ध बनाये जाते थे. धार्मिक और सामाजिक मूल्यों व वैवाहिक संस्थाओं की मान्यताओं पर विश्वास रखने वाले हिंदु समाज के लिए यह बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाला समाचार था. ७० के दशक में उत्तर भारत में इस प्रकार के अनैतिक संबंधों के विषय में कोई सोच भी नहीं सकता था. देश में पाश्चात्य संस्कृति व खुलेपन की तरफ शनैः शनैः बढ़ता झुकाव और धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्कारों और परम्पराओं के आभाव के चलते ही इस प्रकार के संबंधों का आज न केवल प्रचलन बढ़ रहा है बल्कि विख्यात अधिवक्ता शांतिभूषण जैसे अधिकारों के तथाकथित संरक्षक तो अब इसे सामाजिक और कानूनी मान्यता देने की भी वकालत कर रहे हैं.

कुछ दिन पूर्व एक समाचार चैनल पर समाचार देखा कि – मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रोढ़ और ढलती उम्र के स्त्री-पुरुषों यानि कि बुजुर्गों ने लिव-इन-रिलेशन के लिए साथी की तलाश के लिए एक सभा का आयोजन किया. भोपाल जैसे एक छोटे शहर से इस प्रकार के समाचार ने अनायास ही मेरा धयान आकर्षित किया. प्रारम्भ में तो ऐसे समाचार गुजरात और महाराष्ट्र के बड़े शहरों से ही सुनने को मिलते थे. अब मेरे लिए अचम्बे की बात तो यह थी कि भोपाल जैसे छोटे से शहर से लिव-इन-रिलेशन का समाचार और वह भी बुजुर्गों द्वारा उम्र के इस ठौर में साथी की तलाश ?

अभी तक महानगरों में कैरियर बनाने आये हुए और संस्कारहीन लड़कों और लड़कियों में ही अनैतिक संबंधों के चलते एक साथ रहने का प्रचलन सुनने में आता था. अब महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों में वृद्धों के इस ओर बढते कदम अवश्य ही चिंतन को विवश करते हैं. बुजुर्ग विधुर या विधवा को परिवार से मिलनेवाली प्रताड़ना और अनदेखी व नौकर या चौकीदार समझ कर किया जाने वाला व्यवहार ही कहीं न कहीं विधवा माता या विधुर पिता को ओल्ड-ऐज-होम के बाद अब लिव-इन-रिलेशन की ओर धकेल रहा है. समाज का यह बदलता स्वरुप अवश्य ही भविष्य में अनेक समस्याएं पैदा करेगा, इस अंदेशे से समाज को सचेत रहने की आवश्यकता है. रीतियों को कुरीतियों की संज्ञा देने व अधिकारों के लिए संघर्षरत इस सभ्य समाज का यह जीवन जीने का बदलता दृष्टिकोण है या समयानुसार आवश्यकता ? किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पूर्व सभी पहलुओं को समझना आवश्यक है. कभी परिवार के मुखिया रहे ऐसे विधुर या विधवा बुजुर्गों को वर्तमान समय में दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. एक तो जीवन साथी के मरणोपरांत एकाकी और नीरस जीवन के चलते वह जिन्दगी से निराश हो गया होता है वहीँ दूसरी ओर जब वह अपने बहु-बेटे और पोते-पोतियों में अपना गम भुलाने और मन लगाने का प्रयत्न करता है तो उसे वह सब नहीं मिलता है जिसकी उसे जीवन के इस पड़ाव में परम आवश्यकता है. ओल्ड-ऐज-होम में भी उसे समय व्यतीत करने के लिए दोस्त तो मिल जाते हैं परन्तु दुःख-सुख को समझनेवाला साथी नहीं मिलता जो उसकी भावनाओं को समझ सके. यही मुख्य कारण है जिसके चलते जीवन की इस भागम-भाग में परेशानियों और एकाकीपन से उभरने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र के बाद अब देश के कई राज्यों के बुजुर्ग जो इस उम्र में बदनामी के डर से विवाह बंधन में बंधने की अपेक्षा लिव-इन-रिलेशन को अधिमान दे रहे हैं. इसके अतिरिक्त पेंशन, जमा-पूंजी, प्रोपर्टी व कई अन्य आर्थिक कारण भी हैं जिनके चलते प्रारम्भ में प्रोढ़ स्त्री-पुरुष वैवाहिक बंधन के कानूनी रूप में बंधने की अपेक्षा लिव-इन-रिलाशन को अधिक सुरक्षित मानते है. कुछ समाज सुधारकों की इस विषय में मान्यता है कि शहरी युवावर्ग जो शारीरिक आकर्षण व कैरियर में ऊँची उडान भरने के लिए वैवाहिक बंधन में बंधने की अपेक्षा लिव-इन-रिलेशनशिप को तरजीह दे रहा है तो ऐसे में अगर वृद्ध भी जीवन के आखिरी मोड़ और ढलती उम्र में पहुंचकर हम उम्र साथी के साथ नई सुबह की तलाश करते हैं, तो शायद इसमें कोई बुराई नहीं है.

