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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

betiआप मोदी के समर्थक हों या विरोधी यह आप पर निर्भर है। भले काम करने के तरीके पर सवाल उठाईये लेकिन एक प्रधानमंत्री के तौर पर उन मुद्दों को तरजीह देना जिन पर कितने वर्षों से कोई सवाल नहीं उठा रहा, इसे सभी को मोदी से सीखने की जरूरत है।

चाहे मुद्दा नशाखोरी का रहा हो या हाल ही में बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ योजना। यह योजना कितनी सफल होगी या असफल यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन मोदी का ये ऐलान एक सूकून देता है कि हां देश ने ढंग का प्रधानमंत्री चुना है। जिसका ध्यान केवल बार्डर और जीडीपी पर नहीं बल्कि समाजिक मुद्दों पर भी है।

हम अगर बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ योजना की बात करें तो यह योजना कई मायने में सही है और अधिक से अधिक धार देना समय की मांग है। बेटी को गर्भ मे ही मार देने की गंदी प्रथा ने शुरू से ही भारत के लिंग अनुपात पर खासा असर डाला है। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब जैसे राज्यों में हालत और भी ज्यादा खराब है।

हर वक्त बेटियों के लिये मन में घृणा भाव रखने वाले समाज ने शायद अब तक अपना आईना नहीं देखा है। अगर आंकड़ो की बात करें तो हरियाणा के शिमली में 1000 लड़को पर केवल 388 लड़कियां हैं। यह एक बेहद चिंताजनक आंकड़ा है। ऐसा नहीं है लिंग अनुपात के इस बड़े विभेद को खत्म करने के लिये पहले की सरकारों ने कोई कदम नहीं उठाया लेकिन उसका कोई खास असर देखने को आज तक नहीं मिला।

2011 की जनगणना के अनुसार अगर पूरे देश में लिंग अनुपात 1000 पर 940 है लेकिन उत्तर के हिस्से में हरियाणा की हालात हद से ज्यादा खराब हैं। हरियाणा के पानीपत  जिले के 74 गांव ऎसे हैं जहां का लिंगानुपात 900 या इससे अधिक है और 198 गांवों में लिंगानुपात 801 से 900 तक है। यहां 1000 लड़कों पर 879 लड़कियां हैं।

दुनिया भर में खुद को विश्वगुरू कहलाने की लालसा वाला रखने भारत के सामने हालात ऐसे हैं कि 2.30 करोड़ लड़कों को 2020 में शादी के लिये लड़की नहीं मिलेगी। हम दुनिया में बहुत आगे जा चुके होगें लेकिन हमारे देश की आंतरिक स्थिति बहुत ही खराब होगी।

मोदी ने अपनी योजना की शुरूआत हरियाणा से की है क्योंकि वहां के हालात बाकी  जगहों से बहुत ज्यादा खराब हैं। हम अगर राजस्थान की बात करें तो वहां 1000 लड़कों पर 928 लड़कियां हैं, पंजाब में 1000 पर 895। देश की राजधानी दिल्ली का दिल भी इस मामले में बहुत कमजोर साबित हो रहा है। 2011 के आकड़ों पर गौर फरमायें तो पता चलता है कि यहां 1000 लड़कों पर सिर्फ 868 लड़कियां हैं।

आंकड़ों को देखकर तो  यही लगता है कि पूर्व में चलायी गयी योजनायें या तो ढंग से क्रियान्वन न होने के कारण ठंडी पड़ गयी या फि सरकारी लालफीताशाही का शिकार। इस मामले में सबसे अच्छे हालात पांडिचेरी के हैं। जहां 1000 लड़कों पर 1037 लड़कियां हैं। लेकिन कुछ के आदर्श स्थिति में आ जाने से पूरे मुल्क की रवायत नहीं लिखी जा सकती।

कहने वाले कह सकतें हैं कि बेटियों के लिये बहुत सी योजनायें चली हैं, और ये भी उनमें से एक हैं। लेकिन ये बहुत कम देखने को मिलता है कि देश का प्रधानमंत्री सामाजिक सरोकारों से जुड़ें मुद्दों पर इतनी रूचि लेता हो। बेहतर हो कि ये योजना सफल हो और प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ सभी को ये संकल्प करना चाहिये कि बेटी है तो खुशियां हैं, बेटी है तो कल है।