राजनीति

आतंकवाद की शब्दावली में नया शब्द भगवा आतंकवाद?

– डा. रमेश शर्मा

कुछ समय से एक नूतन शब्द ‘भगवा आतंकवाद’ समाज के सामने परोसा जा रहा है। इसे हिन्दु आतंकवाद, भगवा ब्रिगेड, सैफरन उग्रवाद जैसे उपनामों से प्रचरित किया जा रहा है। मीडिया और राजनैतिक दल इस विशेषण को दुनिया भर में संदेश देने के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं। सरकार आधिकारिक तौर पर इसका प्रयोग करे तो स्थिति चिंताजनक वन जाती है।

यह कपोल कल्पित शब्दावली ही नहीं बल्कि समस्त मानव समाज को दुराग्रह के कारण भ्रमित करने का प्रयास है। भग शब्द छ: गुणों और विशेषताओं से युक्त है। अर्थात श्री, ऐश्‍वर्य आदि छ: भग जिसमें होगें वह भगव या भगवान या भगवन है। उसे सृष्टि का नियता माना जाता है। यह देवत से उपर की श्रेणी में आता है।

भगवा हिन्दु संस्कृति का समवाहक प्रतीक है। जिसमें इसका स्‍वर्णिम अतीत वर्तमान तथा भविष्‍य द्योतित होता है। उत्सर्ग, त्याग और बलिदान की यह चिरन्तन शाश्‍वत सलिला का परिचायक है। क्या यह शब्द आतंकवाद या उग्रवाद का सूचक हो सकता है? कही हिन्दु अस्मिता को इस्लामी उग्रवाद के समक्ष रखने का सुनियोजित षड्यंत्र तो नहीं? एक प्रकार से हम सब चोर हैं कि भावना को प्रमाणित करने का प्रयास हैं और इससे भी घातक मानसिकता का परिचायक है कि केवल दुनिया इस्लामी आतंकवाद से ही ग्रसित नहीं है। हिन्दु आतंकवाद उतना ही उतरदायी है। यह जनसाधारण का ध्यान हटाने और उसके मानस में द्वन्द्व और उलझन उत्पन्न करते हुए अन्य आतंकवादियों को कम आंकने तथैव उन्हे सांतवना व धीरज देने के उद्देश्‍य से किया जा रहा है।

नामकरण संस्कार को व्याख्यायित करने के पश्‍चात् कुछ अन्य तथ्य भी चर्चा की मांग करते हैं। अजमेर या मक्का या मालेगांव ब्लास्ट में यदि कुछ लोगों के नाम आते हैं तो हिन्‍दु आतंकवाद वन जाता है। प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित इसमें एक अरव के प्रतिनिधि वन जाते हैं। राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ अधिकारियों के नाम लेकर उसे इस विवाद में घसीट कर सारे समाज के ध्रवीरकण की सोची समझी रणनीति को अमली जामा पहनाया जाता है। मात्र अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति के लिए पांच हिन्दुओं के नाम को उछालकर इस भगवा आतंकवाद अभिहित कर दिया जाता है। इसे यदि एक अलग दृष्टि कोण से देखा जाए तो सदियों से उदार और शांत रहने वाला अहिंसा प्रेमी हिन्दुसमाज उद्ववीगन और असहिष्‍णुता कैसे वन गया। इस समाज का पारम्परिक द्वैय क्यों खत्म हो गया। इस स्थिति तक पहुंचाने के लिए कहीं आजादी से लेकर आज तक की तुष्‍टीकरण की नीति तो नहीं है। जब तक उनके विरूद्ध आरोप सिद्ध नहीं हो जाते तो पहले दिन से ही उन्हे आतंकवादी कैसे घोषित कर दिया गया।

ये शब्द भावहीन, असंगत और बेतुके ही नहीं बल्कि एक विशेष रणनीति और उसके पीछे कार्यरत: मानसिकता के स्पश्ट संकेत हैं। एक ओर दृष्टिकोण से इसका विश्‍लेषण समस्या की समग्र केन्द्रीय भावना को उद्धाटित करता है। यदि धर्म विशेष से आतंकवाद को जोडना है तो इतिहास में हजारों सालों की शालीनता, उदारता व सहिष्‍णुता का पर्याय हिन्दु धर्म असहज होकर आतंकवादी क्यों बन रहा है। कौन से ऐसे तत्व हैं जो इसकी इसकी सहनशीलता की लगातार परीक्षा ले रहे हैं और इसकी सब्र की सीमा को लगातार खत्म कर रहे हैं। बीसवीं और इकसवीं सदी की घटनाओं का क्रम से अध्ययन किया जाए तो धर्मनिरपेक्षता, साम्‍प्रदायिकता सेकुलरवार के नारे देकर कहीं यहां के देशवासियों को यह आभास तो नहीं हो रहा है कि वर्तमान राजनैतिक ढ़ाचा या ब्रिटीश लोकतंत्र की नकल इस देश की आक्षाओं की रक्षा करने में असमर्थ है।

कहीं ऐसी धारणा बलवती तो नहीं हो रही कि समाज को अपनी परंपरा, मान्यता और आस्था की रक्षा के लिए स्वयं आगे आना होगा। यह सारी गली सड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था को सीधी चुनौती है या हिन्दु संगठनों के विरूद्ध सोचा समझा जेहाद और उसकी शुरूआत है। यह राजनीति की चाल हो यह मीडिया का बौद्धिक विलास। इससे जनसाधारण भ्रमित होगा। ऐसी शब्दावली न तो सार्थक है, न ही संगत और न ही वैध। इसका प्रयोग बंद होना चाहिए अन्‍यथा भारतीय समाज को ध्रुवीकरण की एक और कटौसी से गुजरना होगा जो वोट की दृष्टि से हितकर हो सकती है, मानव समाज के भविष्य के लिए नहीं।

हाल ही के दिनों में भगवा आतंकवाद को लेकर कुछ प्रतिष्‍ठित लोगों ने बयानबाजी की और रंगों के आधार पर आतंकवाद की परिभाषा देने की कोशिश की। लेकिन वे महानुभाव ये भुल गए कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। जितनी बहादुरी से इन लोगों ने बयान दिए उतनी ही डरपोकता के साथ हिन्दु वोट बैंक के ध्रुवीकरण के डर से अपने बयान से भी पलट गए। स्पष्‍ट है कि एक वर्ग को खुश करने की कोशिश की गई जैस कि अतीत में होता आया है। समाज को बांटने को कोशिश की गई। यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि जिस भगवा रंग को आतंकवाद से जोड़ने की भरपूर कोशिश की जा रही है, उसी भगवा से इस देश की हजारों सालों की समृद्ध संस्कृति और हमारे प्रतीक जुडे हुए हैं।

देश के अंदर एक माहौल बनाने की भी तैयारी की गई। लेकिन जिन लोगों ने भगवा आतंकवाद का अलाप रागा यह कब उन पर उल्टा पड़ गया यह तो उन्हें भी पता नहीं चला। लेकिन यह भगवा आतंकवाद का राग कैसे जबान पर आया यह भविष्‍य के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है। और जिन लोगों को इसके लपेटे में लिया जा रहा है उनके लिए और भी अच्छा नहीं। राजनीति के लिए ये लोग किसी भी रंग को बकरे की वली वना सकते हैं। इसमें तुरत विराम लगना चाहिए। आतंकवाद के मुद्दे को आतंकवाद के चश्‍मे से ही देखना चाहिए।