जो भी हो भारतीय संस्कृति, संस्कारों और हिंदु परिपाटियों व मूल्यों के पक्षधर संगठनों के सामने विगत कुछ समय से देश में लिव-इन-रिलेशनशिप, जिसमें वैवाहिक-बंधन में बंधे बगैर स्त्री-पुरुष साथ-साथ रहते है, का बढता प्रचलन एक बहुत बड़ी समस्या पैदा कर रहा है. यह दीगर बात है कि पाश्चात्य देशों और संस्कृति का अनुसरण करने वाले इसमें कुछ भी बुराई नहीं देखते और इसमें किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव अधिकारों का हनन तक बता देते है. ठीक उसी प्रकार जैसे समलैंगिक एक दूसरे के साथ रहने और शारीरिक संबंधों में किसी प्रकार की बुराई नहीं समझते. वास्तव में यह सब पाश्चात्य देशों, स्वछंद और बंधन मुक्त जीवन व्यतीत करने वालों की बढ रही संख्या का अंधानुकरण ही है जिसमें बालिग स्त्री और पुरुष बिना विवाह-बंधन में बंधे एक साथ स्वछंद पूर्वक रहने का अनुबंध करते हैं. भारतीय समाज आज भी विवाह से पूर्व किसी लड़के एवं लडकी का घुलना मिलना या शारीरिक संपर्क बनाना और विवाह पश्चात् जीवन साथी के अतिरिक्त किसी अन्य के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना न केवल अमान्य है बल्कि विधि सम्मत भी नहीं है. वहीँ महानगरों के बाद अब तो छोटे-छोटे शहरों से भी इस प्रकार के अनैतिक, असामाजिक और गैर-कानूनी संबंधों के समाचार आ रहे है. आधुनिक भारतीय समाज की स्त्रीयों में बढ़ती आत्म-निर्भरता की भावना, उच्च शिक्षा व नौकरी हेतु घर व अभिभावकों से दूर जाना, चलचित्रों का प्रभाव, शहरों का महंगा रहन-सहन,शारीरिक आकर्षण और बिना किसी वैवाहिक बंधन के सहमती पूर्वक शारीरिक सम्बन्ध बनाने की उत्सुकता आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिनके चलते युवक-युवतियों में इस लिव-इन-रिलेशन का प्रचलन बहुत तीव्रता से बढ़ रहा है. आये दिन इस प्रकार के संबंधों से उपजे धोखे से शारीरिक सम्बन्ध बनाने के आरोप, सम्बन्ध तोड़ने के लिए मारपीट या फिर आर्थिक धोखाधड़ी के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं. इस प्रकार के संबंधों की आड़ में बढ़ रहे अपराधों के चलते जहाँ एक ओर कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो रही है वहीँ दूसरी ओर हमारे वैवाहिक संस्थानों को छिन्न-भिन्न करने का काम भी कर रहा है. संस्कारों, संस्कृति और परम्पराओं पर अटूट विश्वास रखने वाले सभ्य भारतीय समाज की युवापीढी क्यों इस अनैतिक पाश्चात्य विचारधारा से प्रभावित हो इसका अन्धानुकरण कर रही है, समय रहते इसका निराकरण आवश्यक है अन्यथा इनसे उपजे अपराध के कारण पैदा हुई अराजकता को संभालना कठिन हो जायेगा.