सनातन-सांस्कृतिक मूल्यों को गति देते मोहन यादव

प्रमोद भार्गव

मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री मोहन यादव मुख्यमंत्री पद की षपथ लेने के बाद से ही सनातन-सांस्कृतिक मूल्यों को निरंतर गति दे रहे हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान सरकार की कोई निंदा-आलोचना किए बिना, उनके द्वारा खींची गई लकीर को बड़ा करने का काम किया है। इस परिप्रेक्ष्य में हिंदुत्व की वैचारिकता को आगे बढ़ाने के साथ महिलाओं के सषक्तिकरण, युवाओं को रोजगार, नगरीय विकास से लेकर ग्रामीण विकास और सुषासन को सषक्त बनाने के बावत् उनकी प्राथमिकताएं देखने में आई हैं। हिंदुत्व और सनातन संस्कृति उनके अजेंडे के प्रमुख आधार रहे हैं। अतएव उज्जैन और अन्य धार्मिक स्थलों के कायाकल्प के साथ राम वन गमन और कृश्ण पाथेय परियोजना को जमीन पर उतारने का संकल्प लिया है। अब भगवान श्री कृश्ण से जुड़े मध्यप्रदेष के स्थलों को एक नवीन पहचान दी जाएगी। प्रदेष में बड़ा पूंजी निवेष कराकर उद्योगों की स्थापना हेतु कई इंवेस्टर मीट कराए गए हैं। इससे नए रोजगार व तकनीकी विकास के रास्ते जल्दी ही खुलेंगे।  

दुनिया के सामने ‘श्री कृश्ण पाथेय‘ योजना के अंतर्गत सांदीपनि आश्रम उज्जैन, पीवड़िया-खातेगांव देवास, एरण सागर, चंदेरी, अषोकनगर जामगढ़ रायसेन, सागर, जनापाव इंदौर और अमझेरा धार सहित आठ जिलों में उन पुरातन स्थलों को धार्मिक पहचान दी जाएगी, जो भगवान कृश्ण से जुड़े रहे हैं। इन स्थलों पर कृश्ण के श्रीचरण विद्यार्जन, यात्रा के समय विश्राम और विवाह के लिए रुक्मणी हरण से जुड़े हैं। इन यात्राओं में कृश्ण के साथ उनके बड़े भाई बलराम अर्थात बलदाऊ भी साथ रहे हैं। कृष्ण और बलराम ने एक साथ उज्जैन के सांदीपनि आश्रम के गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की थी। दोनों भ्राताओं में यहां 64 कलाएं और 14 विद्याएं गुरु सांदीपनि से प्राप्त की थीं। मित्र सुदामा भी उनके साथ रहे थे। भागवत पुराण के अनुसार गुरु सांदीपनि के पास जितनी भी शिक्षाएं थीं, सब सिखा दी थीं। शिक्षा प्राप्ति के बाद कृष्ण ने गुरु से गुरु दक्षिणा लेने को कहा, लेकिन उन्होंने कुछ भी लेने से मना कर दिया। तब कृष्ण और बलराम गुरु माता के पास पहुंचे। उन्होंने रोते-रोते अपने पुत्र के अपहरण की कहानी कह दी। पुत्र का अपहरण समुद्र के किनारे से हुआ था। कृष्ण और बलराम समुद्र किनारे पहुंचे और उन्होंने समुद्र का आवाहन किया। समुद्र ने सामने आकर बताया कि पंचजन्य नाम के असुर ने गुरु सांदीपनि के पुत्र का अपहरण किया है। कृष्ण ने अंततः पंचजन्य राक्षस को खोज लिया और उसको दंडित करते हुए गुरु पुत्र को वापस मांगा। पंचजन्य ने जब कृष्ण के पुरुषार्थ और उनकी दैवीय शक्तियों को जाना तो तुरंत गुरु पुत्र को लौटा दिया। कृष्ण और बलराम ने इस पुत्र को उज्जैन जाकर गुरु माता को दक्षिणा के रूप में सौंप दिया। इस यात्रा के दौरान कृष्ण और बलराम धार जिले के अमझेरा होते हुए समुद्र तक पहुंचे थे।

कृश्ण को जब विवाह प्रस्ताव के रूप में रुक्मणी का पत्र मिला तो वह द्वारका से नारायण, पीवाड़िया-खातेगांव एरन, चंदेरी होते हुए विदर्भ की राजधानी कुंडनपुर पहुंचे थे। रुक्मणी स्वयंवर यहीं चल रहा था। इसी स्वयंवर स्थल से कृश्ण ने रुक्मणी का हरण किया था। अब इन्हीं स्थलों को एक न्यास बनाकर संवारा जाएगा। इन स्थलों को तीर्थ स्थलों के रूप में विकसित करने की योजना है। इस योजना को क्रियान्वित करने से पहले स्थलों का शोधवृत्ति के जरिए शोध कराया जाएगा। विक्रमादित्य षोधपीठ इसे क्रियांन्वित करेगी। मोहन यादव गीता और गो-माता की महिमा को बढ़ाने का काम भी प्राथमिकता से कर रहे हैं। गीता और गो-माता हमारी सनातन संस्कृति और आस्था के प्रतीक हैं। गाय की महिमा का गान ऋग्वैदिक युग से ही हो गया था। वैदिक ऋषियों ने जान लिया था कि गाय एक ऐसा पशुधन हैं, जो दूध और दूध से बनने वाले दही, मठा, घी, मक्खन तो देती ही है, खेती के लिए बैल भी देती है। अतएव ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था हेतु गाय के संरक्षण का उपाय करते हुए, उसे गऊ माता का दर्जा ऋषियों ने दिया।

