दोहे
उर अश्रु लिए भस्म रमा !
/ by गोपाल बघेल 'मधु'
उर अश्रु लिए भस्म रमा, कौन विचरता; शिव सरिस ललित ताण्डव कर, व्याप्ति सिहरता ! आलोक अलोकी का दिखा, जाग्रत करता; कर चित्त-शुद्धि चक्रन वरि, वरण वो करता ! आयाम अनेकों में रमा, प्राणायाम सुर; गुरु चक्र प्रणय लीला किए, प्रणवित करता ! यम नियम सुद्रढ़ शोध करा, स्वास्थ्य सुधाता; अध्यात्म रस में रास करा, […]
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