कविता

कविता/औरत

-सावित्री तिवारी ‘आजमी’

पुरूषों की इस दुनिया में, भगवान बनाई क्यों औरत।

कोमल अंगों-सुन्दरता से, भगवान सजाई क्यों औरत॥

दी अग्नि परीक्षा सीता बन, द्रौपदी की गई अर्ध नग्न।

अस्मिता हनन करने को ही, भगवान बनाई क्यों औरत॥

क्यों कोख में ही मारी जाती, बच जाय तो दुत्कारी जाती।

केवल जिल्लत ही सहने को, भगवान बनाई क्यों औरत॥

क्यों पाणिग्रहण जरूरी है, मां बनना क्यों मजबूरी है।

पालन-पोषन ही करने को, भगवान बनाई क्यों औरत॥

जब औरत दुख की साथी है, सुख का अमृत बरसाती है ।

तब दुख ही सहने की खातिर, भगवान बनाई क्यों औरत॥

सब कहते हैं- है देर नहीं, तेरे घर में अंधेर नहीं।

फिर ऍधियारी रातों में ही, भगवान बनाई क्यों औरत॥

जब औरत जग की जननी है, मॉ बहन सुता और घरनी है।

फिर पुरूषों का माध्यम बनकर, भगवान सताई क्यों औरत॥

क्या जतन, आजमी, करे बता, होगया बहुत ना और सता।

जब दया नहीं आती है फिर, भगवान बनाई क्यों औरत॥