साईं पर संग्राम

-अरविंद जयतिलक-
sai baba

भगवान कौन है? उसका स्वरूप और विशेषता क्या है? भगवान होने की शर्तें क्या है? किसी के भगवान होने का सर्टिफिकेट कौन जारी करेगा? यह कौन तय करेगा कि किसकी पूजा होनी चाहिए और किसकी नहीं? यह सवाल इसलिए कि द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने ‘सबका मालिक एक होने’ का उपदेश देने वाले साईं बाबा के भगवान होने पर सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि साईं भगवान का अवतार नहीं हैं। सनातन धर्म में भगवान विश्णु के सिर्फ 24 अवतार हैं। कलियुग में बुद्ध और कल्कि के अलावा किसी अन्य अवतार का उल्लेख नहीं। लिहाजा साईं की पूजा नहीं होनी चाहिए। जो लोग उनकी पूजा को बढ़ावा दे रहे हैं, उनका मकसद हिंदू धर्म को बांटना है। उन्होंने तर्क दिया है कि साईं को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन साईं की पूजा मुसलमान नहीं करते। यदि वे पूजा करते तो बात समझ में आती। स्वरुपानंद ने साईं को गुरु का दर्जा दिए जाने पर भी आपत्ति जतायी है। उनका कहना है कि गुरु आदर्शवादी होता है। हम मांसाहारी साईं को गुरु कैसे मान सकते हैं? उन्होंने साईं भक्ति करने वाले लोगों को भगवान श्रीराम की पूजा, गंगा में स्नान और हर-हर महादेव का जाप न करने की सलाह दी है। षंकराचार्य की टिप्पणी से करोड़ों साईं भक्त आहत हैं? उनकी पीड़ा को समझा जा सकता है। लेकिन यह शोभा नहीं देता है कि वह कट्टरपंथियों की तरह सड़क पर उतरकर शंकराचार्य का पुतला फूंके और उन्हें अपशब्दों से नवाजें। इससे शंकराचार्य के लाखों भक्त भी नाराज होंगे और टकराव की स्थिति बनेगी। अभिव्यक्ति का तरीका तार्किक और सकारात्मक होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य है कि इस मसले पर धैर्य का परिचय नहीं दिया जा रहा है। संत समाज जिसका उत्तरदायित्व समाज को नैतिक दिशा देना है वह शंकराचार्य के समर्थन और विरोध में अपना-अपना तर्क प्रस्तुत कर रहा है।

धार्मिक समभाव की दृष्टि से यह स्थिति ठीक नहीं। स्वामी रामानंदचार्य हंसदेवाचार्य, दक्षिण काली मंदिर सिद्धपीठ के महामंडलेश्वर कैलाशानंद ब्रह्मचारी, महामंडलेश्वर स्वामी हरचेतानंद महाराज, स्वामी अच्युतानंद तीर्थ, विश्व ब्राह्मण सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और चेतन ज्योति आश्रम के स्वामी ऋषिश्वरानंद जैसे संत शंकराचार्य के बयान को उचित बता रहे हैं। दूसरी ओर, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञानदास समेत कई अनेक संत उनके बयानों से असहज हैं। उनका तर्क है कि अगर लोग साईं में आस्था रखते हैं, पूजा करते हैं या भगवान मानते हैं तो इसमें हर्ज क्या है? इससे दूसरे को परेशानी क्यों होना चाहिए। तर्क वाजिब है। देश में सभी को धार्मिक आजादी का हक हासिल है। सभी अपनी आस्था के अनुसार किसी की पूजा-अर्चना कर सकते हैं। किसी को भी दूसरे की आस्था को चोट पहुंचाने का अधिकार नहीं है। धर्म भी इसकी इजाजत नहीं देता। यह बहस का विशय है कि शंकराचार्य ने साईं के भगवान न होने का सवाल यों ही छेड़ दिया है, या वाकई में वे सनातन धर्म के खिलाफ किसी साजिश की आशंका से पीड़ित हैं? अगर सनातन धर्म के खिलाफ साजिश रची जा रही है तो यह चिंता का विषय हो सकता है लेकिन सवाल यह कि इसका साईं के भगवान होने व न होने से क्या लेना देना है? बेहतर होता कि शंकराचार्य सर्वधर्म समभाव की बात करते ताकि समाज में अच्छा संदेश जाता। उचित यह भी होता कि वह साईं के भगवान होने का फैसला उनके भक्तों पर छोड़ देते। उनका यह कहना सही है कि सनातन परंपरा में साईं भगवान के अवतार नहीं हैं। लेकिन इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि जो लोग साईं में आस्था रखते हैं, उन्हें जबरन अपनी बातें मनवायी जाए? निश्चित रूप से शिरडी के साईं को लेकर स्वामी स्वरुपानंद के अपने विचार व मत हो सकते हैं। लेकिन यह किस तरह न्यायसंगत है कि वह अपने विचारों से दूसरे को पीड़ा पहुंचाएं। इससे समाज में नफरत की भावना पनपेगी। समझना होगा कि भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग शिरडी के साईं बाबा में आस्था रखता है। सामर्थ्य के अनुसार चढ़ावा चढ़ाता है। वह उनके चमत्कार से अभिभूत है। पर सच यह भी है कि साईं में आस्था रखने वाले लोग हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं। ऐसे में यह कितना उचित होगा कि शंकराचार्य ऐसे लोगों को हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने से मना करें या मोक्षदायिनी गंगा में स्नान न करने की दलील दें। यहां समझना होगा कि सनातन धर्म बहुदेववादी है। वैदिक ग्रंथों में 33 देवताओं की पूजा का उल्लेख है। यह सनातन धर्म की व्यापकता ही कही जाएगी कि ऋग्वैदिक कालीन समाज के लोग देवताओं की आराधना पशु और पेड़-पौधों के रुप में भी करते थे। ऋग्वेद में मरुतों की माता की कल्पना चितकबरी गाय के रुप में की गयी है। इंद्र को वर्षा का देवता मानते हुए उनकी तुलना गाय खोजने वाले सरमा स्वान के रूप में की गयी है।

