राजनीति

साम्‍यवादी जगदीश्‍वर अपनी आत्‍मा टटोलें

प्रवक्‍ता पर जगदीश्‍वर चतुर्वेदीजी का लेख-साम्प्रदायिक हिंसाचार के कवरेज की सामाजिक परिणतियां-पढा। मुझे तो लेखक की बुद्धि, तर्क व सोच पर दया आती है। वैसे कसूर उनका भी नहीं है। कसूर है उनकी साम्यवादी विचारधारा का जिसका भारत की माटी से कुछ लेना देना नहीं है। इसीलिये उन जैसे महानुभावों को, भारत में कुछ भी किया तब तक नहीं भाता जब तक कि उनके विदेशी आका उसे सही या गलत न बता दें।

यही तो कारण है कि जब स्टालिन करोड़ों निर्दोषों की निर्मम हत्या करता है तो लेखक जैसे साम्यवादी तालियां बजाते हैं। सिंगूर और नन्दीग्राम में जब पश्चिमी बंगाल की सरकार निरीह किसानों की हत्या कर देती है, बलात्कार कर देती है तो लेखक जैसे साम्यवादियों की आत्मा सो जाती है। वस्तुत: साम्यवादियों की तो आत्मा होती ही नहीं है।

यही कारण है कि उन्हें रूस और चीन जो कुछ भी करें सब ठीक लगता है और दूसरे करें तो गलत। साम्यवादियों को तो वस्तुत: राष्ट्रप्रेम तथा देश प्रेम एक गुनाह लगता है क्योंकि राष्ट्रभक्ति और देश प्रेम तो साम्यवाद में एक गुनाह है। यही कारण है कि पहले तो उन्होंने भारत की छाती चीर पर पाकिस्तान बनाने की पैरवी की और बाद में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो उनका शरीर तो भारत में था पर दिल उनका चीन के साथ था।

जब-जब ब्रिटेन या अमरीका आदि ने किसी देश पर सैनिक बल से कब्ज़ा कर लिया तब तो भारतीय साम्यवादी छाती पीट-पीट कर रो पड़े। पर जब रूस ने पोलैण्ड, चैकोस्लावेकिया, हंगरी, तथा अफगानिस्तान पर आक्रमण कर कब्जा जमा लिया तो वह उन्हें बहुत अच्छा लगा। यही तो है साम्यवाद की कपटी सोच और आदर्श।

वह गुजरात दंगों को तो बड़ा उछालते हैं पर यह जानबूझ कर गोधरा में 52 व्यक्तियों को ज़िन्दा जला दिये जाने को जानबूझ कर नज़रअन्दाज़ कर जाते हैं मानों मानव तो केवल वह थे जो गोधरा काण्ड से भड़की आग से मरे और 52 व्यक्ति तो मानव थे ही नहीं। उनके लिये वह कोई आंसू नहीं बहाते।

मैं लेखक महोदय को बता दूं कि 2002 के गोधरा काण्ड उपरान्त के दंगों में केन्द्र व प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार लगभग दो हज़ार व्यक्तियों की जाने गई थीं जिनमें कुछ हिन्दू भी थे। उसके बाद गुजरात सरकार ने सैकड़ों मुकदमें तुरन्त दाखिल किये और अब तक कई मुकदमों में निर्णय भी हो चुका है और कइयों को सज़ा भी मिल चुकी है। सत्ताधारी दल के कई विधायकों तथा पूर्व मन्त्रियों के विरूध्द मुकदमें भी चल रहे हैं और कई जेल में भी हैं। कई पुलिस अफसरों को सज़ा भी हो चुकी है और कई के विरूध्द मुकदमें भी चल रहे हैं।

इसके विपरीत 1984 में श्रीमति इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद केवल कांग्रेस शासित प्रदेशों में ही सिखों के विरूध्द दंगे हुये। देश में लगभग 4000 (गुजरात दंगों से दोगुणा से भी अधिक) सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। गुजरात में मरने वाले मुस्लमान भी थे और हिन्दू भी हालांकि मुस्लमान अधिक थे, पर 1984 में मरने वाले सभी सिख थे और एक भी ग़ैरसिख न था। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी ने इस दंगों को सही ठहराते हुये कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो नीचे की ज़मीन हिलती अवश्य है। गुजरात के मुख्य मन्त्री ज़िसके कारण अनेक लोगों के विरूद्ध मुकदमें दर्ज हुये और अनेकों को सज़ा हो गई उन्हें तो कांग्रेसी व लेखक जैसे साम्यवादी जल्लाद और पता नहीं क्या-क्या कहते फिरते है पर श्री राजीव गांधी के विरूध्द वही भाषा प्रयोग करने में उन्हें शर्म आती है जब कि श्री गांधी के समय में दो-तीन दिन अनेक प्रदेशों और विशेशकर दिल्ली में सिखों के विरूध्द हत्या व हिंसा का नंगा नाच होता रहा और पुलिस ने कई दिन तक कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया। क्या सिख मानव नहीं थे? उनका क्या कसूर था? फिर कांग्रेस तथा लेखक सरीखे दोनों में क्यों भेदभाव बरत रहे है? जो गुजरात में हुआ वह भी बुरा और गलत था और दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिये और सिखों के विरूद्ध हत्या करने वालों के विरूध्द भी। लेखक बतायेंगे कि यह ढोंग क्यों है?

असलियत तो यह है कि प्रापेगंडा की नींव पर तो साम्यवाद और उसकी सरकारे खड़ी हैं। यदि यथार्थ और आंकड़ों पर ध्यान दें तो पश्चिमी बंगाल की साम्यवादी सरकार गरीबों के लिये काम करने के मामले में बहुत पीछे है। आंकड़े बताते है कि लेखक की नज़र में ”गरीब तथा मुस्लिम विरोधी” मोदी सरकार में गरीबों की संख्या कम हुई है और बंगाल के मुसलमानों के मुकाबले गुजरात के मुसलमानों की औसत आमदनी बंगाल से दुगनी है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार भी बंगाल में मुसलमानों को कम रोज़गार मिले है और गुजरात में अधिक। यही हाल अन्य साम्यवादी सरकारों का है।

क्या साम्यवादी लेखक अपनी आत्मा को टटोलेंगे? पर कहते हैं साम्यवाद में केवल राजनीति होती है, आत्मा नहीं।

-अम्‍बा चरण वशिष्‍ठ