अकसर हमारे राजनेता या प्रदेष प्रमुख हिंदु एवं मुस्लिम संप्रदायों से जुड़े मंदिर एवं मस्जिदों के अतिक्रमण हटाने से भयभीत दिखाई देते हैं। इनके पीछे उनकी स्वयं की धार्मिक भावना एवं आस्था तो होती ही है, कहीं सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ न जाए, इसका डर भी मन में रहता है। अतएव ज्यादातर मुख्यमंत्री ऐसे अतिक्रमणों को हटाने से बचते हैं। हालांकि उत्तर प्रदेष में योगी आदित्यनाथ ने अनेक धार्मिक स्थलों एवं भू-माफियाओं के अतिक्रमण हटाकर एक मिसाल पेष की है। अब ऐसा ही उदाहरण मोहन यादव ने उज्जैन में पेष किया है। उन्होंने उज्जैन के केडी मार्ग चैड़ीकरण में आ रही बाधाओं को दूर करने में दृढ निर्णय के साथ सभी धर्मावलंबियों और षासन के बीच सामंजस्य बिठाकर इन अतिक्रमणों को हटाने का अनूठा उदाहरण पेष किया है। कुल 18 धार्मिक स्थलों के अतिक्रमण हटाए गए थे। इनमें 15 मंदिर, 2 मस्जिद और एक मजार शामिल थे। इन्हें पीछे करने या अन्य स्थल पर स्थापित करने का काम परस्पर सहमति से किया गया।

                मुख्यमंत्री मोहन यादव पूरी तरह धार्मिक हैं, लेकिन उनमें धर्मजन्य मिथकीय जड़ता नहीं है। जब वे मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने इस पद पर असीन होने के बाद पहली बार उज्जैन में रात बिताने का निष्चय किया था। इस खबर के फैलने के बाद कथित धर्म के प्रचारकों ने प्रष्न उठाया कि राजा महाकाल की नगरी की परिधि में कोई दूसरा राजा या मुखिया रात बिताएगा तो उसे महाकाल के आक्रोष से पद गंवाना पड़ सकता है ? इस पर मुख्यमंत्री यादव ने सार्थक टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘मैं तो उज्जैन का ही निवासी हूं और महाकाल भगवान की शरण में ही रहा हूं। आज मेरी जो भी राजनीतिक व अन्य उपलब्धियां हैं, वह उन्हीं की कृपा से हैं। महाकाल का दायरा कोई उज्जैन नगर निगम तक सीमित नहीं है। वे विश्व के कण-कण में व्याप्त हैं। अतएव उन्हें मुझे दंडित करना होगा तो उज्जैन नगर की सीमा से बाहर भी कर सकते हैं। इसलिए मैं उन्हीं की शरण में उज्जैन में रात बिताऊंगा और मुझ पर उनकी कृपा भी रहेगी।‘ हम सब जानते हैं कि मोहन यादव ने उज्जैन में रात बिताई और महाकाल की उन पर कृपा बरसती रही।

इसी विष्वास का परिणाम है कि वे आज उन तीर्थयात्रियों के लिए उज्जैन में सुलभ मार्ग बनाए हैं, जिनकी संख्या महाकाल लोक के निर्माण के बाद निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में एक उदार और जबावदेही षासक का दायित्व बनता है कि वह भोले षंकर के दर्षन हेतु जितने सरल उपाय हो सकें, उन्हें क्रियान्वित करें। धार्मिक नगरों में मार्गों का चैड़ा होना इसलिए भी जरूरी है, कि कहीं यदि किसी होटल या अन्य भवन में आगजनी की घटना घट जाती है तो चैड़े मार्गों से सुरक्षादलों और फायरबिग्रेड को मौके पर पहुंचने में बाधा सामने नहीं आती। ये चैड़े मार्ग 2028 में उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ मेले में भी वरदान साबित होंगे। यहां कुंभ नगरी का निर्माण भी किया जा रहा है। इसका उद्देष्य कुंभ मेला क्षेत्र का स्थाई विकास किया जाना है। उज्जैन और राजा विक्रमादित्य एक-दूसरे के पर्याय हैं। विक्रमादित्य ने ही उज्जैन से विदेशी शकों का पराभव कर उन्हें पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। इस युद्ध की विजय के उपलक्ष्य में ही विक्रम संवत शुरू करके एक नए पंचांग की शुरुआत विक्रमादित्य ने की थी। परंतु वामपंथी इतिहासकारों ने विक्रमादित्य के अस्तित्व को ही नकार दिया था। विक्रम षोधपीठ विक्रमादित्य से जुड़े इतिहास को साक्ष्यों के साथ प्रमाणित करने के लिए देषभर के विद्वानों की उज्जैन में परिचर्चाएं आयोजित कर विक्रमादित्य के नायकत्व की गाथाएं सामने ला रही है।   

                 मोहन यादव जैसी धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना और रुढ़िवादी जड़ताओं को तोड़ने वाले दृढ़ निष्चयी प्रतिनिधियों की मध्यप्रदेष में ही नहीं पूरे देष में जरूरत है। यदि ऐसे नेता जागरूकता और समन्वय की स्थापना के लिए सामने आएंगे तो उनसे पवित्र एवं सात्विक सांस्कृतिक परंपराओं के बीच पनपे अंधविष्वासों को दूर करने की भी अपेक्षा की जा सकेगी। जिससे मानव समुदायों में तार्किकता का विस्तार हो और इसी के फलस्वरुप वैज्ञानिक चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो।

प्रमोद भार्गव

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