वरुण जो वैदिककालीन महत्वपूर्ण देवता थे, उन्हें समुद्र का देवता, ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात का कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य का निर्माता के रुप में पूजा जाता था। अगर समाज का एक तबका साईं में भी भगवान का रुप निहारता है यह उसकी आस्था है। सनातन धर्म के मुताबिक कण-कण में भगवान हैं। गीता में पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे’ की बात कही गयी है। यानी मानव की पिण्डाकृति ब्रह्म का ही लघु संस्करण है। रही बात साईं के भगवान होने या न होने की तो उन्होंने कभी खुद को भगवान नहीं कह। न ही अपने भक्तों को अपनी पूजा करने का आदेष दिया। वह अपने भक्तों को सामान्य पारिवारिक जीवन जीने का सलाह देते थे। जीवन भर धार्मिक रुढ़िवादिता और जाति के आधार पर किए जाने वाले उत्पीड़न के खिलाफ रहे। लेकिन उनके भक्त उन्हें भगवान मानते हैं और पूजा करते हैं तो यह उनकी आस्था है। भगवान बुद्ध ने भी पूजा-पाठ का विरोध किया था। उनका ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं था, लेकिन आज महायान पंथ के लोग उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। शंकराचार्य का यह कहना कि साईं बाबा के नाम पर कमाई की जा रही है और विदेशी ताकतें हिंदू धर्म को बांटने में लगी हैं, यह सच के निकट हो सकता है। लेकिन इस आधार क्या किसी की आस्था और विश्वास को लहूलुहान किया जा सकता है? दो राय नहीं कि शिरडी के साईं मंदिर में हर रोज लाखों का चढ़ावा चढ़ता है। धनसंपदा की दृष्टि से साईं मंदिर देश के समृद्ध मंदिरों में से एक है। लेकिन ऐसा यह एकमात्र मंदिर नहीं है। देश में ऐसे हजारों पवित्र स्थल हैं जहां अरबों की संपत्ति है। क्या इन धर्मस्थलों को भी साईं मंदिर की तरह कमाई का जरिया माना जा सकता है? जहां तक साईं के बरक्स हिंदू धर्म को कमजोर करने का सवाल है तो इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है। अगर मान भी लिया जाए कि इस तरह कोशिश हो रही है तब भी सनातन धर्म कमजोर होने वाला नहीं। प्रथम शताब्दी से ही सनातन धर्म पर हमले होते रहे हैं। लेकिन उसकी जड़े मजबूत ही हुई हैं। हिंदू समाज गत हजार वर्षों से आक्रांताओं के विश्वासघात के बावजूद भी अपनी धार्मिक प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटा है। वह हजारों वर्षों से राज्यपोषित अत्याचार, लूटमार, दरिद्रता और उत्पीड़न का षिकार होता आया है। उसे इस्लामी और ईसाई षासन से घोर उत्पीड़न मिला और आर्थिक विपन्नता का शिकार हुआ। उससे जबरन जजिया वसूला गया। फिर भी हिंदुओं ने न तो समर्पण किया और न ही धर्म परिवर्तन। जबकि उसकी तुलना में मिश्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक जैसे देशों की संस्कृति तीन दषक के इस्लामी प्रहार के आगे नतमस्तक हो गयी। यहां के लोग धर्म परिवर्तन कर मुसलमान हो गए। धर्मयुद्ध का असर यूरोप पर भी देखने को मिला। ईसाईयत का बड़े पैमाने पर इस्लामीकरण हुआ।

