कविता साहित्य कविता ; और काबा में राम देखिये March 24, 2012 / March 24, 2012 by श्यामल सुमन | 3 Comments on कविता ; और काबा में राम देखिये श्यामल सुमन विश्व बना है ग्राम देखिये है साजिश, परिणाम देखिये होती खुद की जहाँ जरूरत छू कर पैर प्रणाम देखिये सेवक ही शासक बन बैठा पिसता रोज अवाम देखिये दिखते हैं गद्दी पर कोई किसके हाथ लगाम देखिये और कमण्डल चोर हाथ में लिए तपस्वी जाम देखिये बीते […] Read more » poem Poems और काबा में राम देखिये कविता