उचित होता कि द्वारकापीठ के शंकराचार्य साईं राम के भगवान होने पर सवाल खड़ा करने के बजाए हिंदुओं को उनकी सनातन अस्मिता का बोध कराते, जिस तरह कभी नवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य और उसके बाद स्वामी रामदास, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और श्री अरविंद ने कराया। सनातन धर्म एक जीवन पद्धति है। पद्धति का संबंध आचार से है और हर आचार के पीछे विचार होता है। सनातन विचार सदियों से प्रवाहित होता रहा है। उसे नष्ट नहीं किया जा सकता। उचित होगा कि देश के संत साईं के भगवान होने या न होने पर संग्राम मचाने के बजाए समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास करें।

4 COMMENTS

  1. if the aal debaters are belive in god why they debate on this type of issues this is anti rational debate on sai–sai is not god or not sant or baba or anything that there folowers explain .sai is ismple man like our bhaktas but once there folowers know that sai is the best selling goods for make money they are set him as god and the story of there chamatkar released between those who never accepts ethics and morality fo r bater life .but always waiting for krupa of this type of baba or guru.

    this thing harm parampara and sanskrity i think sankarachary is true and i am also urge aal samkrachary to made big andolan to stope this type of false god.

    i read that the aadyhyasankarachary defeat the budhdhas thougths and sent them out of india —-i hope aal sankrachary do this thing for this type of gods and babas gurus are deported from societis—-and set sanatan dharm as its real form—————–this type of gangs are motivated anti indian and anti rational elements including- other dharms and ngos——–

  2. अरविंद जी सामयिक विषय पर एक विचारोत्तेजक लेख प्रस्तुत करने के लिए बधाई..मुझे नहीं लगता कि शंकराचार्य जी ने साईं के भगवान न होने का सवाल यों ही छेड़ दिया है, या वाकई में वे सनातन धर्म के खिलाफ किसी साजिश की आशंका से पीड़ित हैं? सच तो यह है कि तमाम संस्थाओं के अन्दर आ रहे पतन और राजनीतिकरण का प्रभाव शंकराचार्य पीठों पर भी पड़ा है और शंकराचार्य जी ने समय के अनुकूल स्वयं को बदला है और राजसत्ता को सहायता पहुंचाने के उपक्रम में जी जान से जुट गए हैं..

  3. This is true that Hindu society is the only one, who is able to protect it’s religion and culture in last thousands of years, despite the unabated attacks from the invaders. This is also true that all this happened because Hindus had the great respect for it’s culture and religion but situation has been changed in last few decades. Our enemy learnt a lot from the history and now they have change the tactics. Worship of Sai and comparing to him with RAM and other incarnations is one of the their tactics. It’s create the confusion in the societies otherwise there are hundreds of Gurus are born in India and no one ever object.

  4. सोशल मीडिया में जिस तरह साईं बाबा का विरोध कुछ तथाकथित कट्टर हिंदूवादी कर रहें हैं और साईं बाबा के बारे में झूठी कहानियाँ बना बना करे पोस्ट कर रहे हैं वो बिलकुल गलत है. अब साईं भक्तो ने भी फेसबुक पर इन साईं विरोधियों के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए एक पेज बना लिया है जिसमे वे किसी की निंदा तो नहीं कर रहे बल्कि साईं बाबा के बारे में सच दुनिया को बता रहे हैं ..
    दुनिया भर के साईं भक्त इस पेज को लाइक कर रहे हैं और अपनी बात इस फोरम के माध्यम से रख रहे हैं …
    इस पेज का पता है :
    https://www.facebook.com/exposeantisai

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